गायत्री मंत्र के द्रष्टा, उपदेष्टा ऋषि विश्वामित्र
विश्वामित्र से संबंधित प्राप्य विवरणियों के अनुसार विश्वामित्र को अपनी समाधिजा प्रज्ञा से अनेक मन्त्र स्वरूपों का दर्शन हुआ, इसलिए ये मन्त्रद्रष्टा ऋषि कहलाते हैं। विश्वामित्र ने इस जगत को ऋचा बनाने की शिक्षा दी, और गायत्री मन्त्र की रचना की। ऋग्वेद 33वें तथा 53वें सूक्त में महर्षि विश्वामित्र का परिचय देते हुए कहा गया है कि ये कुशिक गोत्रोत्पन्न कौशिक थे। 16 नवंबर- विश्वामित्र जयंती ऋग्वेद के 62 सूक्त वाले तृतीय मण्डल के सभी सूक्तों के द्रष्टा गाधि पुत्र विश्वामित्र प्राचीन काल के अत्यंत प्रसिद्ध ऐसे ऋषि हुए हैं, जिन्होंने न केवल अपने पुरुषार्थ से, अपनी तपस्या व योग...