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24-03-2025 Vol 19

क्रूर और अपमानजनक

illegal immigrants: अमेरिका में बिना किसी अधिकार के, न्यूनतम मजदूरी से भी कम पर काम करने के लिए सैकड़ों लोगों का बेसब्र रहना (अवैध आव्रजकों की ये आम कहानी है) भारत के संभावना-शून्य होने की बनी धारणा को ही इंगित करता है।

किसी देश में किसी को अवैध रूप से रहने का अधिकार है, यह तर्क कोई विवेकशील व्यक्ति नहीं दे सकता। इसलिए अमेरिका के अपने यहां से अवैध आव्रजकों को निकालने के अधिकार को चुनौती नहीं दी जा सकती।

मगर मानव अधिकार की वैश्विक धारणा के मुताबिक किसी भी स्थिति में किसी व्यक्ति की मूलभूत गरिमा का उल्लंघन नहीं किया जा सकता।

इसीलिए डॉनल्ड ट्रंप के दौर में अवैध आव्रजकों को जिस क्रूर ढंग से वापस भेजा जा रहा है, उस पर तीखी प्रतिक्रिया लाजिमी है।

इस मामले में कोलंबिया ने मिसाल कायम की, जब उसने सैनिक विमानों में भर कर भेजे गए अपने नागरिकों को स्वीकार करने से इनकार कर दिया।

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सैनिक विमान में भारत लौटाया(illegal immigrants)

उसके बाद कोलंबिया के राष्ट्रपति गुस्तावो पेट्रो ने ट्रंप से ‘डील’ की और उसके अनुरूप अपने विमान भेज कर अपने नागरिकों को स-सम्मान वापस बुलाया। कुछ इसी राह पर मेक्सिको की राष्ट्रपति क्लाउडिया शीनबॉम भी चलीं।

इसीलिए जिस तरह 104 भारतीयों को हथकड़ी या बेडियां पहना कर सैनिक विमान में भारत लौटाया गया, उससे हर जागरूक भारतीय ने अपने आत्म-सम्मान पर चोट महसूस की है।

हैरतअंगेज है कि भारत सरकार ने भारतीयों के प्रति ट्रंप प्रशासन के इस अपमानजनक व्यवहार पर एतराज नहीं जताया है।(illegal immigrants)

सरकार का यह रुख सिरे से अस्वीकार्य है। वापस आए लोगों की जो कहानियां सामने आई हैं, वह भारत की बदहाली की एक अलग सूरत पेश करती हैं।

भारत में ही कोई कारोबार कर लें

अमेरिका में अवैध प्रवेश के लिए सैकड़ों लोगों की बेताबी क्या देश में अपने भविष्य को लेकर पैदा हुई हताशा का संकेत नहीं है?

जो लोग 50-55 लाख रुपये तक इसके लिए खर्च कर सकते हैं, आखिर उनके दिमाग में यह बात क्यों नहीं आई कि इतने निवेश से वे भारत में ही कोई कारोबार कर लें और अपने माहौल में सम्मान की जिंदगी जियें?(illegal immigrants)

इसके बदले अमेरिका में बिना किसी अधिकार के, न्यूनतम मजदूरी से भी कम पर काम करने के लिए बेसब्र रहना (अवैध आव्रजकों की ये आम कहानी है) भारत के संभावना-शून्य होने की बनी धारणा को ही इंगित करता है। अब अहम सवाल है कि क्या यह घटना भारत में किसी गंभीर आत्म-मंथन को प्रेरित करेगी?

NI Editorial

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