1674 में पश्चिम भारत में मराठा साम्राज्य की स्थापना की। 4 अक्टूबर 1674 को शिवाजी ने छत्रपति की उपाधि ग्रहण की। दो बार हुए इस समारोह में लगभग 50 लाख रुपये खर्च हुए। इस समारोह में हिन्दवी स्वराज की स्थापना का उद्घोष किया गया था। इतिहासज्ञों के अनुसार भारत के सैकड़ों वर्ष विदेशियों की परतन्त्रता में रहने के पश्चात हिन्दुओं को संभवतः महान विजयनगर साम्राज्य के बाद पहली बार अपना राज्य मिला था। इसके बाद एक स्वतंत्र शासक की तरह उन्होंने अपने नाम का सिक्का चलवाया।
मराठा साम्राज्य के संस्थापक व प्रथम शासक छत्रपति शिवाजी महाराज (1630-1680) का जन्म 19 फरवरी, 1630 को शिवनेरी दुर्ग में हुआ था। उनके पिता अहमदनगर सल्तनत के प्रभावशाली जनरल मालोजीराजे के पुत्र शहाजीराजे भोंसले अप्रतिम शूरवीर और एक शक्तिशाली सामंत थे। शहाजीराजे बीजापुर सुल्तान के दरबार में बहुत प्रभावशाली राजनेता थे। शिवाजी की माता का नाम जीजाबाई था, जो जाधवराव कुलोत्पन्न एक असाधारण प्रतिभाशालिनी व अत्यंत धार्मिक प्रवृत्ति की महिला थी। शिवाजी महाराज के चरित्र पर उनके माता-पिता का बहुत प्रभाव पड़ा। उनका बचपन उनकी माता के मार्ग दर्शन में बीता। माता जीजाबाई बचपन में शिवाजी को वीरता की कहानियां सुनाया करती, जिसका प्रभाव भी शिवाजी पर पड़ा। शिवाजी के अग्रज का नाम सम्भाजीराजे था, जो अधिकतर समय अपने पिता शहाजीराजे भोसलें के साथ ही रहते थे। शहाजीराजे की दूसरी पत्नी तुकाबाई मोहिते थीं। उनसे एक पुत्र हुआ जिसका नाम व्यंकोजीराजे था।
शिवाजी के गुरु स्वामी रामदास ने शिवाजी की निर्भीकता, अन्याय से जूझने की सामर्थ्य और संगठनात्मक योगदान का भरपूर विकास किया। सभी कलाओं में माहिर शिवाजी शिवाजी बचपन से ही निडर व शूरवीर थे। शिवाजी ने बचपन में ही राजनीति एवं युद्ध की शिक्षा ली थी। और बाल्यकाल से ही वे उस युग के वातावरण और घटनाओं को भली प्रकार समझने लगे थे। बचपन में ही उनके हृदय में स्वाधीनता की लौ प्रज्ज्वलित हो गयी थी। उन्होंने कुछ स्वामिभक्त साथियों का संगठन बनाना शुरू कर दिया। उन्होंने मात्र 18 वर्ष की उम्र में मराठा सेना बनाकर स्वत्रंत मराठा राज्य बनाने का प्रयास प्रारम्भ कर दिया। शिवाजी ने अपने 2000 की सैनिकों की संख्या को शीघ्र ही बढ़ाकर 10000 कर लिया।
शिवाजी का विवाह 14 मई 1640 में सइबाई निंबाळकर (सई भोसले) के साथ लाल महल, पुणे में हुआ था। सई भोसले शिवाजी की पहली और प्रमुख पत्नी तथा अपने पति के उत्तराधिकारी सम्भाजी की मां थीं। देश की राजनीति को साधने के लिए शिवाजी ने कुल 8 विवाह किए थे। शिवाजी की पत्नियों के नाम सईबाई निंबालकर (सन्तान-सम्भाजी, रानूबाई, सखूबाई, अंबिकाबाई),सोयराबाई मोहिते (सन्तान-राजाराम, दीपाबाई), सकवरबाई गायकवाड (सन्तान-कमलाबाई), सगुणाबाई शिर्के (सन्तान-(राजकुवरबाई), पुतलाबाई पालकर, काशीबाई जाधव, लक्ष्मीबाई विचारे, गुंवांताबाई इंगले हैं। शिवाजी ने इन वैवाहिक राजनीति के माध्यम से सभी मराठा सरदारों को एक छत्र के नीचे लाने में सफलता प्राप्त की।
