द्विपक्षीय निवेश संधि पर अभी सहमति नहीं बनी है। कार्बन टैक्स का मसला भी बरकरार है। इस लिहाज से भारत और ब्रिटेन के बीच जिस मुक्त व्यापार समझौते का लक्ष्य रखा गया है, उसे अभी पूरा हासिल नहीं किया जा सका है।
भारत और ब्रिटेन के बीच आखिरकार मुक्त व्यापार समझौते पर सहमति बन गई है। अभी पिछले हफ्ते तक इसको लेकर उम्मीद मद्धम थी। लेकिन ऐसे संकेत हैं कि डॉनल्ड ट्रंप के टैरिफ वॉर से बनी विश्व अस्थिरता ने खासकर ब्रिटेन को यह समझौता जल्द करने के लिए प्रेरित किया।
ब्रेग्जिट के बाद से ब्रिटेन नए बाजारों की तलाश में रहा है, जिसमें इस करार के पहले तक उसे ज्यादा कामयाबी नहीं मिली थी। ब्रेग्जिट के साथ यूरोपियन यूनियन का बड़ा बाजार ब्रिटेन की मुक्त पहुंच से बाहर हो गया था। उसके बाद से ब्रिटिश अर्थव्यवस्था डांवाडोल है। इधर भारत भी अपने उत्पादों और अपने सेवा क्षेत्र के लिए नए बाजारों की तलाश में है।
भारत-ब्रिटेन मुक्त व्यापार समझौता
इस करार से अल्कोहल, कॉस्मेटिक्स, चॉकलेट, सॉफ्ट ड्रिंक्स, बिस्किट आदि ब्रिटिश उत्पादों पर भारत में आयात शुल्क में भारी कटौती होगी, जिससे उनका यहां बाजार बढ़ने की आशा है। उधर भारत के वस्त्र, जूता-चप्पल और खाद्य उत्पादों के लिए ब्रिटिश बाजार में अनुकूल स्थितियां बनेंगी।
हालांकि ब्रिटेन अपनी आव्रजन नीति में बदलाव के लिए राजी नहीं हुआ है, फिर भी भारतीय पेशेवरकर्मियों के लिए वीजा प्रक्रिया को आसान बनाने पर वह सहमत हुआ है। इसके तहत भारत के रसोइयों, संगीतकारों और योग प्रशिक्षकों के लिए हर साल 1,800 वीजा वह देगा। मगर द्विपक्षीय निवेश संधि पर अभी सहमति नहीं बन सकी है। इसी तरह कार्बन टैक्स का विवादास्पद मसला जस का तस बरकरार है।
इन मसलों पर बातचीत जारी रखने का संकल्प जताया गया है। इस लिहाज से कहा जा सकता है कि पहले जिस मुक्त व्यापार समझौते का लक्ष्य रखा गया था, उसे अभी पूरा हासिल नहीं किया जा सका है। इस बीच जहां तक सहमतियां थीं, वहां तक फिलहाल व्यापार के दरवाजे खोलने पर दोनों देश राजी हुए हैं।
उम्मीद की जा सकती है कि इससे भरोसे का माहौल मजबूत होगा। व्यापार समझौतों में कई तरह के हित जुड़े होते हैं। हर पक्ष को उनका ख्याल रखना होता है। इसीलिए भारत-ब्रिटेन के बीच ये समझौता कम से कम तीन साल से टल रहा था। अब यह सुनिश्चित करना होगा कि इस पर अमल का तजुर्बा अच्छा रहे।
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