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राहुल को गलत साबित करे भाजपा!

युवा

भारतीय जनता पार्टी इस बात पर अड़ी है कि राहुल गांधी ने विदेश जाकर देश का अपमान किया है और इसके लिए उनको माफी मांगनी चाहिए। भाजपा के छोटे बड़े सभी नेता दावा कर रहे हैं कि देश में लोकतंत्र को कोई खतरा नहीं है और राहुल की आशंका के उलट लोकतंत्र मजबूत हो रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि भारत में लोकतंत्र मजबूत हो रहा है लेकिन कुछ लोग उस पर काला टीका लगा रहे हैं। हालांकि काला टीका लगाने का टोटका वही करता है, जो परवाह कर रहा होता है। बहरहाल, लोकतंत्र मजबूत हो, इससे अच्छी बात क्या हो सकती है! आखिर दुनिया भर की राजनीतिक व्यवस्थाओं का अध्ययन करने के बाद तमाम विशेषज्ञ इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि अपनी कमियों के बावजूद लोकतंत्र सबसे अच्छी राजनीतिक व्यवस्था है।

एक तरफ भारत सरकार और सत्तारूढ़ दल भाजपा कह रहे हैं कि देश में लोकतंत्र मजबूत हो रहा है तो दूसरी ओर सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी कह रही है कि लोकतंत्र कमजोर हो रहा है। कांग्रेस के साथ एक दर्जन से ज्यादा अन्य पार्टियां भी हैं, जिनके दो सौ के करीब सांसद हैं। अगर लोकसभा के एक तिहाई से ज्यादा सांसद राहुल को गलत नहीं मान रहे हैं तो यह सरकार और भाजपा दोनों की जिम्मेदारी बनती है कि वे राहुल को गलत साबित करें। वे बताएं कि कैसे  लोकतंत्र मजबूत हो रहा है और किस तरह से राहुल गलत दावा कर रहे हैं। लोकतंत्र की मजबूती का अपना दावा प्रमाणित करने का तरीका यह नहीं हो सकता है कि सत्तापक्ष संसद न चलने दे। भाजपा और केंद्र सरकार को यह समझना चाहिए कि राहुल गांधी के माफी मांग लेने से लोकतंत्र की मजबूती प्रमाणित नहीं होगी। लोकतंत्र की मजबूती तब प्रमाणित होगी, जब राहुल को संसद में अपना पक्ष रखने दिया जाए और तथ्य व तर्क से उन्हें गलत साबित किया जाए।

भाजपा और केंद्र सरकार की जिम्मेदारी है कि सिर्फ राहुल गांधी को गलत साबित करने की नहीं है, बल्कि दुनिया भर की तमाम उन संस्थाओं को गलत साबित करने की भी है, जिन्होंने भारत में लोकतंत्र की स्थिति पर सवाल उठाए हैं। अमेरिकी संस्था फ्रीडम हाउस ने अपनी रिपोर्ट में भारत की रैंकिंग घटा कर उसको आंशिक रूप से स्वतंत्र लोकतंत्र की श्रेणी में डाल दिया है। स्वीडन की संस्था वी-डेम ने भारत को इलेक्टेड ऑटोक्रेसी बताया है। ब्रिटेन की प्रतिष्ठित पत्रिका इकोनॉमिस्ट इंटेलीजेंस यूनिट ने अपने डेमोक्रेसी इंडेक्स में भारत की रैकिंग घटा कर उसके 53वें स्थान पर रखा है। सरकार और सत्तारूढ़ दल की ओर इन संस्थाओं को भारत विरोध बता कर इनकी रिपोर्ट को खारिज कर दिया गया। लेकिन उससे क्या इनकी रिपोर्ट गलत हो गई या दुनिया इनकी रिपोर्ट का संज्ञान नहीं लेगी?