उस समय बीजापुर का राज्य आपसी संघर्ष तथा विदेशी आक्रमणकाल के दौर से गुजर रहा था। ऐसे साम्राज्य के सुल्तान की सेवा करने के बदले शिवाजी ने मावलों को बीजापुर के ख़िलाफ संगठित करने का कार्य शुरू किया। पश्चिम घाट से जुड़े मावल प्रदेश के निवासी संघर्षपूर्ण जीवन व्यतीत करने के कारण कुशल योद्धा माने जाते थे। इस प्रदेश में मराठा एवं अन्य सभी जाति के लोग मिल- जुलकर रहते थे। शिवाजी ने इन सभी जाति के लोगों को लेकर मावलों (मावळा) नामक संगठन बनाकर सभी को संगठित किया और उनसे सम्पर्क कर समीपस्थ प्रदेशों से परिचित हो गए। मावल युवकों को लाकर उन्होंने दुर्ग निर्माण का कार्य आरम्भ कर दिया। उधर आपसी संघर्ष तथा मुग़लों के आक्रमण से परेशान बीजापुर के सुल्तान आदिलशाह ने बीमार पड़ जाने के कारण अपने बहुत से दुर्गों से अपनी सेना हटाकर उन्हें स्थानीय शासकों या सामन्तों के हाथ सौंप दिया। ऐसे में बीजापुर में अराजकता फैल गई और शिवाजी ने इस अवसर का लाभ उठाकर बीजापुर में प्रवेश कर बीजापुर के दुर्गों पर अधिकार करने का निर्णय लिया। सबसे पहले उन्होंने रोहिदेश्वर के दुर्ग पर अधिकार कर लिया। दूसरी बार में पुणे के दक्षिण -पश्चिम में 30 किलोमीटर की दूरी पर अवस्थित तोरणा के दुर्ग पर अधिकार कर लिया।
इसके बाद शिवाजी ने सुल्तान आदिलशाह के पास अपना दूत भेजकर संदेश भिजवाई कि वे पूर्ववर्ती किलेदार की तुलना में बेहतर रकम देने के लिए तैयार हैं, इसलिए यह क्षेत्र उन्हें सौंप दिया जाये। उन्होंने आदिलशाह के दरबारियों को पहले ही रिश्वत देकर अपने पक्ष में कर लिया था। इसलिए दरबारियों ने शिवाजी के पक्ष में सलाह दिया और दरबारियों की सलाह के अनुसार आदिलशाह ने शिवाजी को उस दुर्ग का अधिपति बना दिया। इससे शिवाजी को उस दुर्ग में बहुत सी सम्पति मिली, जिसे उन्होंने दुर्ग की सुरक्षात्मक कमियों को दूर करने में लगा दिया। तत्पश्चात इससे कोई 10 किलोमीटर दूर स्थित राजगढ़ के दुर्ग पर भी शिवाजी ने अधिकार कर लिया। शिवाजी की इस साम्राज्य विस्तारवादी नीति की भनक जब आदिलशाह को मिली, तो वह क्षुब्ध हो उठा। उसने शाहजी राजे को अपने पुत्र को नियन्त्रण में रखने को कहा। शिवाजी ने अपने पिता की परवाह किये बिना अपने पिता के क्षेत्र का प्रबन्ध अपने हाथों में ले लिया और नियमित लगान बन्द कर दिया। राजगढ़ के बाद उन्होंने चाकन के दुर्ग पर और फिर उसके बाद कोंडना के दुर्ग पर अधिकार किया। इसके साथ शिवाजी ने अलग मराठा राज्य बनाने के उद्देश्य से आस- पास के छोटे छोटे राज्यों पर आक्रमण करना शुरू कर दिया और उन्हें जीत लिया। शिवाजी ने पुणे के आस- पास के कई किलो को जीत लिया और नए किलों का निर्माण भी कराया।
