आर्थिक वृद्धि में सबसे बड़ा योगदान वित्तीय सेवाओं और कंस्ट्रक्शन का रहा। कंस्ट्रक्शन का 8.4 प्रतिशत रहा, जो 12 साल में सबसे ऊंचा है। वित्तीय सेवाओं का योगदान 21.7 प्रतिशत रहा। मगर मैनुफैक्चरिंग और शहरी उपभोग की स्थिति चिंताजनक बनी रही।
सकल घरेलू उत्पाद के 2024-25 की अंतिम तिमाही- और उसके साथ ही स्पष्ट हुए पूरे वित्त वर्ष के आंकड़ों को लेकर मोटे तौर पर दो तरह की सुर्खियां बनीं। एक यह कि चौथी तिमाही में आर्थिक वृद्धि दर अपेक्षा से बेहतर रही। दूसरी यह कि आर्थिक वृद्धि की दर गिरी।
वैसे एक सुर्खी यह भी बनी कि कोरोना महामारी के बाद गुजरे वित्त वर्ष में सबसे निम्न वृद्धि दर दर्ज हुई। तो चौथी तिमाही के लिए वृद्धि का आंकड़ा 7.4 प्रतिशत और पूरे वर्ष के लिए 6.5 प्रतिशत है। इन आंकड़ों के साथ भी भारत दुनिया में “सबसे तेज गति से बढ़ रही” अर्थव्यवस्था बना हुआ है। मगर अब दूसरी हकीकतों पर गौर करें।
वित्तीय सेवा निर्माण से आर्थिक बढ़त
मसलन, जो वृद्धि दर्ज हुई, वह कहां से आई? इसमें सबसे बड़ा योगदान वित्तीय सेवाओं और कंस्ट्रक्शन का रहा। कंस्ट्रक्शन का 8.4 प्रतिशत रहा, जो 12 साल में सबसे ऊंचा है। कंस्ट्रक्शन में मुख्य निवेश सरकारी क्षेत्र का रहा, जिस वजह से हुए निर्माण और बढ़े उपभोग ने कुल मूल्य वर्धन (जीवीए) में महत्त्वपूर्ण योगदान किया।
वित्तीय सेवाओं का आर्थिक वृद्धि में योगदान 21.7 प्रतिशत रहा। कृषि क्षेत्र में 4.6 प्रतिशत की स्वस्थ वृद्धि दर दर्ज हुई। इस कारण ग्रामीण उपभोग में भी सकारात्मक रुझान देखने को मिला। मगर मैनुफैक्चरिंग और शहरी उपभोग की स्थिति चिंताजनक बनी रही। इसका बड़ा कारण निजी निवेश ना बढ़ना है।
इस कारण गैर-कृषि और गैर-कंस्ट्रक्शन क्षेत्रों में रोजगार सृजन और वेतन वृद्धि की रफ्तार मद्धम बनी हुई है। दरअसल, स्थायी रोजगार की स्थिति तो बदतर होती जा रही है। ऐसे में निजी घरेलू उपभोग के बढ़ने की स्थितियां नकारात्मक बनी हुई हैँ। ये समस्या दीर्घकालिक हो चुकी है। ऐसे में आर्थिक वृद्धि दर का धीमा होना लाजिमी है।
दरअसल, कोरोना के ठीक बाद के वर्षों में दिखी ऊंची वृद्धि दर का बड़ा कारण निम्न आधार पर हो रही गणना थी। अब वो सुविधा हट चुकी है। ऊपर से अब अमेरिका के टैरिफ वॉर से बन रही नई परिस्थितियों की चुनौती है। उससे उत्पादन एवं उपभोग दोनों क्षेत्रों पर खराब असर होने की आशंका है। जाहिर है, चालू वित्त वर्ष और चुनौती भरा होगा।
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