यात्रा जनता ने सफल की है। कांग्रेसी कार्यकर्ताओं ने की है। समर्पित कांग्रेसी नेताओं ने की है। किसी फ्राड सिविल सोसायटी ने नहीं। बाकी आगे राहुल जानें और उनके सलाहकार, नजदीकी लोग!…योगेन्द्र यादव के मामले में तो किसी प्रस्ताव की जरूरत ही नहीं है। अगर इसी रफ्तार से कांग्रेस पर उनका प्रभाव बढ़ता रहा तो हरियाणा के अगले मुख्यमंत्री के तौर पर उनका नाम प्रस्तावित हो सकता है। कांग्रेस की उदारता की तो कोई सीमा ही नहीं है! कांग्रेस में एक सवाल हमेशा उठता रहता है कि राहुल का मनमोहन सिंह कौन होगा?
योगेन्द्र यादव का कांग्रेस पर बढ़ता प्रभाव
होना तो यह चाहिए था कि भारत जोड़ो यात्रा के सफल समापन के बाद कांग्रेसचार महीने और चार हजार किलोमीटर पैदल चले भारत यात्रियों और अपने अपनेराज्य और एक दो और आगे के राज्यों तक पांच सौ, हजार किलमीटर पैदल चलेइंटर स्टेट यात्रियों का एक सम्मेलन करती। उनका सार्वजनिक सम्मान करती।पूरे देश को पता चलता कि राहुल के साथ कौन कौन कितने कष्ट उठाकर, अपनेपरिवार को भूल कर कितने समर्पित भाव से पैदल चले हैं। लेकिन वह होगा यानहीं किसी को नहीं मालूम पर अभी सोमवार को दिल्ली में भारत जोड़ो अभियानके नाम से एक राष्ट्रीय अधिवेशन हो गया। राहुल इसमें गए। और बोले किकांग्रेस को सिविल सोसायटी के साथ मिलकर काम करना चाहिए।
कौन है यह सिविल सोसायटी जिसने अधिवेशन बुलाया था? यह वही योगेन्द्र यादवहैं जो अन्ना आंदोलन में सबसे आगे थे और जिन्होंने कहा था कि यह कांग्रेसमर क्यों नहीं जाती? इन्हें ही किसान आंदोलन में लखीमपुर खीरी में भाजपाके नेताओं के घर जाने पर किसान संगठनों ने अपनी कमेटी से निकाला था।यात्रा शुरू होने से पहले भी इसी कान्स्टिट्यूशन क्लब में योगेन्द्र यादवने अन्ना आंदोलन के अपने सहयोगियों के साथ सिविल सोसायटी की एक मीटिंगबुलाई थी उसमें भी राहुल आए थे और वहां कहा गया था कि पहले राहुलकांग्रेस की अतीत में की गई गलतियों के लिए माफी मांगे तब उनकी यात्रा कासमर्थन किया जाएगा।
पूरा भाव यह था कि उनके समर्थन से ही यात्रा हो पाएगी। और अब जब सोमवारको उसी कान्सटिट्यूशन क्लब में फिर सम्मेलन किया और फिर जिसमें राहुल थेयही स्वर था कि हमने यात्रा सफल करवा दी। और राहुल ने इस पर मुहर लगातेहुये उन्हें न केवल धन्यवाद दिया बल्कि पश्चिम से पूर्व की दूसरी यात्राके लिए उनसे सलाह मशवरा भी किया। साथ ही यह भी कहा कि कांग्रेस की योजनासिविल सोसायटी के साथ काम करने की है और एक ऐसा मैकनिज्म बनाया जाएगा किदोनों साथ मिलकर काम करें।
हो सकता है इसमें अन्ना हजारे, कुमार विश्वास, किरन बेदी और संघ के लोगजो बिना अपनी पहचान बताए अन्ना आंदोलन की सारी व्यवस्थाएं कर रहे थे वे भीशामिल हों, मगर जैसा कि सिविल सोसायटी का तरीका है कि पूरी बात नहींबताते हैं जैसा कि अन्ना आंदोलन में नहीं बताया था कि यह संघ का आंदोलनहै यह भी अभी पता नहीं चला है। मगर यह साफ हो गया है कि कांग्रेस केसमर्पित कार्यकर्ता की कीमत पर अराजक सिविल सोसायटी के लोग कांग्रेस मेंमहत्व पाने लगे हैं।
दुनिया में यह स्थापित सिद्धांत है कि कोई भी काम परिवर्तन बिना संगठन केनहीं हो सकता। चाहे लेफ्ट हो या राइट विचारधारा सब इसे मानते हैं।मध्यममार्गी, अल्ट्रा लेफ्ट, अति दक्षिणपंथी सब। आजादी के आंदोलन में
इसलिए कांग्रेस बनी थी। पार्टी के नेतृत्व में ही सब काम हुआ था।दक्षिणपंथ में संघ का अपना संगठन है। सब कुछ व्यवस्थित। लेकिन यह सिविलसोसायटी का नाम रखकर बिना औपचारिक संगठन के अराजकता एक खतरनाक ट्रेंड है।अन्ना आंदोलन के समय सबने देखा कि कोई औपचारिक संगठन नहीं बनाया। जोअन्ना कहें वही सही। और अन्ना वही कहें जो पीछे से संघ कहलवा रहा है।केन्द्र से यूपीए की और दिल्ली से शीला दीक्षित की सरकार ऐसे ही नहीं हटगई।
