बीसीसीआई के परोक्ष संरक्षक एवं संचालक रसूखदार राजनेता और उद्योगपति हैं। इसलिए इस संस्था को अन्य खेल संस्थाओं जैसे नियम- कायदों के दायरे में लाना अब तक संभव नहीं हुआ है। लेकिन अब स्थिति बदलने जा रही है।
नरेंद्र मोदी सरकार राष्ट्रीय खेल विधेयक के दायरे में भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड को भी ले आई है। यह साहसी फैसला है, बशर्ते केंद्र इस पर अडिग रहे। अतीत में कम-से-कम एक बार ऐसी कोशिश कामयाब नहीं हो पाई, हालांकि तब सुप्रीम कोर्ट ने भी बीसीसीआई की कार्यशैली को विनियमित करने का प्रयास किया था। गौरतलब है कि बीसीसीआई के परोक्ष संरक्षक एवं संचालक रसूखदार राजनेता और उद्योगपति हैं। इसलिए इस संस्था को अन्य खेल संस्थाओं जैसे नियम- कायदों के दायरे में लाना अब तक संभव नहीं हुआ है। उनके संरक्षणों और क्रिकेट को कॉमोडिटी बना डालने के अपने सफल प्रयोग के कारण बीसीसीआई आज ना सिर्फ क्रिकेट की, बल्कि तमाम खेलों की सबसे धनी संचालक संस्थाओं में शामिल हो चुकी है।
गुजरे वित्त वर्ष में इसने 9,741.7 करोड़ रुपये की आदमनी दिखाई। हालांकि आज क्रिकेट- खासकर टी-20 लीग क्रिकेट- विशुद्ध कारोबार है, मगर बीसीसीआई ने अपने नॉन-प्रोफिट संस्था बता रखा है। इसलिए वह कारोबारी दर पर इनकम टैक्स नहीं देती। इस बीच बीसीसीआई की कार्यशैली पर विवादों का साया कई बार पड़ा है। अब प्रस्तावित राष्ट्रीय खेल अधिनियम में इसे राष्ट्रीय खेल परिसंघ की श्रेणी में शामिल करने का प्रावधान किया गया है। इस श्रेणी में शामिल सभी खेल संस्थाएं ‘सार्वजनिक प्राधिकरण’ मानी जाएंगी। यानी वो आरटीआई कानून के तहत आएंगी। बीसीसीआई ने यह दलील देकर खुद को अब तक इस श्रेणी में आने से बचा रखा था कि वह सरकारी अनुदान पर निर्भर नहीं है।
मगर अब चूंकि टी-20 क्रिकेट ओलिंपिक्स में शामिल हो गया है और ओलंपिक खेलों से जुड़ी संस्थाएं सरकार के अधिकार- क्षेत्र में आती हैं, तो सरकार का दायरा बीसीसीआई तक पहुंच गया है। अब बीसीसीआई को अपने संगठन का ढांचा प्रस्तावित कानून के प्रावधानों के मुताबिक ढालना होगा। पदाधिकारियों के कार्यकाल कानूनन तय होंगे। बीसीसीआई के कामकाज सरकारी निगरानी में आएंगे। आरटीआई के कारण उनकी सार्वजनिक पारदर्शिता भी तय हो सकेगी। इसलिए यह एक स्वागतयोग्य और साहसी प्रयास है, बशर्ते आगे चल कर रसूखदार शख्सियतों के दबाव में सरकार बीसीसीआई के प्रति विशेष नरम रुख ना अपना ले, जैसाकि पहले होता रहा है।