शिवाजी राजे भोसले ने कई वर्ष औरंगज़ेब के मुगल साम्राज्य से संघर्ष किया और 1674 में पश्चिम भारत में मराठा साम्राज्य की स्थापना की। रायगढ़ में ज्येष्ठ शुक्ल त्रयोदशी तदनुसार 6 जून 1674 को काशी के विद्वान महापंडित तथा वेद-पुराण-उपनिषदों के ज्ञाता पंडित गंगा भट्ट द्वारा छत्रपति शिवाजी का राज्याभिषेक भारतीय अर्थात हिन्दू इतिहास की सबसे गौरवशाली गाथाओं में से एक है। पर उनके राज्याभिषेक के 12 दिन बाद ही उनकी माता का देहांत हो गया था इस कारण 4 अक्टूबर 1674 को दूसरी बार शिवाजी ने छत्रपति की उपाधि ग्रहण की। दो बार हुए इस समारोह में लगभग 50 लाख रुपये खर्च हुए। इस समारोह में हिन्दवी स्वराज की स्थापना का उद्घोष किया गया था। इतिहासज्ञों के अनुसार भारत के सैकड़ों वर्ष विदेशियों की परतन्त्रता में रहने के पश्चात हिन्दुओं को संभवतः महान विजयनगर साम्राज्य के बाद पहली बार अपना राज्य मिला था। इसके बाद एक स्वतंत्र शासक की तरह उन्होंने अपने नाम का सिक्का चलवाया।
छत्रपति बनने पर शिवाजी ने अपनी अनुशासित सेना एवं सुसंगठित प्रशासनिक इकाइयों की सहायता से एक योग्य एवं प्रगतिशील प्रशासन प्रदान किया। उन्होंने समर-विद्या में अनेक नवाचार किए तथा छापामार युद्ध की नयी शैली (शिवसूत्र) विकसित की। शिवाजी ने एक मजबूत नेवी की स्थापना की थी जो समुद्र के अंदर भी तैनात होती और दुश्मनों से रक्षा करती थी। शिवाजी महाराज बहुत दयालु राजा थे। वह जबरदस्ती किसी से टैक्स नहीं लेते थे। उन्होंने बच्चों, ब्राह्मणों व महिलाओं के लिए बहुत कार्य किए। अंधविश्वास व रुढ़िवाद से जुडी बहुत-सी प्रथाओं को उन्होंने बंद किया। उस समय मुगल हिन्दुओं पर बहुत अत्याचार करते थे, जबरदस्ती इस्लाम धर्म अपनाने के लिए दबाव बनाते थे, ऐसे समय में शिवाजी हिन्दुओं के त्राता, पीड़ितों के मसीहा बनकर आए थे। उन्हें हिन्दुत्व का पूरा ज्ञान था, उन्होंने सम्पूर्ण जीवन में हिन्दू धर्म को दिल से स्वीकार किया और हिन्दुत्व के लिए बहुत से कार्य किए। शिवाजी सभी धर्मों का सम्मान करते थे। उन्होंने प्राचीन हिन्दू राजनीतिक प्रथाओं तथा दरबारी शिष्टाचारों को पुनर्जीवित कर मराठी एवं संस्कृत को राजकाज की भाषा बनाया। सन 1677-78 में शिवाजी का ध्यान कर्नाटक की ओर गया। बम्बई के दक्षिण में कोंकण, तुंगभद्रा नदी के पश्चिम में बेळगांव तथा धारवाड़ का क्षेत्र, मैसूर, वैलारी, त्रिचूर तथा जिंजी पर अधिकार करने के बाद बिगड़ती तबियत के कारण 3 अप्रैल 1680 को मात्र 50 साल की उम्र में शिवाजी का देहान्त हो गया। उनकी मृत्यु के बाद भी उनके वफादारों ने उनके साम्राज्य को संभाले रखा और मुगलों, अंग्रेजों से उनकी लड़ाई जारी रही। आंग्ल शासकों से मुक्ति के लिए लड़ी गई भारतीय स्वाधीनता संग्राम के काल तक शिवाजी एक नायक के रूप में स्मरण किए जाने लगे। बाल गंगाधर तिलक ने राष्ट्रीयता की भावना के विकास के लिए शिवाजीराजे जन्मोत्सव की शुरुआत की।