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लड़ लो सब अलग-अलग.. फिर मोदीजी को छू भी नहीं पाओगे?

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आज होली पर कौन कितना लिखेगा, कहना मुश्किल है। हमें तो एक आइडिया आयातो लिख दिया कि भैया लड़ लो अकेले अकेले। फिर जीवन पर आपस में ही लड़तेरहना। इस बार जीतकर मोदी जी और भाजपा आपकी पहुंच से बहुत ऊपर चले जाएंगे।छू भी नहीं पाओगे।……होली अपने आप में एक मानक है, बैरोमीटर। जिससे मालूम पड़ता है कि बोलो कितना बोल सकते हो, लिख सकते हो, खुश उन्मुक्त रह सकते हो। इस बातकी परवाह किए बिना कि कहीं महाराज को बुरा न लग जाए। …

होली के रंगीन विचारों के बीच यह आइडिया सबका मनभावन है कि 2024 कालोकसभा चुनाव सब अपनी अपनी ताकत से लड़ें। अलग अलग। काहे को एक दूसरे कामुंह जोह रहे हैं। विपक्ष क्या होता है? सब अपने अपने पक्ष हैं! …मोदी जी खुश हो जाएंगे। सबको होली के मस्त मौके पर रंग गुलाल, और गुजियोंका तोहफा पहुंच जाएगा। ठंढाई की जरूरत किसी को नहीं है। सब अपनी अपनीछाने बैठे हैं। इसलिए तो हम अकेले ही काफी हैं का उन्मत्त अट्ठाहस लगारहे हैं।

होली के अवसर पर रंगारंग विचार तो आते ही हैं। होली पर नहीं आएंगे तो कबआएंगे! मोदी जी पुराने भाजपा नेताओं की तरह तो होली मनाते नहीं हैं। वेनहीं मनाते तो कोई भाजपा नेता, मंत्री नहीं मना सकता। वाजपेयी जी मनातेथे। उनकी खुली हंसी को साथ के लिए किसी की जरूरत नहीं होती थी। और पहलेजब मदनलाल खुराना थे तो उनका ठहाका सब पर भारी पड़ने लगता था। वह समय ऐसानहीं था कि कोई सोचता कि खुरना का ठहाका वाजपेयी के ठहाके से ज्यादा बड़ाहै।

सब बदल गया। सेंस आफ ह्यूमर भी। सही कहें तो वह खत्म ही हो गया है। समझाना पड़ता है। होली के मौके पर भी। तो भाइयों और बहनों (पहले भौजाइयों जरूरलिखते थे मगर अब नहीं लिख सकते) जो उपर लिखा कि सब अलग अलग लड़ो वह मजाकथा! कांग्रेस वाले आजकल हमें गलियां बहुत दे रहे हैं। तो यह अलग लड़ना उनके लिए भी मजाक था। वैसे वे (कांग्रेसी) यह मजाक कर रहे हैं। औरगंभीरता पूर्वक कर रहे हैं। राहुल जरूर लंदन में कह रहे हैं कि भाजपा को हराने की विधि पर काम हो रहा है। मगर यहां जिस तरह कांग्रेस आम आदमीपार्टी से लड़ रही है उसे देखकर लगता है कि असली चैलेंज वही है।

लगे रहो दिल्ली कांग्रेस वालों। अभी हमें किसी ने चार साल पहले लिखा एक लेख पहुंचाया था। इसी अख़बार, नया इंडिया में छपा था। 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले। उसका हेडिंग था “ दिल्ली में न आप एक सीट जीतेगी न कांग्रेस पर यदि … “। और वही हुआ 2019 में।

अभी यह होली का विचार है कि सब लड़ लें अलग अलग। मन की हो जाएगी। क्यों मन मारकर रहना। हार जीत तो ऊपर वाले के हाथ में हैं। भगवान का नाम सबसे ज्यादा भाजपा इस्तेमाल करती है। मगर उसकी लीला को मानते विपक्ष वाले ज्यादा हैं। भाजपा तो नाम के साथ काम भी करती है। मगर विपक्ष केवल ऊपरवाले के भरोसे ही बैठा हुआ है।

