nayaindia democracy without opposition विपक्षहीन लोकतंत्र : निंदक नियरे राखिए आंगन कुटी छवाय....

विपक्षहीन लोकतंत्र : निंदक नियरे राखिए आंगन कुटी छवाय….

दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश हमारे भारत की आजादी की हम हीरक जयंती मना रहे हैं, लेकिन क्या हमारे देश के मुख्य कर्णधारो ने कभी इस सच्चाई पर भी गौर किया कि बिना अधिकारिक या संवैधानिक विपक्ष के लोकतंत्र अधूरा है? हमारी आजादी के 75 सालों में से करीब 48 साल देश विपक्ष विहीन रहा भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के बाद उनके नाती राजीव गांधी के शासन काल में भी विपक्ष नदारद रहा और अब मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र भाई मोदी के शासनकाल में भी प्रतिपक्ष नहीं है यही नहीं यदि हम अब तक हमारे देश का इतिहास देखें तो आजादी के 22 साल बाद हमारे देश में विपक्ष नजर आया था जो संवैधानिक मान्यता प्राप्त था अर्थात पंडित नेहरू के 15 साल 206 दिन के शासनकाल में प्रतिपक्ष अस्तित्व में नहीं रहा|

यही नहीं पंडित नेहरू के बाद प्रधानमंत्री रहे श्री लाल बहादुर शास्त्री के कार्यकाल में भी कोई अधिकृत प्रतिपक्ष नहीं रहा इंदिरा जी ने देश पर 16 साल से भी अधिक राज किया, जिसमें सिर्फ 1969 मैं एक अवसर ऐसा आया जब लोकसभा को पहली बार राम सुभाग सिंह के रूप में विपक्ष का पहला नेता मिला। इंदिरा जी के बाद 10 साल चार माह राजीव गांधी प्रधानमंत्री रहे, इन्हें भी प्रतिपक्ष के नेता का सामना नहीं करना पड़ा उस समय भारतीय जनता पार्टी को लोकसभा में “1984 में” केवल दो ही सीटें मिल पाई थी इसके बाद डॉ मनमोहन सिंह के कार्यकाल में प्रतिपक्ष अवश्य अस्तित्व में रहा, किन्तु मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र भाई मोदी जो 19 मई 2014 से प्रधानमंत्री पद पर विराजित है, इन के अब तक 8 साल 7 माह के कार्यकाल में भी किसी मान्यता प्राप्त नेता प्रतिपक्ष के अब तक दर्शन नहीं हुए| अर्थात आजादी के बाद से अब तक अधिकांश समय आजादी का सिक्का एक तरफ से कोरा या सपाट ही रहा सिक्के पर सरकार ही रही|

अब यदि हम आजादी के बाद के प्रतिपक्ष से सुसज्जित शेष 27 सालों की बात करें तो इस अवधि में हमारे देश में ऐसे प्रतिपक्ष नेता रहे जिन्होंने पूरे विश्व को यह दिखा दिया कि प्रतिपक्ष की भूमिका व उसे निभाने वाला कैसा होता है? इससे पहले हम यह बता दें कि लोकसभा या संसद में मान्यता प्राप्त प्रति पक्ष दल व उसका नेता वही होता है जिस दल को लोकसभा की कुल सीटों का 10% हिस्सा प्राप्त हो अर्थात हमारी लोकसभा की 543 सीटों में से कम से कम 54 या 55 सीटें प्रतिपक्ष के दावेदार दल को मिले। अब यदि यह प्रतिपक्ष नेता की बात करें तो सबकी निगाहें केवल और केवल श्री अटल बिहारी वाजपेई पर जाकर ठेहरती है जिन्होंने एक बेजोड़ प्रतिपक्ष नेता की भूमिका का निर्वहन किया। 1993 से 1997 के बीच करीब 4 साल तक प्रतिपक्ष के नेता रहे वे अपनी बेबाक हाजिर जवाबी वह वाकपटुता के लिए जाने जाते रहे। इसलिए वे पक्ष और प्रतिपक्ष दोनों में सम्मान अर्जित करते रहे। अटल जी का प्रधानमंत्रित्व कॉल भी बेबाक रहा।

अटल जी के बाद कांग्रेस की पूर्व अध्यक्षा श्रीमती सोनिया गांधी जी भी प्रतिपक्ष की नेता रही वह 31 अक्टूबर 1999 से 6 फरवरी 2004 तक प्रतिपक्ष की नेत्री रही लेकिन हमारा अब तक का संसदीय इतिहास गवाह है कि श्री लालकृष्ण आडवाणी सबसे लंबे समय तक प्रतिपक्ष के नेता रहे। आडवाणी जी 3 चरणों में 7 साल 25 दिन नेता प्रतिपक्ष रहे। तेज तर्रार भाजपा नेत्री स्वर्गीय सुषमा स्वराज जी 21 दिसंबर 2009 से 26 मई 2014 तक नेता प्रतिपक्ष रही| हमारे संविधान में लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष का महत्वपूर्ण पद माना जाता है अटल जी आडवाणी जी राजीव जी सोनिया जी शरद पवार जी जगजीवन राम जी और सुषमा स्वराज जी ने अब तक का इस अति महत्वपूर्ण पद पर रहकर महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाहन किया। इस प्रकार यदि यह कहा जाए कि भारतीय लोकतंत्र को मजबूत करने में इन नेताओं ने अति महत्वपूर्ण योगदान दिया तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी, पिछले करीब साढे 8 सालों से कांग्रेस इस भूमिका का निर्वहन कर रही है, बिना किसी अधिकृत प्रतिपक्ष की नेता के। यही लोकतंत्र की दुहाई है।

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

और पढ़ें