शिक्षक भर्ती घोटाले में नीचे से ऊपर तक नियमों का उल्लंघन किया गया है। इस पुराने घोटाले में अगर विजिलेंस अब भी सिर्फ रिकॉर्ड जुटाने में लगा रहेगा तो कुछ हाथ नहीं आएगा। घोटाले की जड़ तक पहुंचने के लिए विजिलेंस को इस घोटाले की बारीकियों पर भी गौर करना होगा, जिससे विजिलेंस ब्यूरो घोटाले में शामिल बड़ी मछलियों तक पहुंच सके।
प्रादेशिकी-केवल छोटी मछलियों को ही सज़ा मिलती है और बड़ी मछलियाँ निडर हो कर खुलेआम घूमती हैं।
जब भी कोई बड़ा घोटाला सामने आता है तो आम जनता को इस बात का भरोसा नहीं होता कि घोटाले में लिप्त बड़ी मछलियाँ क़ानून के शिकंजे में क़ैद हो पायेंगी। इस बात के सैंकड़ों उदाहरण आपको बड़ी आसानी से मिल जाएँगे। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि प्राथमिक जाँच क्रेन वाले अधिकारी ही जाँच का रुख़ ग़लत दिशा में मोड़ देते हैं। नतीजतन घोटाले में लिप्त केवल छोटी मछलियों को ही सज़ा मिलती है और बड़ी मछलियाँ निडर हो कर खुलेआम घूमती हैं। ऐसा ही कुछ हुआ 2007 के पंजाब के ‘टीचिंग फेलो’ भर्ती घोटाले में।
‘टीचिंग फेलो’ घोटाला पिछले कई दिनों से पंजाब में चर्चा में है। कारण है, इस घोटाले में पंजाब विजिलेंस विभाग द्वारा कार्यवाही करना। विजिलेंस विभाग ने ‘टीचिंग फेलो’ घोटाले में लिप्त शिक्षा विभाग के 5 कर्मचारियों को रिमांड पर लेने के बाद जेल भेज दिया। ग़ौरतलब है कि कि चार साल पहले शुरू हुई विजिलेंस की जांच टीम आज तक मामले के रिकॉर्ड जुटाने में ही अटकी हुई थी। यदि टीचिंग फैलोशिप भर्ती प्रक्रिया का रिकॉर्ड तैयार करने में शुरू से ही पारदर्शिता बरती गई होती तो भर्ती प्रक्रिया में शामिल हर अधिकारी और कर्मचारी के साथ-साथ भर्ती किए गए हर शिक्षक का पूरा रिकॉर्ड और ब्योरा विजिलेंस ब्यूरो के पास होता। परंतु कड़वा सच यह है कि इस मामले की शुरुआत से, यानी 2007 से ही घोटाले के सूत्रधारों द्वारा ऐसी कोशिशें शुरू कर दी गई थी कि भविष्य में अगर कोई जांच हो तो इस घोटाले की कड़ियाँ आसानी से न जुड़ सकें।
इस घोटाले के दस्तावेज़ों से यह पता चलता है कि मामले की शुरुआत में ही निदेशक शिक्षा विभाग (एलिमेंट्री) द्वारा जारी निर्देशों के तहत 18 जनवरी 2008 को विभिन्न जिलों के शिक्षा अधिकारियों (प्रारंभिक) को ‘टीचिंग फेलो’ की चयन समितियों के अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया गया था। इसके बाद पंजाब के शिक्षा विभाग के निदेशक द्वारा जिला शिक्षा अधिकारियों को चयन समितियों के गठन का जिम्मा सौंपा। सूत्रों के अनुसार विभिन्न जिलों में गठित चयन समितियों के सभी सदस्यों के नाम शिक्षा विभाग के उच्चाधिकारियों द्वारा ही भेजे गए थे। विभिन्न जिलों में चयन समिति के सदस्यों की संख्या अलग-अलग थी। शिक्षा विभाग के अधिकारियों के अलावा उपायुक्त कार्यालय से संबंधित प्रथम श्रेणी के अधिकारी, जिला सैन्य कल्याण बोर्ड से संबंधित अधिकारी या उनके प्रतिनिधि, जिला कल्याण बोर्ड का कोई प्रतिनिधि या अधिकारी और जिला खेलकूद विभाग का कोई प्रतिनिधि या अधिकारी भी चयन समिति के सदस्य के रूप में भर्ती प्रक्रिया की निगरानी और चुनावी प्रक्रिया में धोखाधड़ी की गुंजाइश को रोकने के लिए नियुक्त किया गया था।
