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08-07-2025 Vol 19

ये टकराव ठीक नहीं

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पहला मौका है, जब राष्ट्रपति के रेफरेंस का स्वरूप परामर्श मांगने के बजाय न्यायिक निर्णय को चुनौती देने जैसा मालूम पड़ा है। संविधान के अनुच्छेद 200 के बारे में सुप्रीम कोर्ट ने जो स्पष्टता लाई थी, स्पष्टतः वह केंद्र को मंजूर नहीं हुआ।

वैसे तो यह 15वां मौका है, जब किसी राष्ट्रपति ने संविधान के अनुच्छेद 143 का उपयोग कर किसी मामले को सुप्रीम कोर्ट के पास भेजा है। लेकिन यह पहला मौका है, जब इस रेफरेंस का स्वरूप परामर्श मांगने के बजाय सर्वोच्च न्यायालय के एक निर्णय को चुनौती देने जैसा मालूम पड़ता है। संविधान के अनुच्छेद 200 की व्याख्या करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने जो स्पष्टता लाई थी, केंद्र चाहता तो उसके खिलाफ अपनी ओर से अपील दायर कर सकता था। केंद्र के पास उसके बाद भी समीक्षा याचिका दायर करने का विकल्प मौजूद रहता। मगर केंद्र की सलाह पर राष्ट्रपति ने इसे अनुच्छेद 143 के तहत सर्वोच्च न्यायालय के पास भेजने का फैसला किया।

इस तरह अब कोर्ट को संविधान पीठ का गठन करना होगा। इस अनुच्छेद के मुताबिक सार्वजनिक महत्त्व के किसी कानूनी या तथ्य संबंधी प्रश्न पर राष्ट्रपति सुप्रीम कोर्ट का परामर्श मांग सकती हैं। विवाद संघ और राज्यों के बीच हो (यानी अनुच्छेद 131 से संबंधित हो), तो उस स्थिति में भी राष्ट्रपति राय मांग सकती हैं।

सुप्रीम कोर्ट को अधिकार है कि वह ऐसी राय देने से इनकार कर सकता है, जैसाकि उसने 1994 में राम जन्मूभूमि- बाबरी मस्जिद विवाद में किया था। मगर यहां मुद्दा यह है कि राष्ट्रपति के ताजा रेफरेंस के जरिए सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को फिर से उसके पास भेजा गया है।

राष्ट्रपति का अनुच्छेद 143 रेफरेंस

इस पर राज्यों- खासकर तमिलनाडु सरकार की आई आक्रोश-भरी प्रतिक्रिया गौरतलब है। उपरोक्त निर्णय तमिलनाडु के मामले में ही आया था। तब अदालत ने व्यवस्था दी थी कि आगे से विधायिका से दोबारा पारित किसी विधेयक को राष्ट्रपति/ राज्यपाल तीन महीने से अधिक लंबित रखेंगे, तो उसे मंजूरी मिल गई माना जाएगा।

संविधान में राष्ट्रपति/ राज्यपालों से “यथाशीघ्र” मंजूरी देने को कहा गया था। लेकिन खासकर वर्तमान केंद्र सरकार के तहत गैर- भाजपा शासित राज्यों में राज्यपालों ने “यथाशीघ्र” शब्द में निहित अस्पष्टता को विधेयकों को अनंत काल तक लटकाए रखने का जरिया बना लिया। सुप्रीम कोर्ट इस विसंगति को दूर की थी। लेकिन केंद्र को वह मंजूर नहीं हुआ। उसने राज्यों से फिर एक अवांछित टकराव मोल ले लिया है।

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NI Editorial

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