सेना की ओर से कार्रवाई का विवरण देने के लिए सामने आईं कर्नल सोफिया कुरैशी। साथ ही वायुसेना, जिसने जवाबी कार्रवाई को अंजाम दिया, की ओर से आईं विंग कमांडर व्योमिका सिंह। इन दोनों महिला अधिकारियों का मंच पर आना अपने-आप में एक बड़ा और ताकतवर संदेश है। लेकिन विशेष ध्यान खींचा कर्नल कुरैशी ने—एक मुस्लिम महिला अधिकारी, जो देश की सबसे बड़ी सेना, थल सेना, की ओर से प्रतिनिधित्व कर रही थीं। यह वह संदेश था, जिसकी गूंज दूर तक जाएगी।
मैसेजिंग बड़ी चीज़ है—चाहे देश के भीतर हो, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हो, या उस पड़ोसी पाकिस्तान में, जो पहलगाम हमले के बाद भारत में हिंदू-मुसलमान तनाव भड़कते देखना चाहता था। उस हमले का जवाब भारतीय सेना ने मंगलवार रात को दिया। लेकिन उससे भी बड़ा जवाब था—बुधवार को की गई प्रेस ब्रीफिंग, जिसने पाकिस्तान के हिंदू-मुस्लिम एजेंडे को पूरी तरह ध्वस्त कर दिया।
सेना की ओर से कार्रवाई का विवरण देने के लिए सामने आईं कर्नल सोफिया कुरैशी। साथ ही वायुसेना, जिसने जवाबी कार्रवाई को अंजाम दिया, की ओर से आईं विंग कमांडर व्योमिका सिंह। इन दोनों महिला अधिकारियों का मंच पर आना अपने-आप में एक बड़ा और ताकतवर संदेश है।
लेकिन विशेष ध्यान खींचा कर्नल कुरैशी ने—एक मुस्लिम महिला अधिकारी, जो देश की सबसे बड़ी सेना, थल सेना, की ओर से प्रतिनिधित्व कर रही थीं। यह वह संदेश था, जिसकी गूंज दूर तक जाएगी। यह पाकिस्तान के लिए सीधा संदेश था: भारत में सभी एक हैं। और भारत की वह सेना जो आज तुम्हें जवाब दे रही है, उसमें हर जाति और हर धर्म के लोग बराबरी से कंधे से कंधा मिलाकर लड़ रहे हैं। कर्नल कुरैशी का नाम प्रेस ब्रीफिंग के मंच पर आते ही पाकिस्तान का आधा हौसला गिर गया होगा।
हालांकि अफसोस यह है कि पाकिस्तान जो चाहता है वैसा ही हमारे यहां भी कुछ लोग कर रहे हैं। ब्रीफिंग की शुरूआत में विदेश सचिव विक्रम मिस्त्री ने कहा कि पाकिस्तान इस आतंकवादी हमले के द्वारा भारत में हिंदू -मुस्लिम तनाव चाहता था। लेकिन देश की जनता ने उसे असफल कर दिया। सहीं बात है। जनता ने हिंदू-मुस्लिम एकता टूटने नहीं दी। और इसकी सबसे बड़ी मिसाल पहलगाम में शहीद हुए नेवी लेफ्टिनेंट विनय नरवाल की पत्नी हिमांशी नरवाल बनीं। जिन्होंने कहा कि मुसलमान और कश्मीरियों को निशाना नहीं बनाना चाहिए। हालांकि यह एक सामान्य और जरूरी बात कहने पर हिमांशी के खिलाफ पूरा एक अभियान शुरू हो गया। बेहद गंदा।
