निसंदेह मोदी सरकार ने अपनी पार्टी की ओर से किए गए कुछ वादों को पूरा किया है। जैसे जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने का फैसला। यह भारतीय जनसंघ का वादा था। आजादी के पांच साल बाद जनसंघ का गठन हुआ था और उसी समय से इस अनुच्छेद को हटाने की मांग हो रही थी। पार्टी ने अपने घोषणापत्र में इसे शामिल किया था। इसे 1980 में बनी भाजपा के घोषणापत्र में भी शामिल किया गया। उसे 2019 में पूरा किया गया, मतलब करीब सात दशक लगे। इसी तरह ‘रामलला हम आएंगे, मंदिर वहीं बनाएंगे’ का नारा और संकल्प भी कोई चार दशक पुराना है। अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले से वह पूरा होता हुआ है लेकिन अमित शाह ने ऐलान कर दिया है कि एक जनवरी 2023 को अयोध्या में भव्य राममंदिर का उद्घाटन हो जाएगा। मुस्लिम समाज में तीन तलाक खत्म करने का वादा भी पुराना था, जो सुप्रीम कोर्ट के आदेश से पूरा हुआ है।
इन वादों और संकल्पों के बाद कुछ ऐसी चीजें हैं, जिनका ढिंढोरा पीट दिया गया। जैसे प्रधानमंत्री मोदी की एक महत्वाकांक्षी योजना राष्ट्रीय स्वच्छता अभियान था। देश को खुले में शौच से मुक्त करने का संकल्प कि था। कुछ समय पहले ऐलान भी हो गया कि देश अब खुले में शौच से मुक्त है। हालांकि यह दावा हकीकत से कोसों दूर है। पिछले दिनों राजधानी दिल्ली के उप राज्यपाल वीके सक्सेना रात में रैन बसेरों का मुआयना करने निकले थे। उन्हे कश्मीरी गेट में पता चला कि सैकड़ों लोग अब भी शौच के लिए यमुना के किनारे जाते हैं। यह देश की राजधानी के एक इलाके की बात है। सोचें, राजधानी दिल्ली में जब इतने लोग खुले में शौच के लिए जा रहे हैं तो देश के गांवों, कस्बों और छोटे शहरों में क्या स्थिति होगी! लेकिन सरकार ने तो ऐलान कर दिया है कि देश खुले में शौच से मुक्त हो गया।
इसी तरह प्रधानमंत्री ने अपने पहले कार्यकाल में डिजिटल इंडिया, स्टार्ट अप इंडिया, मेक इन इंडिया आदि की योजनाएं शुरू की थीं। बाद में आत्मनिर्भर भारत को इसमें जोड़ा गया। मेक इन इंडिया की हकीकत मेक इन चाइना, सेल इन इंडिया में बदल गई है। चीन से भारत का कारोबार घाटा एक सौ अरब डॉलर पहुंच गया है। बावजूद इसके रोज ढिढोरा मेक इन इंडिया और आत्मनिर्भर भारत का बजता है। सरकार भारत को मैन्यूफैक्चरिंग का हब बता रही है तो डिजिटल इकोनॉमी का कैपिटल बता रही है। हर भाषण में स्टार्ट अप इंडिया के कथित इको सिस्टम का जिक्र हो रहा है। हकीकत यह है कि भारत तकनीक से लेकर रोजमर्रा की जरूरत की सभी चीजों के लिए दुनिया के दूसरे देशों पर ज्यादा निर्भर होता जा रहा है। जिस इकोनॉमिक इको सिस्टम की बात हो रही है उससे देश में असमानता ऐसी बढ़ी है कि सिर्फ एक फीसदी लोगों के पास अब देश की 40 फीसदी संपत्ति हो गई है। देश की आधी आबादी यानी 50 फीसदी लोगों के पास देश की सिर्फ तीन फीसदी संपत्ति है। देश के 60 फीसदी से ज्यादा लोग पांच किलो राशन अनाज पर पल रहे हैं, लेकिन नंबे फिसदी कंगली आबादी के बावजूद ढिंढोरा है कि भारत की आर्थिकी ब्रिटेन को पछाडते हुए है!