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फीलगुड का साल हो सकता है 2023

नया साल देश के नागरिकों के लिए फीलगुड का साल हो सकता है। सोचें, सारी दुनिया आर्थिक मंदी की चिंता में है। ज्यादतर देशों में महंगाई का संकट है तो दुनिया के अनेक देश कोरोना महामारी की नई लहर की चिंता में हैं। लेकिन भारत में रोजगार को छोड़ कर हर मोर्चे पर अच्छी खबरें आ रही हैं और कम से कम अभी तक कोरोना का प्रसार होता नहीं दिख रहा है, जबकि कोरोना के ओमिक्रॉन वैरिएंट के लगभग सारे सब वैरिएंट के केस भारत में मिल चुके हैं। हालंकि सिर्फ कोरोना नहीं फैलने या आर्थिक मोर्चे पर अच्छी खबरों की वजह से वर्ष 2023 फीलगुड का साल नहीं होगा, बल्कि इसलिए भी होगा क्योंकि इस साल देश के 10 राज्यों में  विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं और अगले साल लोकसभा का चुनाव होना है। लोकसभा के साथ ही दो बड़े राज्यों के विधानसभ चुनाव होने वाले हैं।

इस साल वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण जो बजट पेश करेंगी वह नरेंद्र मोदी की दूसरी सरकार का आखिरी बजट होगा। अगले साल चुनाव से पहले लेखानुदान आएगा और आम बजट चुनाव के बाद पेश होगा। सो, इस बार का जो बजट होगा वह पूरी तरह से चुनावी बजट होगा। इस बजट के प्रावधानों से भाजपा को लोकसभा चुनाव और 12 राज्यों के विधानसभा चुनाव लड़ने हैं। सो, अंदाजा लगाया जा सकता है कि इस बार बजट कितना लोक लुभावन हो सकता है। हालांकि कई लोक लुभावन घोषणाएं बजट से बाहर होती हैं और अगले साल के चुनाव से पहले भी संभव है कि प्रधानमंत्री कुछ बड़ी घोषणाएं करें या बड़ी योजनाओं का ऐलान हो। इस कार्यकाल में लाल किले से अपने आखिरी संबोधन में भी प्रधानमंत्री बड़ी घोषणा कर सकते हैं। लेकिन वित्तीय प्रावधानों के लिहाज से बजट में कुछ अच्छी घोषणाएं हो सकती हैं।

बड़ी विकास परियोजनाओं के अलावा बजट में नौकरी पेशा और मध्य वर्ग को टैक्स से राहत की घोषणा हो सकती है। मनरेगा में आवंटन बढ़ाने से लेकर किसान सम्मान निधि की राशि में भी बढ़ोतरी की घोषणा हो सकती है। सरकार ने मुफ्त अनाज की योजना को बदला है। अब पांच किलो मुफ्त और पांच किलो सस्ते अनाज की जगह 81 करोड़ से ज्यादा गरीबों को सिर्फ पांच किलो मुफ्त अनाज मिलेगा। उसकी भरपाई के लिए सरकार किसी नई योजना की घोषणा कर सकती है। सरकार चाहेगी कि लोगों के हाथ में नकदी पहुंचे ताकि मांग बढ़े और विकास की गाड़ी आगे बढ़े। महंगाई की दर कम हो रही है फिर भी वह रिजर्व बैंक की औसत सीमा से ऊपर रहेगी। उसका भी असर कम महसूस हो इसके लिए जरूरी है कि लोगों के हाथ में नकदी पहुंचे। केंद्र सरकार को पुरानी पेंशन योजना के कांग्रेस की दांव की काट करनी है इसके लिए भी कुछ बड़ी घोषणा हो सकती है। कुल मिला कर चुनावी साल में केंद्र सरकार खजाना खोलेगी। एक अनुमान के मुताबिक वित्त वर्ष 2023-24 में चालू खाते का घाटा बढ़ सकता है। वह 14.20 लाख करोड़ से बढ़ कर 14.80 लाख करोड़ रुपए हो सकता है। लेकिन चुनावी साल में इतना चलता है। सरकार इसलिए भी इसे अफोर्ड कर सकती है क्योंकि आर्थिक मोर्चे पर कई अच्छी खबरें पिछले कुछ दिनों से मिल रही हैं।

महंगाई की दर लगातार कम हो रही है। अभी हाल में दिसंबर महीने की खुदरा महंगाई का आंकड़ा आया है, जो 5.72 फीसदी रहा है। उससे पहले नवंबर में महंगाई दर 5.82 फीसदी रही थी। अगर साल दर साल के हिसाब से देखें तो दिसंबर 2022 की खुदरा महंगाई दिसंबर 2021 के लगभग बराबर रही। ध्यान रहे महंगाई दर काबू में करने के लिए रिजर्व बैंक ने पिछले लगभग पूरे साल नीतिगत ब्याज दरों में बढ़ोतरी की। रिजर्व बैंक की रेपो रेट छह फीसदी से ऊपर पहुंच गई है। अब जबकि महंगाई काबू में आ रही है तो रिजर्व बैंक पर से भी दबाव हटेगा और ब्याज दरों में कमी आ सकती है। सरकार विकास दर को लेकर चिंता में है इसलिए सरकार भी चाहती है कि रिजर्व बैंक ब्याज घटाए। करीब एक साल तक दहाई में रहने के बाद थोक महंगाई की दर भी छह फीसदी पर आ हुई है। सो, खुदरा महंगाई रिजर्व बैंक की ओर से तय की गई छह फीसदी की अधिकतम सीमा से नीचे है और थोक महंगाई भी घट गई है। खाने पीने की चीजों के दाम ठहरे हैं या कम हो रहे हैं, जिससे महंगाई बढ़ने की दर घट रही है।

