निर्वाचन आयोग एक संवैधानिक संस्था है, जिसका काम लोकतंत्र के सबसे महत्त्वपूर्ण आयोजन- यानी चुनाव- को संपन्न कराना है। यह अपेक्षा वाजिब और सटीक है कि आयोग इस प्रक्रिया में निष्पक्ष रेफरी की भूमिका निभाए।
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने पत्र इंडिया गठबंधन में शामिल दलों को लिखा। निर्वाचन आयोग के व्यवहार की तरफ अन्य दलों का ध्यान उन्होंने खींचा। ताजा शिकायत इसको लेकर जताई कि निर्वाचन आयोग इस बार मतदान के बारे में पूरा विवरण जारी नहीं कर रहा है। प्रथम दो चरणों की वोटिंग से संबंधित मतदान प्रतिशत के बारे में अंतिम आंकड़े जारी करने उसने असामान्य देर की। जबकि अब तक के तीन चरणों के मतदान पर फॉर्म 17-सी के आंकड़ों का योग जारी नहीं किया गया है। इस फॉर्म में हर बूथ पर मौजूद मतदाताओं और उनमें से जितनों ने असल में वोट डाला, उसकी संख्या बताई जाती है।
2019 तक आयोग यह सूचना मतदान खत्म होने के बाद यथाशीघ्र जारी कर देता था। खड़गे ने अपनी चिट्ठी सोशल मीडिया पर सार्वजनिक की। निर्वाचन आयोग इससे खफा हो गया। उसने उस पत्र का जवाब खड़गे को लिखा, जो कांग्रेस अध्यक्ष ने उसे नहीं भेजा था। आयोग ने पत्र टकराव वाली भाषा में लिखा। खड़गे ने जो सवाल उठाए हैं, उसके उसने तकनीकी उत्तर दिए और कांग्रेस अध्यक्ष पर आरोप मढ़ा कि वे आयोग एवं चुनाव प्रक्रिया की साख गिरा रहे हैं। आयोग का यह अजीब व्यवहार है। आयोग संवैधानिक संस्था है, जिसका काम लोकतंत्र के सबसे महत्त्वपूर्ण आयोजन- यानी चुनाव- को संपन्न कराना है। यह अपेक्षा वाजिब और सटीक है कि आयोग इस प्रक्रिया में निष्पक्ष रेफरी की भूमिका निभाए।
विभिन्न दलों के बीच आपस में क्या संवाद हो रहा है, उसमें उसका प्रवेश अवांछित है। और अगर कुछ दलों में उसके किसी रुख से संदेह पैदा हो रहा हो, तो उसका कर्त्तव्य संदेह के कारणों का समाधान करना होना चाहिए। कहा जाता है कि प्रतिष्ठा कमाने की चीज होती है। सख्त रुख अपना कर किसी को इज्जत करने के लिए कोई मजबूर नहीं कर सकता। बेहतर होता कि आयोग मतदान संख्या से संबंधित शिकायत के साथ-साथ विपक्ष के इस सवाल का जवाब भी सार्वजनिक तौर पर देता कि छह अप्रैल के बाद से इन दलों ने प्रधानमंत्री और गृह मंत्री के खिलाफ जो शिकायतें दर्ज कराई हैं, उन पर क्यों कोई कार्रवाई नहीं हुई है?