यह ध्यान रखने की जरूरत है कि भारत में लोकतंत्र की मजबूती दिखाने के लिए राहुल गांधी का माफी मांगना जरूरी नहीं है और न उनकी सदस्यता छीनना जरूरी है। इसके लिए लोकतांत्रिक परंपराओं, व्यवस्थाओं और संस्थाओं को मजबूत बनाना होगा या यह दिखाना होगा कि ये संस्थाएं मजबूत हैं। सोचें, लोकतंत्र की मजबूती का दावा किया जा रहा है और 17वीं लोकसभा में अभी तक उपाध्यक्ष का चुनाव नहीं हुआ। चार साल बीत जाने के बाद भी एक महत्वपूर्ण लोकतांत्रिक पद पर नियुक्ति नहीं की गई। आमतौर पर स्वस्थ लोकतांत्रिक पंरपरा के मुताबिक विपक्ष का नेता उपाध्यक्ष नियुक्त होता है। लेकिन कांग्रेस का छोड़िए सरकार ने किसी पार्टी के नेता को उपाध्यक्ष बनाने लायक नहीं समझा। यह बहुत छोटी बात है लेकिन लोकतंत्र के प्रति सत्तापक्ष की सोच का इससे पता चलता है।

संसद के बजट सत्र के दूसरे चरण का पहला पूरा हफ्ता हंगामे में जाया हुआ और दूसरे हफ्ते भी हंगामा जारी रहा। यह हैरान करने वाली बात है कि सत्तापक्ष यानी भाजपा के सांसदों के हंगामे की वजह से संसद के दोनों सदनों की कार्यवाही नहीं चल पाई। क्या यह लोकतंत्र की मजबूती का संकेत है? राहुल गांधी ने जो भी बयान दिया है वह संसद से बाहर दिया है इसलिए संसद के अंदर उनको जो विशेषाधिकार होता है वह बाहर नहीं हासिल है। सो, क्यों नहीं सरकार उनके खिलाफ देशद्रोह का मुकदमा करती है? अगर उन्होंने देशद्रोह किया है तो क्या माफी मांग लेने से मामला खत्म हो जाता है या किसी कानून के तहत उस पर कार्रवाई होती है? संसद से बाहर कही गई बात के लिए संसद में सरकार कामकाज नहीं होने दे यह एक अनोखी घटना है।

राहुल गांधी ने लंदन में अपने भाषण में कहा कि केंद्रीय एजेंसियों का दुरुपयोग हो रहा है और उनका इस्तेमाल कर विपक्ष की आवाज दबाई जा रही है। सत्तापक्ष इस मामले में भी चाहे तो उनको गलत साबित कर सकता है। सरकार आंकड़े पेश करके बताए कि भाजपा या उसकी सहयोगी पार्टियों के कितने नेताओं के खिलाफ केंद्रीय एजेंसियों ने कार्रवाई की है। यह आंकड़ा पेश करके सरकार बताए कि राहुल गलत बोल रहे हैं! राहुल ने कहा कि सरकार के खिलाफ संसद में नहीं बोलने दिया जाता है। सरकार उनको बोलने देकर उनको गलत साबित करे। वे कह रहे हैं कि उनको अपना पक्ष रखने का मौका दिया जाए तो सरकार को उन्हें मौका देना चाहिए।  सरकार हंगामा करके संसद नहीं चलने देने की बजाय संसद चलाए और राहुल सहित विपक्ष को बोलने का मौका दे तभी तो साबित होगा कि लोकतंत्र मजबूत हो रहा है!

यह लोकतंत्र की क्या मजबूती है कि देश के सबसे बड़े उद्योगपति के खिलाफ एक अंतरराष्ट्रीय एजेंसी ने रिपोर्ट दी, जिसमें बड़ी गड़बड़ियों के सबूत दिए गए। उस रिपोर्ट का नतीजा यह हुआ कि कंपनी का 12 लाख करोड़ रुपया डूब गया। कंपनी के साथ साथ लाखों निवेशकों का भी पैसा डूबा, रिपोर्ट के दो महीने होने को हैं और सरकार की ओर से किसी की भी जुबान पर उस कंपनी का नाम नहीं आया है। सत्तापक्ष को इस मामले में भी राहुल को गलत साबित करना चाहिए और विपक्ष की मांग स्वीकार करके संयुक्त संसदीय समिति यानी जेपीसी का गठन करना चाहिए। आखिर अटल बिहारी वाजपेयी से लेकर नरसिंह राव और राजीव गांधी व मनमोहन सिंह तक सभी प्रधानमंत्रियों ने ऐसी घटनाओं के बाद जेपीसी की जांच कराई थी।

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