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गपशप

किस किस का जिक्र कीजिए?

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यह सिर्फ वर्ष 2022 की बात नहीं है, हर साल की बात है। भारत वह देश है जिसे  किसी बात से फर्क नहीं पड़ता। साल आते हैं चले जाते हैं। दुनिया एक कदम आगे बढ़ती है, हम जहां खड़े हैं वहीं कदमताल करते हैं या पीछे चले जाते हैं। किसी को कोई चिंता नहीं होती। हाल में फुटबॉल का विश्व कप हुआ। दुनिया की 32 श्रेष्ठ टीमों ने उसमें हिस्सा लिया। हम कभी उसका हिस्सा नहीं रहे हैं लेकिन कोई बात नहीं है। अगली बार 48 टीमें हिस्सा लेंगी, जिनमें एशिया की आठ टीमें होंगी। तब भी नहीं पहुंचे तो कोई बात नहीं है। दुनिया की दूसरी टीमों को खेलते देख कर तालियां बजाएंगे। हॉकी हमारा राष्ट्रीय खेल है लेकिन उसमें भी ओलंपिक का गोल्ड मेडल भारत ने 42 साल पहले 1980 में जीता था। वह भी तब जब रूस में हुए ओलंपिक आयोजन का पश्चिम के कई देशों ने बहिष्कार किया था। सोचें, 1928 से 1956 तक लगातार छह गोल्ड मेडल जीतने वाला देश 42 साल से गोल्ड नहीं जीत सका। लेकिन किसको क्या फर्क पड़ता है।

हॉलीवुड की फिल्म ‘अवतार’ भारत में धूम मचा रही है। भारत की किसी भी भाषा में बनी किसी फिल्म से ज्यादा कमाई हो रही है। लेकिनहम गर्व से विदेशीफिल्म की कमाई के आंकड़े शेयर कर रहे हैं। हमें इस बात की परवाह नहीं होती कि हम क्यों नहीं ऐसी फिल्में बनाते हैं! हमारे कथित शो मैन क्यों ग्रैंड फिल्मों के नाम पर भोंडी फिल्में बनाते हैं, इसकी भी हमें चिंता नहीं। ‘अवतार’ देखते हुए हम इस बात को लेकर आंदोलित रहते हैं कि अमुक हिंदी फिल्म के अमुक गाने में हीरोइन ने भगवा रंग की बिकनी और हीरो ने हरे रंग की कमीज कैसे पहनी?  भारत का फिल्म प्रमाणन बोर्ड तो ऐसा चिंता में रहता ही है। केंद्र और राज्य सरकारों के मंत्री भी इस चिंता में रहते हैं। उनकी चिंता देख कर करोड़ों लोग आश्वस्त होते हैं कि देखों उनके चुने हुए लोग उनके भले के लिए काम कर रहे हैं। विधर्मी उनकी भावनाओं को आहत नहीं कर पाएगें।

हॉलीवुड में ऑस्कर की तैयारी चल रही है। हम इस बात से खुश हैं कि हमारे यहां की दो-तीन फिल्में शॉर्ट लिस्ट हुई हैं। लगभग सौ साल के इतिहास में भारत की सिर्फ चार फिल्में शॉर्टलिस्ट हो पाई हैं। लेकिन क्या फर्क पड़ता है। अभी नवंबर के महीने में नोबल पुरस्कारों की घोषणा हुई। हर साल की तरह इस साल भी भारत के किसी वैज्ञानिक, अर्थशास्त्री, साहित्यकार का नाम उसमें नहीं था। आखिरी बार कोई 110 साल पहले भारत को साहित्य का नोबल मिला था। फिर कभी नहीं मिला। रविंद्रनाथ टैगोर हिंदुस्तान में रह कर नोबल हासिल करने वाले पहले व्यक्ति थे और दूसरे व्यक्ति चंद्रशेखर वेंकटरमन थे। इन दोनों को अपने ओरिजिनल काम के लिए नोबल मिला। वेंकटरमन को दुनिया रमन इफेक्ट के लिए जानती है। वे एशिया के पहले व्यक्ति थे, जिसे विज्ञान की किसी शाखा का नोबल मिला था। वह भी अंग्रेजों के राज में 1930 में। आजादी के बाद न किसी को साहित्य का नोबल मिला और न विज्ञान का। आजादी के बाद मदर टेरेसा और कैलाश सत्यार्थी ही ऐसे थे, जो भारत में रह कर काम कर रहे थे। बाकी जिनको भी नोबल मिला है वे सब विदेश में रह कर किसी विदेशी संस्था के लिए काम करते थे।

By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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