ट्रंप मोदी की खूब तारीफ करते हैं। उन्हें ‘महान नेता’, ‘बहुत करीबी दोस्त’, ‘शानदार काम कर रहे नेता’ बताते हैं। लेकिन लगे हाथ वे ऐसे फैसले भी कर रहे हैं, जिनसे भारत के दीर्घकालिक हितों को क्षति पहुंच रही है।
डॉनल्ड ट्रंप प्रशासन के नीतिकार संभवतः इस निष्कर्ष पर हैं कि भारतीय विदेश नीति का प्रमुख मकसद देश के अंदर सर्व-प्रमुख विश्व नेता के रूप में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का छवि निर्माण है। यह हो रहा हो, तो फिर अन्य मोर्चों पर क्या होगा, भारत इसकी फिक्र नहीं करता! तो ट्रंप ने भारत के मामले में एक खास कार्यशैली अपना ली है। वे अपने हर बयान में मोदी की खूब तारीफ करते हैं। उन्हें ‘महान नेता’, ‘बहुत करीबी दोस्त’, ‘शानदार काम कर रहे नेता’ बताते हैं। लेकिन लगे हाथ वे ऐसे फैसलों का एलान भी करते हैं, जिनसे भारत के दीर्घकालिक हितों को क्षति पहुंच रही है। ऊंचे आयात शुल्क के जरिए भारतीय उत्पादों की अमेरिकी बाजार में पहुंच सीमित कर देना और रूस से तेल खरीदने के लिए भारत को खरी-खोटी सुनाना अब पुरानी बातें हो गई हैं।
ताजा फैसलों में उन्होंने भारत को ड्रग्स की तस्करी करने वाले देशों की सूची में डालते हुए कई भारतीय कंपनियों के अधिकारियों का वीजा रद्द कर दिया है। उधर एच-1बी वीजा पाने की शर्तें ऐसी कर दी हैं कि अधिकांश भारतीयों के लिए अमेरिका में काम करने जाना लगभग नामुमिकन हो जाएगा। मगर इससे भी बड़ी रणनीतिक चोट उन्होंने चाबहार बंदरगाह के मामले में पहुंचाई है। इसके निर्माण एवं संचालन में अमेरिकी प्रतिबंधों से भारत को मिली छूट उन्होंने खत्म कर दी है। इस तरह भारत के लिए इस महत्त्वाकांक्षी परियोजना को जारी रखना बेहद जोखिम भरा हो गया है।
अभी पिछले साल ही मोदी सरकार ने इस बंदरगाह की 10 वर्ष की लीज का करार ईरान से किया था। इस बंदरगाह को भारत पाकिस्तान में चीन द्वारा बनाए गए ग्वादार बंदरगाह के जवाब के रूप में देखता रहा है। मध्य एवं पूर्व एशिया तक सीधी पहुंच के लिए इससे भारत का मार्ग मिलने वाला था, क्योंकि इसके जरिए वह इंटरनेशनल नॉर्थ- साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर से जुड़ जाता। फिर भारत की साख का सवाल है। अमेरिकी दबाव में भारत पीछे हटा, तो भारत की कारोबारी वचनबद्धताएं संदिग्ध होंगी। यह आत्मघाती कदम होगा। और ऐसा नहीं हुआ, तो फिर भारतीय कंपनियों को अमेरिकी प्रतिबंध झेलने पड़ेंगे।