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शिव और कमल : सवालों को लेकर अखाड़ेबाजी

भोपाल। नित नए रंग बदलती सूबे की सियासत में इन दिनों सवाल- जवाब फिजा में अलग ही रंगत घोल रहे हैं। करवट बदल रही सर्दी में मौसम अब गुलाबी हो रहा है। सवालों और जवाबों की इस अखाड़ेबाजी में देखना दिलचस्प होगा कि कौन किसे पटखनी देता है।

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के सवाल सियासी गर्माहट में इजाफा कर रहे है। कमलनाथ और उनकी टीम के जवाब संजीदापन कम हास- परिहास का मुद्दा ज्यादा बना रहे। भला बताइए प्रतिद्वंदी राजनीतिक दल के वादों को कोई सरकार कैसे पूरा करेगी। तंगदिली के दौर में ऐसा करने की बातें भी खमठोंक कर की जा रही हैं। ऐसा कहने वालों को नही पता इसके लिए बड़ा दिलो ओ दिमाग चाहिए। अब के दौर ये मुश्किल ही नामुमकिन सा लगता है।

आने वाले दिनों में तीखे होते सवाल और बदले में तल्ख जवाब यहां की सियासी फिजां में कड़वाहट भी घोल सकते हैं। वैसे तो शिवराज और कमलनाथ के बीच खासी अंडरस्टैंडिंग है। इसके बावजूद अगर कुछ तल्खी आए तो कहा जा सकता है सत्ता के लिए सियासत जो कराएं सो कम है।

हम शुरुआत फ्लैशबैक से करते हैं। समय था 2018 विधानसभा चुनाव के बाद का। भोपाल के जंबूरी मैदान में कांग्रेस नेता कमलनाथ के मुख्यमंत्री शपथ ग्रहण का जलसा और उसमें बतौर अतिथि निवर्तमान मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी उपस्थिति। देखकर अच्छा लगा। एकदूसरे का विरोध चुनाव तक। खूब लड़े लेकिन नतीजे आने के बाद खेल भावना से हारजीत स्वीकार कर प्रदेश के विकास के लिए मिलकर काम करेंगे का संदेश। पार्टी और नेताओं के लड़ने वाले जमीनी को भी साफ समझाइश कि आपस में कोई शत्रुता न पालें।

अगले चुनाव की तैयारियों में जनाधार बढ़ाने जुट जाएं। सबने देखा भी लाख उम्मीदों के बाद भी कांग्रेस ने शिवराज सरकार की राह में धरने-आंदोलन, रैलियों और भूख हड़तालों की अड़चने नही डाली। इसमे सीएम शिवराज सिंह ने भी बराबर की भूमिका अदा की। किसी आंदोलन के मुद्दे पर उन्होंने पूर्व सीएम दिग्विजयसिंह को मुलाकात का समय दिया और कमलनाथ केम्प से इस पर ऐतराज हुआ तो उन्होंने उसे रद्द भी कर दिया अलग बात है कि फिर विरोध स्वरूप श्री सिंह सीएम हाउस के बाहर धरने पर भी बैठ गए। उस समय नाथ- सिंह संवाद बहुत चर्चा में रह था जिसमे दिग्विजयसिंह यह कहते सुने गए थे कि क्या सीएम से मिलने के लिए मुझे आप से पूछना होगा। बहरहाल यह घटना यह समझने के लिए पर्याप्त है कि शिव-नाथ में कितना गज़ब का तालमेल है। हालांकि समन्वय तो शिवराज और दिग्विजयसिंह में भी कम नही है। जब जयवर्धन सिंह पहली बार विधायक बने दिग्विजयसिंह उन्हें मुख्यमंत्री शिवराज सिंह से मिलवाने सीएम हाउस ले गए थे। एक बार अलबत्ता सिंह का बंगला खाली कराने के मुद्दे पर सीएम शिवराज और उनके बीच कड़वाहट आई थी। लेकिन जब कमलनाथ सरकार बनी थी तब शिवराज सिंह चौहान उनसे मिलने कोलार स्थित आवास में मिलने गए थे और रिश्ते सामान्य होते दिखे थे। लेकिन अब कुछ आठ महीने बाद विधानसभा चुनाव होने है और दो दिन पहले ही सवाल-जवाब का सिलसिला शुरू हो गया है। सब को इस बात का इंतजार है कि दोनों नेताओं के मध्य यह सवालों की सियासत कहां तक जाएगी, कब तक चलेगी और क्या गुल खिलाएगी..? मगर इससे इतना तो तय सा हो गया है कि अगला चुनाव शिवराज विरुद्ध कमलनाथ का एजेंडा सेट हो रहा है। पिछले 2018 के चुनाव में भाजपा ने नारा दिया था –