होली पर यह अच्छा है। होली का पेय ठंढाई होती है। वाजपेयी जी की प्रियथी। किसी भी फार्म में हो प्रेमपूर्वक ग्रहण करते थे। तो पीते वह थे मगरअसर इस वाले विपक्ष में आ रहा है। उसकी तासीर है कि बैठे रहो। कल्पनाओंके कुलाबे मिलाते रहो। हजरते दाग जहां बैठ गए बैठ गए! मगर भैया वाजपेयीजी घूमते भी बहुत थे। हम कुछ लोगों को जिन्हें महागुरु कहते हैं उनमें वेथे। महागुरु का मतलब बहुत ज्ञानी होना नहीं। जो है उस पर इतराना नहीं।सहज बने रहना।

होली पर लिख रहे हैं। इसलिए कहीं तारतम्य टूटे तो नाराज मत होना। अगर आपबेहतर स्थिति में हैं तो कड़ी जहां जुड़े जोड़ लेना। खैर तो हम कह रहे थेकि देश पूरा घूमा। हमने नहीं वाजपेयी जी ने। हमारे ग्वालियर के ही थे।गलत लिख गए। हम उनके ग्वालियर के ही हैं। वाजपेयी जी का एक जोरदार ठहाका।

ऐसे संवादों पर सहज भाव से खूब हंसते थे।यहां तो यह हाल है कि एक कांग्रेसी हमसे पूछने लगे कि आप अर्जुन सिंह कोकब से जानते हैं? प्रसंग बता देते हैं कि पिछले दो तीन दिनों से अर्जुनसिंह पर कई ट्वीट किए। कुछ लंबे थ्रेड। उनकी पुण्य तिथि थी। भोपाल मेंउनकी प्रतिमा कई सालों से आवरण में लिपटी खड़ी थी। कांग्रेस सरकार भी आकरचली गई। मगर मध्यप्रदेश के सबसे बड़े नेता नेता और देश में कांग्रेस केबडे नेताओं में एक अर्जुन सिंह की प्रतिमा का अनावरण नहीं हुआ। जिस वक्तयह पंक्तियां लिख रहे हैं। उस समय भोपाल में मुख्यमंत्री शिवराज सिंहचौहान को अनावरण करना है। तो उम्मीद है हो गया होगा।

तो ट्वीटर पर बहुतलिखा। यहां सब नहीं बता सकते। वहीं जाकर देखना होगा। हां, एक बात और लिखीकि उनका निधन दिल्ली में हुआ था। मुख्यमंत्री, पंजाब के राज्यपाल के तौरपर शांति स्थापित करने वाले, कांग्रेस के पहले उपाध्यक्ष, सोनिया कोराजनीति में लाने में निर्णायक भूमिका निभाने वाले और इन सबसे बढ़करइन्दिरा गांधी के बाद कांग्रेस में सबसे ज्यादा नेता बनाने वाले लेकिनदिल्ली में कांग्रेस ने उनके नाम पर किसी सड़क का नाम नहीं रखा। उनकेनिधन के बाद तीन साल तक केन्द्र में और दिल्ली में कांग्रेस की सरकाररही। यहां माधवराव सिंधिया के नाम पर, राजेश पायलट के नाम पर सड़कें हैं।माधवराव के नाम के आगे कांग्रेस ने श्रीमंत लगाकर सड़क का नामाकरण कियागया।

तो कांग्रेसी ने पूछा कि कब से जानते हैं? वैसे तो सवाल ही वाहियात है।मगर हमने जवाब दिया 1974 से। मध्य प्रदेश के शिक्षा मंत्री थे। हमारेकालेज में बुलाया था। चुप हो गए। उनका परिचय इसके मुकाबले काफी नया नयाथा।