आवेदकों के चयन एवं पात्रता की जांच के लिए पंजाब शिक्षा विभाग द्वारा चयन समिति के अलावा प्रति हजार आवेदकों पर दो मूल्यांकनकर्ता एवं दो चेकर भी नियुक्त किये गये थे। जिनका कार्य प्रतिदिन कम से कम एक सौ आवेदन पत्र एवं आवेदकों द्वारा दिये गये प्रमाण पत्रों की जांच करना था। यह ‘टीचिंग फेलो’ के आवेदनकर्ताओं की योग्यता सुनिश्चित करने के लिए था। लेकिन यदि इन मूल्यांकनकर्ताओं और चेकर्स ने अपना काम ईमानदारी से किया होता तो फर्जी प्रमाण-पत्रों के आधार पर नौकरी पाने की कोई गुंजाइश न होती। उम्मीद है कि अब तक चयन समिति में नियुक्त शिक्षा विभाग के कर्मचारियों, मूल्यांकनकर्ताओं, चेकर्स और विभाग के बाहर नियुक्त अधिकारियों का विवरण विजिलेंस ब्यूरो द्वारा प्राप्त हो गया होगा।
लेकिन यह विवरण विजिलेंस द्वारा अपनी जांच को आगे बढ़ाने के लिए एक कदम तो हो सकता है परंतु मंजिल नहीं। क्योंकि इस भर्ती प्रक्रिया में जिस तरह से नियमों की अनदेखी की गई है उससे साफ है कि मामले में बड़ी मछलियों की संलिप्तता और भागीदारी ज्यादा अहमियत रखती है। यह तो नहीं कहा जा सकता कि निचले स्तर के अधिकारियों ने इस मामले में फायदा नहीं उठाया। परंतु इस बात को भी नहीं नकारा जा सकता कि निचले स्तर के अधिकारियों ने उच्च स्तर के अधिकारियों के दबाव में काम न किया हो।
‘टीचिंग फेलो’ की भर्ती प्रक्रिया के संबंध में तत्कालीन राज्यपाल द्वारा 16 जनवरी 2008 को दिए गए लिखित आदेशों की प्रथम पंक्ति में यह बात स्पष्ट रूप से उल्लेखित है कि भर्ती प्रक्रिया के कोऑर्डिनेटर शिक्षा विभाग के निदेशक होंगे। भर्ती प्रक्रिया की पूर्ण जिम्मेदारी भी उन्हीं की होगी। इसी आदेश में भर्ती प्रक्रिया के लिए नियुक्त चयन समितियों के संबंध में निर्देश भी दिए गए जिसमें मूल्यांकनकर्ता का काम उम्मीदवारों की योग्यता और प्रमाण पत्रों का मूल्यांकन करना होगा। चेकर्स का काम इन प्रमाणपत्रों की जांच करना होगा। अगर मूल्यांकनकर्ताओं और चेकर्स यानी जांचकर्ताओं ने अपना काम ईमानदारी से किया होता तो टीचिंग फेलोज भर्ती घोटाला सामने नहीं आता क्योंकि प्रत्येक आवेदक के प्रमाण पत्रों की जांच तभी कर ली गई होती।
भर्ती किये गये सभी चयनित टीचिंग फेलोज और प्रतीक्षा सूची के अभ्यर्थियों का विवरण एक वेबसाइट पर प्रकाशित करने के निर्देश भी दिये गये थे, लेकिन यह वेबसाइट बनाई ही नहीं गई। यदि ऐसी वेबसाइट बनाई गई होती तो सतर्कता ब्यूरो को पात्र और कुपात्र उम्मीदवारों का विवरण एकत्रित करने में कठिनाई का सामना नहीं करना पड़ता। साफ है कि शिक्षक भर्ती घोटाले में नीचे से ऊपर तक नियमों का उल्लंघन किया गया है। इस पुराने घोटाले में अगर विजिलेंस अब भी सिर्फ रिकॉर्ड जुटाने में लगा रहेगा तो कुछ हाथ नहीं आएगा। घोटाले की जड़ तक पहुंचने के लिए विजिलेंस को इस घोटाले की बारीकियों पर भी गौर करना होगा, जिससे विजिलेंस ब्यूरो घोटाले में शामिल बड़ी मछलियों तक पहुंच सके।