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22-04-2025 Vol 19

असहमति की फिर अनदेखी

वर्तमान सरकार का नजरिया सार्वजनिक मामलों में खुद से असहमत किसी अन्य पक्ष को अंशधारी ना मानने का है। उस सोच का खुला प्रदर्शन नई आपराधिक न्याय संहिताओं के मामले में भी हुआ है, जिन पर पुनर्विचार की मांग ठुकरा दी गई है।

नई आपराधिक न्याय संहिताएं आज से लागू हो गई हैं। नई संसद में इन पर पुनर्विचार की मांग को सरकार ने ठुकरा दिया। विपक्ष और सिविल सोसायटी संगठनों की इस मांग की सिरे से अनदेखी कर दी गई कि आम सहमति बनने तक अमल टाला जाए। वर्तमान सरकार का नजरिया सार्वजनिक मामलों में खुद से असहमत किसी अन्य पक्ष को अंशधारी ना मानने का रहा है। उस सोच का खुला प्रदर्शन इस मामले में भी हुआ है। याद रखना चाहिए कि पिछली लोकसभा में नई संहिताओं से संबंधित विधेयकों को जब पारित किया गया था, विपक्ष के लगभग डेढ़ सौ सांसद निलंबित किए जा चुके थे।

इस तरह इन पर बहस के दौरान विपक्ष की राय व्यक्त होने से रह गई थी। उधर इन पर सभी पक्षों के बीच खुली सार्वजनिक चर्चा भी नहीं कराई गई। इसके बावजूद भारतीय न्याय संहिता-2003, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, और भारतीय साक्ष्य अधिनियम-2023 को अब लागू कर दिया गया है। सरकार ने इसका भी ख्याल नहीं रखा कि इन संहिताओं के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट फिलहाल एक जनहित याचिका पर सुनवाई कर रहा है।

याचिका में मांग की गई है कि तीनों अधिनियमों को लागू करने से पहले एक एक्सपर्ट कमेटी का गठन किया जाए, जो इनका विस्तृत अध्ययन करे। यह मसला इसलिए अहम है, क्योंकि नई संहिताओं से हर नागरिक प्रभावित होने वाला है। नए आपराधिक कानूनों के प्रमुख प्रावधानों में घटनाओं की ऑनलाइन रिपोर्ट करना, किसी भी पुलिस थाने में प्राथमिकी यानी जीरो एफआईआर दर्ज कराना, प्राथमिकी की कॉपी प्राप्त करना, गिरफ्तारी की स्थिति में सूचना मांगने का अधिकार, फॉरेंसिक साक्ष्य संग्रह और वीडियोग्राफी आदि से संबंधित प्रक्रियाएं शामिल हैं।

अनेक विधि विशेषज्ञों ने कहा है कि नए कानून अस्पष्ट हैं। साथ ही इनमें जमानत की प्रक्रिया दुरूह बना दी गई है, पुलिस को व्यापक शक्तियां प्रदान की गई हैं और गिरफ्तारी के दौरान हथकड़ी पहनाने जैसे पुरातन एवं दमनकारी प्रावधान शामिल किए गए हैँ। यानी नए कानून की कई धाराएं समस्याग्रस्त हैं। इनकी वजह से अभिव्यक्ति की एवं अन्य नागरिक स्वतंत्रताएं संकुचित हो सकती हैं। इसीलिए अब भी इन पर पुनर्विचार की जरूरत बनी हुई है।

NI Editorial

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