nayaindia Rashtriya Swayamsevak Sangh अपने अस्तित्व को लेकर चिंतित संघ...?
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अपने अस्तित्व को लेकर चिंतित संघ…?

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भोपाल । अपने आप को पूर्णता: स्वदेशी और हिंदूवादी बताने वाला संघ पिछले कुछ अर्से से अपने आप को उपेक्षित सा महसूस कर रहा है, क्योंकि पूरे देश की राजनीति नरेंद्र मोदी के आसपास ही केंद्रित हो गई है और हिंदूवादी सभी संगठन मोदी की निकटता में अपना उज्जवल भविष्य देखने लगे हैं, इसलिए संघ की पूछ परख कम हो गई है, स्वयं मोदी भी संघ को उतना महत्व देते नजर नहीं आते हैं जितना कि भाजपा का अन्य कोई वरिष्ठ नेता, इसलिए संघ को अब अटल-आडवाणी के कार्यकाल की याद सता रही है, कुल मिलाकर संघ को अब अपनी ही पार्टी की सरकार के रहते अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ने को विवश होना पड़ रहा है एवं संघ में हर स्तर पर अब इस संकट पर गहन चिंतन शुरू हो गया है, केंद्र तो ठीक अब राज्यों की भाजपा सरकार भी अपने प्रदेशों में संघ को इतनी अहमियत नहीं दे रहे हैं, जितनी कि उन्हें पूर्व में भाजपा पूर्वजनसंघ या जनता पार्टी के शासनकाल में मिलती रही। संघ के हर मोर्चे पर इस विषय पर गहन चिंतन जारी है और कोई आश्चर्य नहीं कि संघ प्रमुख को प्रधानमंत्री मोदी से इस संबंध में विचार करने की जरूरत महसूस हो? इसी कारण आज संघ में हर स्तर पर उंहापोह की स्थिति देखी जा सकती है।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ हिंदू संगठनों को न सिर्फ जन्मदाता व संरक्षक बल्कि सर्वे सर्वा रहा है, यद्यपि यह स्वयं राजनीति से दूर रहा किंतु राजनीति का पोषक अवश्य रहा, अटल जी के प्रधानमंत्रीत्व काल में संघ को सरकार का संरक्षक माना जाता रहा, अपनी अति व्यवस्था के बावजूद अटल जी, आडवाणी जी ने संघ की कभी उपेक्षा नहीं की, किंतु मोदी जी के प्रधानमंत्री बनने के बाद संघ की वरीयता संरक्षक के रूप में नहीं रह पाई, प्रधानमंत्री से लेकर भाजपा अध्यक्ष तक को जहां संघ प्रमुख से भेंट करने का समय मांगना पड़ता था, वही आज स्थिति उलट है संघ प्रमुख को कई कई दिनों तक मोदी जी से मिलने का समय नहीं मिल पाता, यह संघ के सूत्रों की सबसे बड़ी शिकायत है और इस मामले में सभी सहयोगी संगठनों की एक ही राय है, मोदी किसी को भी उतनी अहमियत नहीं देते जितनी की अपेक्षित रहती है।

संघ की इस पीड़ा को संघ से जुड़ी एक सुपरिचित पत्रिका “पाच्चजन्य” ने उजागर किया है। उसने अपनी संपादकीय में संघ व उससे जुड़े पदाधिकारियों की पीड़ा को उजागर करते हुए लिखा है कि संघ से बिना विचार विमर्श किए मोदी सरकार ने जो भी फैसले लिए, उनको लेकर संघ में नाराजगी है, उदाहरण के तौर पर बीबीसी डॉक्युमेंट्री पर रोक के लिए केंद्र का नोटिस हमारे लोकतंत्र व हमारी उदारता का विरोधी दलों द्वारा नाजायज फायदा उठाना तथा सर्वोच्च न्यायालय की भूमिका को लेकर संघ की मोदी सरकार से नाराजगी है। संघ की एक अहम नाराजगी का कारण मोदी सरकार द्वारा देश विरोधी ताकतों को सुप्रीम कोर्ट का इस्तेमाल औजार के रूप में करने से नहीं रोक पाना भी है। संघ की शिकायत है कि अभी-अभी ऐसे कई उदाहरण सामने आए हैं, जिनमें देश विरोधी ताकतों ने सर्वोच्च न्यायालय का उपयोग औजार के रूप में किया है और सरकार ने इस गंभीर मसले पर मौन साधे रखा, जबकि उसे मुखर होना चाहिए था।

यद्यपि संघ के इन आरोपों को देश के संविधान विशेषज्ञ महत्व इसलिए नहीं देते क्योंकि देश के संविधान ने विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका को अपने अपने अधिकारों व कर्तव्यों के साथ निष्पक्ष काम करने की छूट दी है, किंतु जैसा की सर्वविदित है कि (विधायिका) सरकार से दोनों सरकार के अंगों को संविधान की भावना के विपरीत अपने नियंत्रण में रखना चाहती है, इसलिए देश के प्रजातंत्र पर कई देश उंगली उठाने लगे हैं, जबकि हमारे देश के प्रजातंत्र को विश्व का सर्वश्रेष्ठ प्रजातंत्र माना गया है। इस प्रकार कुल मिलाकर आज यदि यह कहा जाए कि आज जैसी संघ की बेचैनी कभी नहीं रही तो कतई गलत नहीं होगा, उसे अपनी ही सरकार के चलते अपने अस्तित्व के लिए जूझना पड़ रहा है।

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