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नीतीश, नवीन की पार्टी पर भाजपा की नजर

BJPImage Source: ANI

BJP: नवीन पटनायक इस साल 79 साल के होंगे। तभी इस बात की संभावना कम है कि वे चार साल बाद 2029 के चुनाव में पार्टी का नेतृत्व बहुत सक्रियता से करेंगे।

वे किसको अपना उत्तराधिकारी बनाते हैं और कैसे उसको पार्टी में स्थापित करते हैं, इस पर सबकी नजर है। वे अपने भांजे या भतीजे में से किसी को यानी परिवार से किसी को उत्तराधिकारी बनाते हैं या पार्टी के किसी पुराने नेता को मौका देते हैं, इस पर भाजपा की भी नजर है।

पहले तो यहां तक चर्चा  थी कि भाजपा उनकी पार्टी का विलय अपने में कराने का प्रयास करेगी।

लेकिन अब कहा जा रहा है कि कांग्रेस को रोकने के लिए भाजपा उनकी पार्टी को बफर के तौर पर देख रही है। इसलिए अगले चार साल भाजपा और बीजद में शह मात का खेल चलता रहेगा।

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बिहार में नीतीश कुमार को महज 43 सीट मिलने के बाद भी 2020 में भाजपा ने मुख्यमंत्री बनाया था क्योंकि पार्टी उनके नाम पर चुनाव लड़ी थी।

उसके बाद एक बार वे राजद के साथ भी गए लेकिन अब वापस भाजपा के साथ लौट आए हैं। वे भी इस साल 75 साल के होंगे लेकिन उनकी सेहत ठीक नहीं बताई जा रही है।

बिहार में यह चर्चा चल रही है कि नीतीश अब बातें भूलने लगे हैं और चेहरे पहचानने में भी उनको दिक्कत हो रही है। हालांकि वे प्रगति यात्रा कर रहे हैं और इस साल होने वाले चुनाव की तैयारी में लगे हैं।

लेकिन प्रदेश भाजपा के अनेक नेता चाहते हैं कि नीतीश कुमार को भारत रत्न देकर रिटायर कराया जाए और उनके सद्भाव व समर्थन से अपना मुख्यमंत्री बनाया जाए।(BJP)

तभी केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने नीतीश को भारत रत्न देने की मांग की है। भाजपा ने सम्राट चौधरी के रूप में कुशवाहा नेता आगे किया है। उनके नाम पर नीतीश के लव कुश वोट को ट्रांसफर कराने की योजना है।

यह योजना कितने सिरे चढ़ेगी यह नहीं कहा जा सकता है लेकिन साल शुरू होने के साथ ही भाजपा की राजनीति तेज हो गई है।

अगर नीतीश के सद्भाव से सत्ता ट्रांसफर हो गई और भाजपा का सीएम बन गया तब तो चुनाव साल के अंत में तय समय पर होगा।

लेकिन ऐसा नहीं होता है तो नीतीश की कमान में जल्दी चुनाव हो सकता है। फिर भाजपा जो राजनीति अभी सोच रही है वह चुनाव के बाद करेगी।

By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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