nayaindia Loksabha elections Nirmala Sitharaman फिर किसके वश में?

फिर किसके वश में?

Loksabha elections Nirmala Sitharaman
Loksabha elections Nirmala Sitharaman

अगर देश की वित्त मंत्री और संपन्न पृष्ठभूमि से आने वाली सीतारमण चुनाव नहीं चुनाव लड़ने में सक्षम नहीं हैं, तो फिर श्रमिक वर्ग या मध्य वर्ग से आने वाला कोई व्यक्ति क्या निर्वाचित होने का सपना भी देख सकता है? Loksabha elections Nirmala Sitharaman

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के इस कथन ने कई गंभीर सवाल उठाए हैं कि उनके पास चुनाव लड़ने के पैसे नहीं हैं। पहला और सबसे बड़ा प्रश्न तो यही उठा है कि क्या अब धनी होना चुनाव जीतने की अनिवार्य शर्त बन चुका है? अगर ये बात सच है तो क्या फिर भी भारत की चुनावी व्यवस्था को लोकतंत्र कहा जा सकता है? या यह धनिक-तंत्र अथवा कुलीनतंत्र में तब्दील हो गया है?

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अगर देश की वित्त मंत्री और संपन्न पृष्ठभूमि से आने वाली सीतारमण चुनाव नहीं चुनाव लड़ने में सक्षम नहीं हैं, तो फिर श्रमिक वर्ग या मध्य वर्ग से आने वाला कोई व्यक्ति क्या निर्वाचित होने का सपना भी देख सकता है? वित्त मंत्री ने उन दो पहलुओं का जिक्र किया, जो उनके मुताबिक असल में हर प्रत्याशी की किस्मत का फैसला करते हैं- पैसा और (जातीय एवं धार्मिक) पहचान। वैसे ये बातें कोई नई नहीं हैं। लेकिन सीतारमण के साथ तो ये सभी पहलू मौजूद हैं। वे इस समय राज्यसभा की सदस्य हैं। प्रधानमंत्री कार्यालय की वेबसाइट पर दिए गए 2022-23 के उनके हलफनामे के मुताबिक उनके पास करीब 2.57 करोड़ रुपयों की चल और अचल संपत्ति है।

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इसमें उनके पति की संपत्ति शामिल नहीं है। इसके अलावा वे देश की सबसे समृद्ध पार्टी की नेता हैं, जिसकी आमदनी का एक मोटा अंदाजा इलेक्ट्रॉल बॉन्ड्स के आंकड़े सामने आने से मिल चुका है। कानूनी रूप से चुनावों में कोई प्रत्याशी लोकसभा चुनाव में कितना खर्च कर सकता है, उसकी सीमा तय है। 2024 के लोकसभा चुनावों के लिए चुनाव आयोग ने 95 लाख रुपये की रकम प्रति प्रत्याशी की खर्च सीमा तय की है।

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इतना धन जुटाना तो सीतारमण के लिए मुश्किल नहीं होगा! गौरतलब है कि भाजपा के साथ हिंदुत्व की पहचान संबंधी ताकत भी है। इसके अलावा अगर भाजपा के दावों पर यकीन करें, तो नरेंद्र मोदी का सियासी ब्रांड और उनकी सरकार की कथित कामयाबियों का रिकॉर्ड भी उसके साथ है। इसके बावजूद अगर सीतारमण को चुनाव जीत सकने का भरोसा ना होना हैरतअंगेज है। प्रश्न है कि अगर सचमुच यह स्थिति है, तो सीतारमण को सियासत में क्यों रहना चाहिए?

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