यह फैसला इस समझ को ठेंगा दिखाता है कि प्रदूषण एवं जलवायु परिवर्तन की समस्या का स्वरूप विश्वव्यापी है। उत्सर्जन चाहे कहीं भी हो, उसका प्रभाव दूर तक जाता है। इस रूप में यह निर्णय पर्यावरण की चिंता को ही ठेंगा दिखाता है।
खबर सचमुच परेशान करने वाली है। केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने भारत के ज्यादातर ताप बिजली संयंत्रों को फ्यूल गैस डी-सल्फराइजेशन (एफजीडी) सिस्टम लगाने से छूट दे दी है। यह सिस्टम वातावरण में सल्फर डाय-ऑक्साइड (एसओ2) के उत्सर्जन की मात्रा में कटौती करता है। एसओ2 वातावरण में सेंकेंडरी पर्टिकुलेट मैटेरियल का निर्माण करती है। इसका सीधा संबंध वायु प्रदूषण से है। इस सिस्टम को लगाने की अतिरिक्त लागत संयंत्र चलाने वाली कंपनी को उठानी पड़ती है। इसलिए कंपनियां इससे छूट मांगें या उसके लिए लॉबिंग करें, यह बात समझ में आती है। लेकिन जिस समय दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों की सूची में भारतीय शहर सबसे ऊपर आ रहे हैं, सरकार कंपनियों की ऐसी हानिकारक मांगों को मान ले, यह बात सामान्य विवेक से समझ में नहीं आती।
छूट देने के लिए जो तर्क अपनाया गया है, उसे समझना और भी कठिन है। देश में 180 से ज्यादा ताप विद्युत संयंत्र हैं। इनमें से हर संयंत्र की कई इकाइयां हो सकती हैं। अनुमान के मुताबिक भारत में ऐसी 600 से अधिक इकाइयां हैं। ताजा खबर के मुताबिक इनमें से सिर्फ उन इकाइयों में एफजीडी लगाना अनिवार्य होगा, जो श्रेणी ए में आती हैं। यानी जो या राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के दस किलोमीटर के घेरे में हैं या फिर उन शहरों में हैं, जहां 2011 की जनगणना के मुताबिक आबादी 10 लाख से ऊपर है। इस श्रेणी में तकरीबन 11 फीसदी इकाइयां हैं। अन्य 11 प्रतिशत इकाइयां बी श्रेणी में हैं।
यह श्रेणी उन स्थलों की है, जिन्हें अत्यधिक प्रदूषित समझा जाता है। इस श्रेणी वाली इकाइयां एफजीडी लगाएं या नहीं, यह निर्णय विशेषज्ञों की एक समिति करेगी। बाकी 78 प्रतिशत इकाइयों को सी श्रेणी में रखा गया है, जिन्हें एफजीडी लगाने से पूरी छूट दे दी गई है। यह फैसला इस समझ को ठेंगा दिखाता है कि प्रदूषण एवं जलवायु परिवर्तन की समस्या का स्वरूप विश्वव्यापी है। उत्सर्जन चाहे कहीं भी हो, उसका प्रभाव दूर तक जाता है। इस रूप में यह निर्णय पर्यावरण की चिंता को ही ठेंगा दिखाता है। आज के दौर में इससे अधिक दुर्भाग्यपूर्ण बात और क्या होगी?