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कथानक भी महत्त्वपूर्ण है

जब किसी युद्ध में किसी पक्ष ने समर्पण ना किया हो, तो बेशक धारणाएं ही अहम हो जाती हैं। इसलिए सेनाध्यक्ष की इस बात से सहज ही सहमत हुआ जा सकता है कि ‘जीत दिमाग में रहने वाली चीज है।’

सेनाध्यक्ष जनरल उपेंद्र द्विवेदी ने कहा है कि ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान नैरेटिव मैनेजमेंट के जरिए अपने नागरिकों को बताने में कामयाब रहा कि जीत उसकी हुई है, लेकिन “यह जीत सिर्फ उनके दिमाग में है”। उन्होंने स्वीकार किया कि अनुकूल धारणाएं बनाना (नैरेटिव मैनेजमेंट) महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि ‘जीत हमेशा ही दिमाग में रहने वाली चीज है।’ खासकर उस हाल में जब किसी युद्ध में सीमाएं ना बदली हों या किसी पक्ष ने सीधा समर्पण ना किया हो, तो बेशक बात धारणाओं पर ही आकर टिक जाती है। इस लिहाज से जनरल द्विवेदी की टिप्पणी अहम है। इसका अर्थ है कि ऑपरेशन सिंदूर पाकिस्तानी आवाम के मनोबल पर अपेक्षित आघात नहीं कर पाया।

बहरहाल, बात यहीं तक नहीं रही। बल्कि पाकिस्तान के नैरेटिव मैनेजमेंट का असर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी दिखा। पिछले तीन महीनों में अंतरराष्ट्रीय मीडिया की सुर्खियां अक्सर पाकिस्तानी कथानक से प्रभावित नजर आई हैं। संभवतः उसका ही असर है कि पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष असीम मुनीर को दो महीनों में दो बार अमेरिका यात्रा का आमंत्रण मिला। तो मुद्दा यह है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत अपने अनुकूल धारणाएं बनाने में क्यों पिछड़ गया? वायु सेनाध्यक्ष ए.पी. सिंह ने अब जाकर कहा है कि ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारत ने छह पाकिस्तानी लड़ाकू विमानों को नष्ट कर दिया।

उन्होंने और जनरल द्विवेदी ने एक ही दिन (शनिवार को) यह भी बताया कि उस ऑपरेशन के दौरान सशस्त्र सेनाओं को कार्रवाई की पूरी आजादी मिली हुई थी और इस लड़ाई में भारत कामयाब हुआ, तो उसका एक प्रमुख कारण “मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति” है। ये जानकारियां देने के लिए जो समय चुना गया, उसको लेकर सार्वजनिक दायरे में पैदा हुए कौतुहल को समझा जा सकता है। आखिर इतनी बड़ी कामयाबी को तीन महीनों तक भारत ने छिपा कर क्यों रखा, जबकि इससे विश्व धारणाओं पर गहरा प्रभाव छोड़ा जा सकता था? फिर ये बातें सीडीएस अनिल चौहान और भारतीय नौ सेना के अधिकारी कैप्टन शिव कुमार के पहले दिए बयानों से अलग दिशा में जाती दिखी हैं। क्या ऐसी असंगतियां धारणाओं की लड़ाई जीतने की राह में बाधक नहीं हैं?

By NI Editorial

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