“माफ करो महाराज, हमारे नेता शिवराज”। यद्द्पि अभी इस सीन में भारत जोड़ो यात्रा के सूत्रधार दिग्विजयसिंह की एंट्री होना शेष है। वे यात्रा के बाद कांग्रेस हाईकमान में कितने ताकतवर होते और उम्मीदवार चयन में क्या भूमिका निभाते हैं। दिग्विजयसिंह के बारे में कहा जाता है आप कितने भी आलोचक हो, उनसे चाहे जितनी नफरत करते हों लेकिन उन्हें इग्नोर नही कर सकते। यात्रा के बाद अनुमान है उनकी वापसी ही धमाकेदार होगी।
अभी तो शिवराज सिंह चौहान कमलनाथ को उनकी सरकार द्वारा किए गए वादों को याद दिला कर कांग्रेस को निशाने पर ले रहे हैं। इसमें कांग्रेस के वचन पत्र में किसानों की फसल पर बोनस और दुग्ध उत्पादकों को भी बोनस देने के वादे पर कटघरे में खड़ा कर रहे हैं। ये ज्यों ज्यों आगे बढ़ेगा इसमे तल्खी बढ़ने से इनकार नही किया जा सकता। अभी तो जवाब में नाथ ने कटाक्ष करते हुए कहा है कि शिवराज जी इसके लिए बहुत समय मिलने वाला है। उन्होंने यह भी कहा कि सीएम गाल बजाना बंद कर महिला सशक्तिकरण के लिए उनके स्व सहायता समूहों को ब्याज मुक्त 20 लाख रुपये तक का लोन दीजिए। दुग्ध उत्पादकों के हित में वचन पत्र में जो वादे किए थे उनका भी अपने दही जमा दिया है। अच्छी बात यह है कि दोनों नेता एकदूसरे के वादे याद दिलाकर वोटर को भी जगाने का काम कर रहे हैं। जनता अपने अपने हिसाब से सबका हिसाब करेगी।

मजेदार बात यह है कि कांग्रेस में कमलनाथ से लेकर पीसी शर्मा और उनके प्रवक्ता मीडिया के सामने यह कहने से नही चूक रहे हैं कि भले ही वादे हमारे थे मगर सरकार में भाजपा है तो भी जनकल्याण के वादों को उसे पूरा करना चाहिए। थोड़ा अटपटा सा लगता है ये सब। भला बताइए कांग्रेस के वादे भाजपा सरकार क्यों पूरे करेगी..? भाजपा क्या कोई भी पार्टी तो अपने किए वादों को ही पूरा करेगी ताकि चुनाव के समय वह फिर वोट मांग सके। खैर, राजनीति में अटपटी सी लगने वाली कुछ अच्छी और आदर्श सी लगने वाली बातें भी सुनाई और दिखाई दें तो हैरत मत करिए क्योंकि वोट की खातिर कोई भी दल और नेता अगर हद से गुजर जाएं तो इसे उनकी मजबूरी समझिए। मसला चुनाव जीतने का है। इसमें कामयाबी के लिए आने वाले दिनों में पॉलिटिकल स्टंट भी देखने और सुनने को मिलेंगे…

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