तो हाल यह है कि अर्जुन सिंह पर आप लिखो तो कांग्रेसियों का मुंह बन जाताहै और वाजपेयी जी पर लिखो तब तो खतरा ही खतरा है। कहने को अच्छे दिन हैं।मगर लिखने पढ़ने वालों के लिए तो चुप रहने के ही हैं। अब होली पर यहसोचकर लिख रहे हैं कि इस दिन तो हमारे यहां महाराज के यहां भी माफी होतीथी। सुना है राजाओं के अलावा अंग्रेजों, मुगलों के यहां भी होती थी। वेभी खूब होली खेलते थे। मजाक करते थे। महामूर्ख सम्मेलन उन दिनों भी होतेथे। और जिसे महामूर्ख या मूर्ख शिरोमणी की उपाधि मिल जाती थी वह बहुतगौरवान्वित होता था।

आज तो होली पर कौन कितना लिखेगा कहना मुश्किल है। हमें तो एक आइडिया आयातो लिख दिया कि भैया लड़ लो अकेले अकेले। फिर जीवन पर आपस में ही लड़तेरहना। इस बार जीतकर मोदी जी और भाजपा आपकी पहुंच से बहुत उपर चले जाएंगे।छू भी नहीं पाओगे।

तो होली पर अब मूर्ख सम्मेलन का तो सवाल ही नहीं। राजनीति नफरत इतनी आजाएगी कि झगड़े हो जाएंगे। कौन मानेगा कि हम मूर्ख हैं। पहले तो इस बातपर लड़ते थे कि हमें काए मूर्ख नहीं कहा। बताओ अब कौन सी मूर्खता करके औरबता दें। दोस्तों को नेताओं को, अफसरों को लेखकों को खूब उपाधियां दीजाती थीं। एक से एक बढ़कर। अखबारों में छपती थीं।

प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री कोई बुरा नहीं मानता था। बल्कि उत्सुकतापूर्वक देखते थे कि इस बार किस खिताब से नवाजा गया है। जानें कितनी किसकिस के लिए लिखी याद आ रही हैं। कवित्त होते थे। आज तो उन्हें दोहराना भीखतरनाक है। नई लिखना तो संभव ही नहीं है।एक सुना देते हैं। महागुरू पर है खूब हंसे थे।

“कैसे सोने से दिन थे चांदी सी रातें

मोरारजी से लेकर चरणसिंह की बातें

लड़े खूब फिर हम

तो फिर हैं यह सड़कें

पैदल ही पैदल चलो धूल फांके!”

1980 में जनता दल की हार के बाद लिखा था। शब्द थोड़े इधर उधर हो सकते है।मगर मूल भाव यही था कि पहली बार गद्दी मिली और लड़ कर गंवाई।

तो वैसी होली भी हुआ करती थीं। और अब यह होली भी है। आगे देखिए कैसी आतीहैं। होली अपने आप में एक मानक है, बैरोमीटर। जिससे मालूम पड़ता है किबोलो कितना बोल सकते हो, लिख सकते हो, खुश उन्मुक्त रह सकते हो। इस बातकी परवाह किए बिना कि कहीं महाराज को बुरा न लग जाए। हमारे दतिया के

महाराज गोविन्द सिंह कहते थे। कहो कहो, सुनाओ आज हम बुरा नहीं मानने के!

By शकील अख़्तर

स्वतंत्र पत्रकार। नया इंडिया में नियमित कन्ट्रिब्यटर। नवभारत टाइम्स के पूर्व राजनीतिक संपादक और ब्यूरो चीफ। कोई 45 वर्षों का पत्रकारिता अनुभव। सन् 1990 से 2000 के कश्मीर के मुश्किल भरे दस वर्षों में कश्मीर के रहते हुए घाटी को कवर किया।

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