धनी और सरकारी सहायता पर निर्भर वर्ग तबके बेहतर स्थिति में हैं। मगर जिनकी जिंदगी मेहनत या उद्यम पर निर्भर है, वे तबके अपने उपभोग में कटौती कर रहे हैं, जिसका असर कॉरपोरेट्स तक पहुंचने लगा है।
डॉलर की तुलना में रुपये की कीमत के गिरने का सोमवार को फिर ‘रिकॉर्ड बना’, जब ये कीमत 84.70 रुपये तक जा गिरी। मुद्राओं की कीमत के गिरने या उठने के कुछ अंतरराष्ट्रीय कारण भी होते हैं, इसलिए दलील दी जा सकती है कि इस रुझान के आधार पर भारतीय अर्थव्यवस्था के बारे में कोई आम समझ नहीं बनाई जा सकती। मगर अनेक दूसरे सूचकांकों से जो रुझान सामने आया है, उनसे तो अवश्य ही सकल अर्थव्यवस्था की आम तस्वीर उभरती है। मसलन, कुछ आंकड़ों पर गौर कीजिएः नवंबर में यात्री वाहनों की बिक्री में 16.7 फीसदी की गिरावट आई। ब्रॉडबैंड का सब्सक्राइबर आधार 6.7 प्रतिशत सिकुड़ गया। व्यापार संतुलन में अक्टूबर की तुलना में 25.7 फीसदी गिरावट आई। रेलवे से माल ढुलाई पांच प्रतिशत गिरी। मुख्य वस्तुओं (कोर) से संबंधित उपभोक्ता मूल्य सूचकांक में 3.7 फीसदी बढ़ोतरी हुई। वैसे कुछ आंकड़े सकारात्मक भी हैं। India Economy crisis
मसलन, टैक्टरों की बिक्री 22.4 प्रतिशत बढ़ी, हवाई यात्रियों की संख्या 8.1 फीसदी बेहतर हुई, कुल निर्यात गिरने के बावजूद श्रम सघन उत्पादों का निर्यात 15.4 प्रतिशत बढ़ा और आम मुद्रास्फीति बढ़ने के बावजूद वास्तविक ग्रामीण आय में 0.3 फीसदी इजाफा हुआ।
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इन रुझानों के साथ अब दो और आंकड़ों को जोड़ें। वित्त वर्ष की मौजूद (तीसरी) तिमाही में निजी क्षेत्र की औद्योगिक गतिविधि के कमजोर होने के संकेत मिले हैं। इसके पहले दूसरी तिमाही में मैनुफैक्चरिंग में वृद्धि महज 2.2 प्रतिशत दर्ज हुई थी। उधर सितंबर में कॉरपोरेट टैक्स के भुगतान में 4.6 फीसदी की गिरावट आई। बैंकों और वित्तीय संस्थानों को अलग कर दें, तो उत्पादन से जुड़ी बाकी कंपनियों का टैक्स भुगतान 12.3 प्रतिशत गिर गया। India Economy crisis
संकेत साफ हैः शहरी उपभोक्ता बाजार तथा उससे संबंधित कॉरपोरेट्स मुश्किल में हैं। ग्रामीण क्षेत्र में सुधार है, जिसका प्रमुख कारण सब्सिडी और सरकार द्वारा नकदी ट्रांसफर है। प्रीमियम उपभोग से जुड़ी वस्तुओं और सेवाओं पर गिरावट के उपरोक्त ट्रेंड का असर नहीं है। स्पष्टतः धनी और सरकारी सहायता पर निर्भर वर्ग तबके बेहतर स्थिति में हैं। मगर जिनकी जिंदगी मेहनत या उद्यम पर निर्भर है, वे तबके अपने उपभोग में कटौती कर रहे हैं, जिसका असर कॉरपोरेट्स तक पहुंचने लगा है।