महंगाई के अलावा दूसरे मोर्चे पर भी सरकार को अच्छी खबरें मिली हैं। पिछले ही हफ्ते औद्योगिक उत्पादन के आंकड़े आए, जिनके मुताबिक नवंबर में औद्योगिक उत्पादन बढ़ कर 7.1 फीसदी पहुंच गया, जो अक्टूबर में बहुत कम हो गया था। सरकार की ओर से जारी आंकड़ों के मुताबिक उपभोक्ता खर्च में बढ़ोतरी हो रही है और जीएसटी की वसूली लगातार बढ़ रही है। पिछली तीन तिमाही से हर महीने जीएसटी का संग्रह एक लाख 40 हजार करोड़ रुपए से ऊपर रहा है। प्रत्यक्ष कर की वसूली भी लक्ष्य से 26 फीसदी ज्यादा है। रुपया पहले ही काफी गिर चुका है लेकिन राहत की बात यह है कि इसमें अब और गिरावट नहीं आ रही है। डॉलर की कीमत 83 रुपए के आसपास ठहरी है। विदेशी मुद्रा भंडार 70 अरब डॉलर कम हुआ है लेकिन अब इसमें बढ़ोतरी शुरू हुई है।

शेयर बाजार 60 हजार तक पहुंच कर उसके आसपास ही ठहरा हुआ है। संस्थागत विदेशी निवेशकों के अपना पैसा निकालने की वजह से शेयर बाजार में उतार चढ़ाव था और रुपए पर दबाव बढ़ा था। दूसरे, अमेरिका में महंगाई दर नौ फीसदी से ऊपर जाने की वजह से फेडरल रिजर्व ने ब्याज दरों में बढ़ोतरी की थी, जिससे निवेश भारत से निकलने लगा था। लेकिन अब अमेरिका में भी महंगाई दर साढ़े छह फीसदी तक आ गई है और कहा जा रहा है कि ब्याज दर में कमी हो सकती है। इससे भारत में निवेशक रूकेंगे। इस बीच भारत में बैंकों की स्थिति ठीक हो रही है और उसके बैड लोन कम हुए हैं। भले बड़े कर्ज राइट ऑफ करने और ग्राहकों पर अनाप शनाप शुल्क लगाने से ऐसा हुआ है लेकिन अब बैंकों की स्थिति सुधरी है, जिससे शेयर बाजार में उनके शेयरों में तेजी बढ़ी है।

देश के नागरिकों के लिए 2023 इसलिए भी फीलगुड का साल हो सकता है क्योंकि केंद्र के साथ साथ चुनावी राज्यों की सरकारें भी खजाना खोलेंगी। सभी राज्यों का बजट चुनावी होगा, जिसमें मुफ्त की रेवड़ी वाली खूब सारी घोषणाएं होंगी। चुनाव के समय जो खर्च होगा और राजनीतिक दलों व उम्मीदवारों के संचित धन का जो हिस्सा निकल कर बाजार में आएगा वह अपनी जगह है लेकिन जनता को फीलगुड कराने वाली घोषणाएं बजट में भी होंगी। इन दिनों हर पार्टी मुफ्त बिजली, पानी की घोषणा से लेकर महिलाओं, किसानों, युवाओं में नकद बांटने की घोषणाएं कर रही हैं। कांग्रेस और कुछ अन्य पार्टियां भी पुरानी पेंशन योजना बहाल कर रही हैं। इसका अर्थव्यवस्था पर क्या असर होगा वह अपनी जगह है लेकिन इससे माहौल फीलगुड वाला बनेगा। करोड़ों सरकारी कर्मचारियों को अगर भविष्य की आश्वस्ति होती है तो वे पैसा निकालेंगे, जिससे अर्थव्यवस्था का चक्र तेजी से चलना शुरू होगा।

By अजीत द्विवेदी

संवाददाता/स्तंभकार/ वरिष्ठ संपादक जनसत्ता’ में प्रशिक्षु पत्रकार से पत्रकारिता शुरू करके अजीत द्विवेदी भास्कर, हिंदी चैनल ‘इंडिया न्यूज’ में सहायक संपादक और टीवी चैनल को लॉंच करने वाली टीम में अंहम दायित्व संभाले। संपादक हरिशंकर व्यास के संसर्ग में पत्रकारिता में उनके हर प्रयोग में शामिल और साक्षी। हिंदी की पहली कंप्यूटर पत्रिका ‘कंप्यूटर संचार सूचना’, टीवी के पहले आर्थिक कार्यक्रम ‘कारोबारनामा’, हिंदी के बहुभाषी पोर्टल ‘नेटजाल डॉटकॉम’, ईटीवी के ‘सेंट्रल हॉल’ और फिर लगातार ‘नया इंडिया’ नियमित राजनैतिक कॉलम और रिपोर्टिंग-लेखन व संपादन की बहुआयामी भूमिका।

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