लेकिन यही हमारे विदेश सचिव मिस्त्री ने कहा कि जो पाकिस्तान चाहता था वह भारत की जनता ने नहीं होने दिया। नहीं तो अगर हो जाता तो वह पहलगाम हमले से कई गुना ज्यादा खतरनाक होता। और यही मैसेज देने के लिए सेना कर्नल सोफिया कुरैशी को लेकर आई। मैसेज पाकिस्तान के लिए तो है ही पूरी दुनिया के लिए भी है कि पाकिस्तान एक आतंकवाद को पनाह देना वाला धर्म आधारित देश और भारत अपनी धर्मनिरपेक्षता सब मिलकर रहने और जरूरत पड़ जाए तो साथ मिलकर लड़ने की पंरपरा वाला देश। दुनिया को देने के लिए अच्छा मैसेज। और मैसेज अपने देश के उन लोगों के लिए भी जो इसमें हिंदू मुसलमान ढुंढ रहे थे।
कर्नल सोफिया कुरैशी, राहुल गांधी का मजबूत नेतृत्व और मोदी सरकार की प्रतिक्रिया
सेना ने अच्छा काम किया। यह भी और पाकिस्तान और वहां से संचालित आतंकवाद को जोरदार जवाब देकर भी। लिमिटेड कारगर। किसी पाकिस्तानी सैनिक अड्डे पर कार्रवाई नहीं की। उकसाने से खुद को दूर रखा। ताकि उसे दुनिया को कहने का मौका नहीं मिले कि भारत ने एक राष्ट्र के साथ ऐसा किया है। संदेश बड़ा साफ है कि हमने केवल अपनी सुरक्षा के लिए उन आतंकवादी अड्डों और ट्रेनिंग सेन्टरों को खतम किया है जहां से भारत के खिलाफ आतंकवाद चलाया जा रहा था। जिसके चलते पहलगाम में हमारे निर्दोष नागरिकों पर हमला किया गया। अपने नागरिकों को न्याय दिलाने के लिए अपनी आत्मरक्षा के अधिकार का थोड़ा सा प्रयोग।
पूरा देश यही चाहता था। पहले भी सरकार के साथ खड़ा रहा और आपरेशन सिंदूर के बाद और मजबूती से सरकार के साथ खड़ा हुआ है। पहलगाम के हमले ने पूरे देश को हिला दिया था। सभी ने सरकार से कड़ी कार्रवाई की मांग की थी। नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी अमेरिका में थे वहां का अपना दौरा छोड़कर तत्काल वापस आए। आते ही कांग्रेस वर्किंग कमेटी (सीड्ब्ल्यूसी) की मीटिंग में गए। मौन रखा। देश के साथ एकजुटता प्रदर्शित की। और आतंकवादी हमले में मारे गए लोगों के ले न्याय मांगा। सरकार को पूरे सहयोग का आश्वासन दिया। फिर शाम को उस सर्वदलीय मीटिंग में गए जिसमें पहले से मालूम पड़ गया था कि प्रधानमंत्री मोदी नहीं आ रहे हैं।
राजनाथ सिंह को जिम्मेदारी निबाहने के लिए कह दिया गया है। सीडब्ल्यूसी की मीटिंग में यह विषय उठा। कुछ लोगों का कहना था कि अगर प्रधानमंत्री खुद नहीं आ रहे हैं तो नेता प्रतिपक्ष को भी नहीं जाना चाहिए। मगर राहुल गांधी गए। वहां भी प्रधानमंत्री तो थे नहीं जो उपलब्ध नेता थे राजनाथ सिंह उन्हें भरोसा दिला कर आए कि मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस सरकार के साथ है।
राहुल ने बहुत मजबूत स्टेंड लिया। और प्रधानमंत्री मोदी को भी समझ में आ गया कि इस समय देश राहुल गांधी के एक्शन से प्रभावित हो रहा है। समझा जाता है कि आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत जो अचानक प्रधानमंत्री मोदी से मिलने गए थे तो उसमें अन्य बातों जाति गणना से असहमति के अलावा यह बात भी थी कि पहलगाम हमले के बाद देश राहुल के साथ लोगों का समर्थन बढ़ रहा है। आरएसएस के लोग समाज के हर वर्ग खास तौर से मध्यम वर्ग में हमेशा सक्रिय रहते हैं इसलिए उनके पास माहौल की जानकारी होती है।
