यूजीसी को सौंपे गए 900 से अधिक गणितज्ञों के पत्र का सार हैः ‘गणित में शानदार प्रदर्शन की विरासत रखने वाले इस देश में पाठ्यक्रम ऐसा होना चाहिए, जो समकालीन दुनिया के तकाजों को पूरा करने के लिए छात्रों को तैयार करे।’
नौ सौ से ज्यादा प्रतिष्ठित गणितज्ञों ने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग से अंडर ग्रैजुएट के लिए गणित के प्रस्तावित पाठ्यक्रम को वापस लेने की मांग की है, तो इस पर गंभीरता से ध्यान दिया जाना चाहिए। अनेक पुरस्कारों से सम्मानित ये गणितज्ञ देश और विदेश की नामी संस्थाओं में कार्यरत हैं। उन्होंने यह साझा ज्ञापन भारत के भविष्य की चिंता करते हुए तैयार किया है। उनके पत्र का सार हैः ‘गणित में शानदार प्रदर्शन की विरासत रखने वाले इस देश में पाठ्यक्रम ऐसा होना चाहिए, जो समकालीन दुनिया के तकाजों को पूरा करने के लिए छात्रों को तैयार करे।’ मतलब साफ है। भारत में प्राचीन काल में गणित से संबंधित महत्त्वपूर्ण काम हुए। मगर उसके बाद यह ज्ञान और विकसित हुआ।
आज गणित ज्ञान जहां हैं, वह उस लंबे विकासक्रम का नतीजा है। इसलिए यह गर्व करना तो उचित है कि इस विकासक्रम में भारत ने भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई, मगर जिन मुकामों से बात आगे जा चुकी है, उन्हीं में आज के नौजवानों को लपेटने की कोशिश इस देश के भविष्य के लिए हानिकारक होगा। यूजीसी के पाठ्यक्रम में क्या खामियां हैं, उसका विशेषज्ञों ने ज्ञापन में विस्तार से जिक्र किया है। कहा है- ‘पाठ्यक्रम के प्रारूप में ऐसी बुनियादी खामियां हैं, जिनसे गणित का ज्ञान प्रभावित हो सकता है। साथ ही अनुसंधान की गुणवत्ता कमजोर हो सकती है।’
नई शिक्षा नीति-2020 के तहत तैयार इस पाठ्यक्रम में वैदिक गणित, भारतीय बीजगणित, प्राचीन खगोलशास्त्र, रेखा गणित में नारद पुराण के संदर्भ, पंचांग आधारित मुहूर्त गणना और वर्तमान ग्रीनविच मीन टाइम के साथ प्राचीऩ भारतीय समय इकाइयों की तुलना आदि को शामिल किया गया है। इनके अलावा भारतीय बीज गणित का इतिहास और प्राचीन फॉर्मूलों के उपयोग की शिक्षा भी पाठ्यक्रम में है। गणितज्ञों को आशंका है कि इन सबको पढ़ने-पढ़ाने में इतना वक्त लग जाएगा कि आधुनिक तकनीक एवं औद्योगिक जरूरतों के अनुरूप गणित का पर्याप्त ज्ञान छात्र हासिल नहीं कर पाएंगे। नतीजतन, प्राचीन भारत में क्या था, यह ज्ञान तो उनके पास होगा, लेकिन आज की प्रतिस्पर्धा में जिस कौशल की जरूरत है, उसमें वे पिछड़ते चले जाएंगे।