नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट के नए चीफ जस्टिस बीआर गवई की अध्यक्षता वाली बेंच ने वक्फ कानून की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई शुरू कर दी। मंगलवार को करीब तीन घंटे इस पर सुनवाई हुई। याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने दलीलें रखीं। उन्होंने आरोप लगाया है कि नया वक्फ कानून वक्फ की सुरक्षा के लिए नहीं, बल्कि उसे हड़पने के लिए लाया गया है। इस मामले पर सरकार की ओर से सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता बुधवार को दलीलें पेश करेंगे।
मंगलवार की सुनवाई में सॉलिसीटर जनरल मेहता ने कहा कि इस मामले की सुनवाई सिर्फ तीन मसलों तक सीमित रखनी चाहिए। तुषार मेहता ने कहा, ‘कुल तीन मुद्दे हैं, जिन पर रोक लगाने की मांग की गई है और उस पर मैंने जवाब दाखिल कर दिया है। इन मुद्दों पर सुनवाई को सीमित किया जाए’।
याचिकाकर्ताओं के वकील कपिल सिब्बल और अभिषेक सिंघवी ने इसका विरोध किया और कहा, ‘कोई भी सुनवाई टुकड़ों में नहीं हो सकती। यह वक्फ संपत्तियों पर कब्जे का मामला है। सिब्बल ने कहा कि सिर्फ तीन मुद्दे नहीं हैं। पूरे वक्फ पर अतिक्रमण का मुद्दा है। सरकार यह तय नहीं कर सकती कि कौन से मुद्दे उठाए जा सकते हैं’।
मंगलवार को तीन घंटे तक याचिकाकर्ताओं की दलीलें सुनने के बाद बेंच ने मामला बुधवार तक के लिए स्थगित कर दिया। बेंच अब केंद्र सरकार का पक्ष सुनेगी।
इससे पहले कानून को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट से कानून पर अंतरिम रोक लगाने की मांग की। कपिल सिब्बल ने कानून का विरोध करते हुए कहा, कहा जा रहा है कि यह कानून वक्फ की सुरक्षा के लिए है, जबकि इसका उद्देश्य वक्फ पर कब्जा करना है। सुप्रीम कोर्ट ने भी सुनवाई के दौरान कानून का विरोध कर रहे याचिकाकर्ताओं से वक्फ पंजीकृत कराने की कानूनी अनिवार्यता और पंजीकृत न कराने पर कानूनी परिणाम के बारे में सवाल पूछे।
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं लंबित हैं, जिनमें वक्फ संशोधन कानून 2025 की वैधानिकता को चुनौती दी गई है। इन याचिकाओं में कानून पर अंतरिम रोक लगाने की भी मांग की गई है जबकि दूसरी ओर केंद्र सरकार ने कोर्ट में दाखिल किए गए जवाब में कानून को सही ठहराते हुए अंतरिम रोक का विरोध किया है।
वक्फ संशोधन कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं के अलावा शीर्ष अदालत में दो और याचिकाएं सुनवाई पर लगी थीं, जिनमें मूल वक्फ कानून को चुनौती दी गई है और मूल वक्फ कानून 1995 व 2013 को गैर मुस्लिमों के प्रति भेदभाव वाला बताते हुए रद करने की मांग की गई है। हरिशंकर जैन और पारुल खेड़ा की इन याचिकाओं पर भी कोर्ट नोटिस जारी कर चुका है लेकिन अभी तक केंद्र ने इनका जवाब दाखिल नहीं किया है।
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