महाराष्ट्र का हर सियासी जानकार कयास लगाए हुए था कि अजित पवार अगले एकनाथ शिंदे हो सकते हैं। यह बात सबसे पहले आम आदमी पार्टी की नेता और सामाजिक कार्यकर्ता अंजलि दमानिया ने कही थी। उन्होंने क्रोनोलॉजी समझाते हुए कहा था कि शिव सेना छोड़ने वाले शुरुआती 16 विधायकों की सदस्यता सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद समाप्त हो सकती है। उन 16 विधायकों में मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे भी हैं। दमानिया का कहना था कि 16 विधायकों की सदस्यता जाने के बाद अजित पवार एनसीपी के विधायकों का समर्थन देकर राज्य सरकार को बचा सकते हैं। हालांकि उन्होंने यह नहीं कहा था कि शिंदे की जगह अजित पवार मुख्यमंत्री हो सकते हैं।
अजित पवार ने मंगलवार को टीवी चैनलों के सामने आ कर इन तमाम चर्चाओ को खारिज किया है। मगर ध्यान रहे इससे पहले 2019 में अजित पवार ने अपने चाचा शरद पवार से कथित बगावत की थी तो वे देवेंद्र फड़नवीस के साथ चार-पांच दिन के लिए उप मुख्यमंत्री बने थे। इस बार अगर सचमुच शिंदे और उनके साथ 15 अन्य विधायकों की सदस्यता जाती है और अजित पवार इतने ही या इससे ज्यादा विधायक लेकर भाजपा के साथ जाते हैं तो भाजपा उनको मुख्यमंत्री भी बना सकती है। हालांकि शिंदे गुट का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट में उनका केस मजबूत है और किसी ही सदस्यता नहीं जाएगी।
अगर एकनाथ शिंदे गुट सुप्रीम कोर्ट में जीत जाता है और किसी की सदस्यता नहीं जाती है तो अजित पवार की भाजपा के लिए कोई खास उपयोगिता नहीं रह जाएगी। तभी बताया जा रहा है कि पवार जूनियर खुल कर कोई कदम नहीं उठा रहे हैं। उनको अंदाजा नहीं हो रहा है कि भाजपा को उनकी जरूरत पड़ेगी या नहीं। इसलिए अटकले थी कि वे गुपचुप तरीके से एनसीपी के विधायकों से बात कर रहे हैं। उनका मन टटोल रहे हैं और उनको भाजपा के साथ जाने के लिए तैयार कर रहे हैं।
अफवाहों ने तब तूल पकड़ा जब एनसीपी के दो विधायकों ने खुल कर उनका समर्थन किया। उनका कहना था कि अजित पवार जहां जाएंगे वे दोनों उनके साथ जाएंगे। अफवाहों का खंडन से पहले यह भी चर्चा चल रही थी कि अजित पवार ने एनसीपी के विधायकों को भाजपा के साथ जाने का फायदा समझाया है। वे सोमवार को पुणे में होने वाले एनसीपी के एक किसान सम्मेलन में नहीं पहुंचे तो बताया गया कि वे उस समय कुछ विधायकों से मिल रहे थे। मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे से उनकी मुलाकात हो चुकी है और पिछले दिनों उद्धव ठाकरे जब इन खबरों के बाद शरद पवार से मिलने गए तो वहां भी सिर्फ शरद पवार और सुप्रिया सुले थे। अजित पवार उस मीटिंग से भी नदारद रहे। हालांकि बाद में उद्धव के साथ वे नागपुर रैली में शामिल हुए। उन्होंने दोनों नावों पर पैर रखा हुआ है और सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार कर रहे हैं। इन तमाम बातों के बीच अजित पवार में एनसीपी, विपक्ष में ही रहने का दो टूक ऐलान किया है तो भाजपा- शिंदे सरकार को ले कर प्रदेश में अब अधिक अनिश्चिता बनेगी।