अवसर पर ही और खास तौर से कठिन अवसर पर ही व्यक्ति की बुनावट की पहचान होती है। राहुल ने इन थोड़े से दिनों में जनता का दिल जीतने का लंबा सफर तय कर लिया। एक के बाद उनकी सारी गतिविधियां हमले में मारे गए लोगों को न्याय दिलाने, आतंकवाद के खिलाफ मजबूत आवाज उठाने और सबसे बड़ी बात अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर यह मैसेज देने की पूरा देश एक है। विपक्ष सरकार के साथ मजबूती से खड़ा हुआ है। दोषी पाकिस्तान है। उसे कड़ा सबक मिलना चाहिए।
दूसरी तरफ प्रधानमंत्री मोदी पता नहीं किसके प्रभाव में पहलगाम मुद्दे की गंभीरता को समझने में असमर्थ रहे। हमने बोला ( चैनल पर) कि इस समय यह बातें बताने का मौका नहीं है। मगर देश की स्थिति मांग करती है कि कुछ सही तथ्य सामने रखे जाएं। हमने कहा कि बहुत बड़ी तादाद में प्राइवेट सलाहकार नियुक्त कर लिए गए हैं। वे जवाबदेह नहीं होते। देश, संविधान, सुरक्षा और प्रधानमंत्री नाम की संस्था के प्रति भी। प्रधानमंत्री को अपने वरिष्ठ अधिकारियों ( ब्यूरोक्रेसी) सेना के अधिकारियों और विदेश सेवा के वरिष्ठ अधिकारियों से सलाह लेना चाहिए। ये सब ही सच्चे सलाहकार होते हैं। जिम्मेदारी समझते हैं। उनका अनुभव केवल उनकी नौकरी के सालों तक का ही नहीं होता पीछे से विभाग का, काम कर चुके अधिकारियों के पूर्व उल्लेखों का और डिपार्टमेंट की लंबी परंपरा का होता है। वे हमेशा जवाबदेही के सिद्धांत से बंधे होते हैं।
मोदी भी घटना के समय विदेश में थे। सऊदी अरब। वे भी वहां से वापस आए। मगर गए कहां? बिहार। चुनाव रैली में। फिर केरल। वहां केरल के मुख्यमंत्री को देखकर इंडिया गठबंधन को इंडी गठबंधन कहकर कटाक्ष कर रहे। और शशि थरूर को देखकर तो यह बोलने से खुद को रोक नहीं पाए कि बहुत सारे लोगों की रात की नींद हराम हो जाएगी। मतलब मेरे साथ थरूर बैठे हैं। कांग्रेस गई काम से। भक्तों का स्तर इतना ही है। खुब खुश होकर हंसते हैं। मीडिया भी ऐसा ही हो गया है। उसे भी इन हल्की बातों में बहुत मजा आता है।
खैर फिर इसके बाद प्रधानमंत्री ने क्या किया। ऐसा बड़ा फैसला कि जो उसकी मांग कर रहे थे वे भी ने केवल हैरान हो गए बल्कि कहने लगे कि अभी इस समय इसका क्या मतलब।मतलब एक ही था इश्यू डाइवर्ट करना। मगर हुआ नहीं। घाव गहरा था। और राहुल ने उस दर्द को समझा था। खैर अब पूरे देश में एक संतोष का भाव है। और सबसे बड़ी बात यह विश्वास कि अभी आइडिया आफ इंडिया जिन्दा है। सबको साथ लेकर चलने का। सैनिक कार्रवाई तो सब जानते थे कि भारत इस मामले में बहुत समर्थ देश है। जब चाहे कर देगा। मगर देश की एकता बड़ा विषय है। और वह मैसेज सेना ने बहुत अच्छी तरह दिया।
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