युद्ध के माहौल में कोविड-19 से मौतों का नया आंकड़ा जारी हुआ है। सामान्य दिनों में इस पर जितनी चर्चा होती, वह अभी नहीं हो पाएगी। इस तरह केंद्र सरकार अपने आंकड़ों के गलत होने संबंधी अपनी जवाबदेही से बच जाएगी।
कोरोना काल के सबसे बुरे वर्ष 2021 में भारत में सामान्य से 25.8 लाख ज्यादा मौतें हुईं। विशेषज्ञों के मुताबिक अगर मान लिया जाए कि ये सभी मौतें कोविड-19 से नहीं हुईं और सामान्य वृद्धि की अधिकतम संभावना को अलग कर लिया जाए, तब भी तकरीबन 20 लाख मौतों की वजह उस महामारी को माना जाएगा।
उल्लेखनीय है कि यह सरकार की असैनिक पंजीकरण प्रणाली के तहत दर्ज आंकड़ा है, जिसे फिलहाल युद्ध के बने वातावरण के बीच जारी किया गया है। स्पष्टतः सामान्य दिनों में इस संबंध में जितनी चर्चा होती, वह अभी नहीं हो पाएगी। इस तरह केंद्र सरकार ने कोविड-19 से मौतों के जो आंकड़े तब बताए थे, उसके गलत होने संबंधी अपनी जवाबदेही से वह बच जाएगी।
कोविड-19 मौतों के आंकड़े और जवाबदेही
याद करना जरूरी है कि उस दौर में कोरोना से मौतों के आंकड़ों को लेकर बड़ा विवाद खड़ा हुआ था। तब भारत सरकार ने विश्व स्वास्थ्य संगठन के आकलन को भी चुनौती दी थी। संगठन के मुताबिक 2021 में भारत में कोविड-19 के कारण कम-से-कम 26 लाख 60 हजार मौतें हुईं। मगर भारत सरकार का आंकड़ा सिर्फ चार लाख 10 हजार था।
मगर जब सरकार की अपनी पंजीकरण प्रणाली में सामान्य से लगभग 26 अधिक मौतें दर्ज हुई थीं, तो सवाल है कि केंद्र ने वह आंकड़ा किस आधार पर बताया? हकीकत यह है कि कोरोना ने महामारियों के प्रति भारत की तैयारी और देश की सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था की कलई खोल दी थी।
नतीजा, खासकर 2021 में आई महामारी की दूसरी लहर के दौरान चारों तरफ मची अफरा-तफरी थी। वैसे भारत अकेला देश नहीं है, जहां तब ऐसा नजारा दिखा। इसलिए सच पर परदा डालने की कोई जरूरत नहीं थी। उन मुश्किल हालात में एक बड़ा यह सबक छिपा था कि संकट काल में सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था ही एकमात्र विकल्प रह जाती है।
दुर्भाग्यपूर्ण है कि इसे समझने और बाद में इस व्यवस्था को चुस्त और चौकस बनाने की पहल करने के बजाय निराधार कथानकों के आधार पर सरकार ने अपनी कामयाबी का ढोल पीटा। लेकिन अब आंकड़े उसकी पोल खोल रहे हैं। उनसे नजर मिलाने की जरूरत है।
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