चीन को अहसास है कि भारत ने कुछ अमेरिका के बदले रुख और कुछ आर्थिक जरूरतों के कारण उसकी तरफ हाथ बढ़ाया है। तो उसकी सोच है कि भारत और अमेरिका के बीच दूरी जितनी बढ़ाई जा सके, वह उसके दीर्घकालिक हित में होगा।
भारत- चीन के संबंधों में जिस तेजी से सुधार हो रहा है, उन पर सहज यकीन नहीं होता। चीनी विदेश मंत्री वांग यी की भारत यात्रा के दौरान माहौल सतर्कता भरी गर्मजोशी का रहा। ऐसा महसूस हुआ कि फिलहाल भारत सरकार का जो मन बदला है, चीन उसका पूरा फायदा उठा लेने की फिराक में है। चीन का मकसद रणनीतिक है। उसे अहसास है कि भारत ने कुछ अमेरिका के बदले रुख और कुछ आर्थिक जरूरतों के कारण उसकी तरफ हाथ बढ़ाया है।
तो चीन की सोच संभवतः यह है कि इस मौके पर भारत और अमेरिका के बीच दूरी जितनी बढ़ाई जा सके, वह उसके दीर्घकालिक हित में होगा। नतीजतन, वांग की यात्रा के दौरान चीन ने रेयर अर्थ, अन्य खनिजों एवं उर्वरकों का भारत को निर्यात की इजाजत देने के संकेत दिए। दोनों देश सीधी विमान सेवा और सीमा व्यापार फिर शुरू करने की ओर भी आगे बढ़े हैं। चीन ने तिब्बत में बन रहे दुनिया के सबसे बड़े बांध के कारण ब्रह्मपुत्र नदी में दल के बहाव के बारे में भारत में फैली चिंता का समाधान करने की कोशिश भी की। वांग सीमा वार्ता के लिए नई दिल्ली आएथे। इस दिशा में भी प्रगति हुई। सीमा निर्धारण के लिए विशेषज्ञ दल बनाने का निर्णय हुआ है।
वांग की यात्रा के दौरान सबसे प्रमुख घटना उनकी प्रधानमंत्री से मुलाकात रही, जिस दौरान नरेंद्र मोदी ने शंघाई सहयोग संगठन की चीन में होने जा रही शिखर बैठक में भाग लेने की पुष्टि कर दी। मोदी ने कहा- ‘भारत और चीन के बीच स्थिर, पुर्वानुमेय एवं रचनात्मक संबंध का क्षेत्रीय एवं वैश्विक शांति और समृद्धि में महत्त्वूपर्ण योगदान होगा।’ मगर कई पेच बाकी हैं। उनमें सीमा विवाद सिर्फ एक है। गौरतलब है कि वांग नई दिल्ली से सीधे पाकिस्तान गए हैं। दक्षिण एशिया में चीन और भारत की रणनीतियों में टकराव के पहलू बने हुए हैँ। उनके रहते दोनों देश समान मकसद के लिए काम कर पाएंगे, इसकी संभावना कम दिखती है। इसीलिए ये सवाल उठा है कि क्या दोनों देश फिलहाल अपने संबंधों में सिर्फ फ़ौरी एडजस्टमेंट कर रहे हैं?