नेहरू संगठन का महत्व समझते थे इसीलिए उन्होंने उनकी नामौजूदगी मेंकांग्रेस वर्किंग कमेटी ( सीडब्ल्यूसी) द्वारा पारित उस प्रस्ताव को वापसकरवाया था जिसमें संघ के सदस्यों को कांग्रेस में शामिल होने की अनुमति
दी गई थी। बात उस समय की है जब गांधी की हत्या के बाद आरएसएस पर लगायाप्रतिबंध हटाया गया था। उसके बाद ही 7 अक्टूबर 1949 की सीडब्ल्यूसी कीबैठक में यह प्रस्ताव पारित कर दिया गया कि संघ के सदस्य भी कांग्रेस केसदस्य बन सकते हैं। पंडित जी उस समय विदेश दौरे पर थे। जानबुझकर कांग्रेसके अंदर संघी विचारधारा के लोगों ने यह समय चुना था। मगर पंडित जीविचारधारा के मामले में बहुत मजबूत थे। दौरे से लौटकर उन्होंने 17 नवंबर1949 को फिर सीडब्ल्यूसी की मीटिंग बुलाई और वह प्रस्ताव वापस करवाया।
योगेन्द्र यादव के मामले में तो किसी प्रस्ताव की जरूरत ही नहीं है। अगरइसी रफ्तार से कांग्रेस पर उनका प्रभाव बढ़ता रहा तो हरियाणा के अगलेमुख्यमंत्री के तौर पर उनका नाम प्रस्तावित हो सकता है। कांग्रेस की
उदारता की तो कोई सीमा ही नहीं है! कांग्रेस में एक सवाल हमेशा उठता रहताहै कि राहुल का मनमोहन सिंह कौन होगा? तो अब तो लगता है कि जिस तरहकांग्रेस के मेहनती और पार्टी के प्रति वफादार नेताओं के मुकाबले वेयोगेन्द्र यादव जैसे बाहरी लोगों से प्रभावित हो जाते हैं तो अगर मौकाआया तो उन जैसा कोई भी उनका मनमोहन सिंह हो सकता है।
एक बड़े कार्यक्रम के कई परिणाम होते हैं। यात्रा ने यह भी बताया किकांग्रेस के कितने नेता कार्यकर्ता मेहनत कर सकते हैं। रोज सुबह राहुल केसाथ पैदल चलने वाले पचासों बड़े नेता थे। हर राज्य जहां से यात्रा निकली
वहां के सब वरिष्ठ नेता राहुल के साथ चले। कमलनाथ, अशोक गहलोत,सिद्धारमैया, भूपेन्द्र सिंह हुड्डा और भी बहुत। दिग्विजय सिंह और जयरामरमेश तो लगातार साथ थे। इन नेताओं में से कई 70 साल से उपर के भी थे। दोकांग्रेस के नेताओं की यात्रा में चलते हुए मृत्यु भी हुई। जिनमें एकपंजाब के सांसद भी थे।
यात्रा व्यक्तियों की पहचान का सबसे अच्छा माध्यम होती है। एक बड़ीलोककथा है। मगर स्थानाभाव के कारण बहुत संक्षेप में बताते है कि एक बहुतपहुंचे हुए संत/ सूफी के पास कोई आया और किसी व्यक्ति की बहुत तारीफ करनेलगा उन्होंने कहा कि क्या उसके साथ यात्रा की है? पहले उसके साथ लंबीयात्रा करो फिर बताना कैसा है! चार महीने जो राहुल के साथ रात दिन सौ केकरीब भारत यात्री रहे। उन्हीं कंटेनरों के मोहल्ले में। साथ खाया, बैठे,खेले, गाए उनसे राहुल को पूछना चाहिए कि मेहमान यात्री क्या बातें करतेथे। कैसे राहुल का मजाक उड़ाते थे। कांग्रेस की आलोचना करते थे और बतातेथे कि यात्रा उन्हीं की वजह से चल रही है।
गोदी मीडिया भी आजकल मेहनत तो करता नहीं है। ऐसे ही स्टीरियो टाइप आलोचनाकरता रहता है। नहीं तो उसे पता चल जाता कि कि कैसे समर्पित कांग्रेसी औरसिविल सोसायटी के बीच झड़पें हुईं। मगर यह कांग्रेसियों के अनुशासन कीबहुत बड़ी मिसाल है कि उसने पूरे चार महीने गजब का संयम बनाए रखा।
यात्रा बड़े परिवर्तन का माध्यम बन सकती है। और एक दो लोगों को स्टेबलिशकरने का भी। यह कांग्रेस को देखना होगा। एक कांग्रेस के बड़े नेता कहतेथे हमारी पार्टी है। हम जो चाहे करें। तो जो चाहे करते हुए आज पार्टी इसहाल में पहुंच गई है। नेहरू गांधी कभी नहीं मानते थे कि पार्टी उनकी याकुछ लोगों की है। हर पार्टी में छोटे से छोटे कार्यकर्ता से लेकर उसकेहमदर्दों की मेहनत और भावनाएं लगी होती है।
यात्रा जनता ने सफल की है। कांग्रेसी कार्यकर्ताओं ने की है। समर्पित कांग्रेसी नेताओं ने की है। किसी फ्राड सिविल सोसायटी ने नहीं। बाकी आगेराहुल जानें और उनके सलाहकार, नजदीकी लोग!