राज्य-शहर ई पेपर व्यूज़- विचार

ये दृष्टि लोकतांत्रिक नहीं

असहमति को दबाना अच्छा संकेत नहीं है। इससे वे शक और गहरे होंगे, जिन्हें बताने के लिए विपक्षी सांसद निर्वाचन भवन तक जाना चाहते थे या जिसे जताने के लिए वे संसद में बहस की मांग कर रहे हैं।

अगर 25 विपक्षी दलों के तकरीबन 300 सांसद अपनी शिकायतें बताने के लिए निर्वाचन आयोग के पास जाना चाहते थे, उन्हें बीच में रोकना किसी रूप में लोकतांत्रिक कदम नहीं कहा जा सकता। गौरतलब है कि ये सभी निर्वाचित सांसद हैं, जो देश के एक बड़े जनमत का प्रतिनिधित्व करते हैँ। संसद भवन से शुरू हुआ मार्च किसी ऐसे समूह का नहीं था, जिसके अनियंत्रित हो जाने और जिससे कानून-व्यवस्था की समस्या खड़ी होने का अंदेशा होता। लेकिन केंद्र और निर्वाचन आयोग ने जो नजरिया अपनाया, उससे लगता है कि वे विपक्ष को चुनाव प्रक्रिया में वैध स्टेकहोल्डर (हितधारक) नहीं मानते। वे उनकी बातों या शिकायतों को सुनने योग्य भी नहीं समझते! वरना, बिहार में मतदाता सूची के हुए विशेष गहन पुनरीक्षण मामले में संसद में बहस की मांग केंद्र नहीं ठुकराता और निर्वाचन आयोग निष्पक्ष संवैधानिक संस्था के रूप में व्यवहार करने के बजाय विपक्षी दलों के प्रति हिकारत भरा रुख नहीं अपनाता।

इसी नजरिए का संकेत है कि सोमवार को एक तरफ निर्वाचन आयोग ने सांसदों के प्रतिनिधिमंडल से मिलने के मामले में तकनीकी रुख अपनाया, तो दूसरी तरफ प्रशासन ने बैरिकेडिंग करके और सांसदों को हिरासत में लेकर एक तरह के दमनकारी रुख का परिचय दिया। मुद्दा यह है कि देश की राजधानी में अगर निर्वाचित सांसदों को प्रदर्शन करने की इजाजत नहीं है, तो फिर आम नागरिक अपने लिए क्या अपेक्षा रख सकते हैं? स्पष्टतः असहमति के स्वर को दबाना भारतीय लोकतंत्र के लिए अच्छा संकेत नहीं है।

इससे वे शक और गहरे होंगे, जिन्हें बताने के लिए विपक्षी सांसद निर्वाचन भवन तक जाना चाहते थे या जिसे जताने के लिए वे संसद में इस मुद्दे पर बहस की मांग कर रहे हैं। सत्ता पक्ष एवं संवैधानिक संस्थाओं का यह दायित्व होता है कि वे ऐसे संदेहों के निवारण के लिए विश्वसनीय कदम तुरंत उठाएं। इसकी शुरुआत विपक्ष के साथ संवाद बना कर की जा सकती है, जिसका एक मौका सोमवार को निर्वाचन आयोग के पास था। लेकिन विपक्षी प्रदर्शन के प्रति सख्त और हिकारत भरा रुख अपना कर उसने यह मौका गंवा दिया है। यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है।

Tags :

By NI Editorial

The Nayaindia editorial desk offers a platform for thought-provoking opinions, featuring news and articles rooted in the unique perspectives of its authors.

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *