Thursday

24-04-2025 Vol 19

गडकरी की जायज मांग

जीवन बीमा और मेडिकल प्रीमियम पर टैक्स लगेगा, यह कभी कल्पना से भी बाहर था। लेकिन मोदी सरकार में यह मुमकिन हुआ। यह पहला मौका है, जब इसके खिलाफ सत्ताधारी भाजपा के अंदर से कोई आवाज उठी हो।

गुजरे दस साल में यह शायद पहला मौका है, जब नरेंद्र मोदी मंत्रिमंडल के एक वरिष्ठ सदस्य ने एक सरकारी कदम को वापस लेने की अपनी मांग को सार्वजनिक कर दिया हो। यह मांग जायज और मध्य वर्ग के बहुत बड़े हिस्से की भावनाओं के अनुरूप है। इसलिए इससे सरकार के लिए गंभीर असमंजस पैदा हो सकता है। वरिष्ठ मंत्री नितिन गडकरी ने जीवन बीमा निगम कर्मचारी यूनियन की इस मांग का समर्थन करते हुए उसे वित्त मंत्री के पास भेजा है कि मेडिकल बीमा और जीवन बीमा पॉलिसियों पर से जीएसटी हटाया जाए। निर्मला सीतारमन को भेजे पत्र में गडकरी ने कहा है- ‘यूनियन की राय में लोग अपने परिवार को सुरक्षा देने के मकसद से जीवन संबंधी अनिश्चितताओं के कवरेज की पॉलिसियां खरीदते हैं। जोखिम से बचने के लिए लोग जो प्रीमियम देते हैं, उस पर टैक्स नहीं लगना चाहिए।’ उन्होंने कहा- ‘इसी तरह मेडिकल प्रीमियम पर 18 प्रतिशत जीएसटी के कारण सामाजिक रूप से जरूरी इस क्षेत्र में कारोबार की वृद्धि में रुकावट आ रही है।’ उन्होंने वित्त मंत्री से अनुरोध किया है कि इन दोनों मामलों में जीएसटी हटाने की मांग पर वे विचार करें।

जीवन बीमा और मेडिकल प्रीमियम पर टैक्स लगेगा, यह कभी कल्पना से भी बाहर था। लेकिन मोदी सरकार में यह मुमकिन हुआ। स्वाभाविक रूप से मध्य वर्ग इस कदम से सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ। यह वर्ग सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी का प्रमुख वोट आधार रहा है, लेकिन अब तक पार्टी के अंदर से इसके खिलाफ कोई आवाज नहीं उठी थी। यह 2024 के चुनाव के बाद बदले सियासी हालात का ही संकेत है कि अब गडकरी ने सार्वजनिक रूप से यह टैक्स हटाने की मांग की है। यह मांग ठीक उस समय पेश की गई है, जब ताजा बजट में अल्पकालिक एवं दीर्घकालिक पूंजीगत निवेश कर में वृद्धि तथा जायदाद की बिक्री पर इंडेक्सेशन की सुविधा खत्म किए जाने के कारण मध्य वर्ग में गहरा असंतोष है। बहरहाल, जीवन और मेडिकल बीमा पर टैक्स की सोच बुनियादी रूप से समस्याग्रस्त है, इसलिए बेहतर होगा कि वित्त मंत्री गडकरी के सुझाव के अनुरूप कदम उठाएं।

NI Editorial

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