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हमज़ा युसुफ, स्कॉटलैंड में पहले मुस्लिम प्रमुख

हमज़ा युसुफ, स्कॉटलैंड में पहले मुस्लिम प्रमुख

स्कॉटलैंड को अपना पहला ऐसा फर्स्ट मिनिस्टर (प्रधानमंत्री के समकक्ष पद) मिला है, जो न तो यूरोपीय है और ना ही श्वेत – अर्थात जो पर्सन ऑफ़ कलर है। हमजा युसुफ के दादा जब ग्लास्गो में सिलाई मशीन बनाने वाली एक फैक्ट्री में काम करने पाकिस्तान से इंग्लैंड आए थे तब वे बड़ी मुश्किल से अंग्रेजी बोल पाते थे। हमज़ा युसुफ, ब्रिटेन के किसी भी क्षेत्र विशेष की सत्ताहस्तांतरित याकि डिवाल्वडसरकार के पहले मुस्लिम और पहले नस्लीय अल्पसंख्यक मुखिया हैं।

हमजा 37 वर्ष के हैं और स्कॉटलैंड के अब तक के सबसे युवा फर्स्ट मिनिस्टर हैं। उन्होंने निकोला स्टर्जन का स्थान लिया है जिन्होंने पिछले माह घोषणा की थी कि 8 वर्ष तक इस उत्तरदायित्व को निभाने के बाद वे अपना पद छोड़ रही हैं। सवाल है हमजा का स्कॉटलैंड की कमान संभालना क्यों महत्वपूर्ण है?  यह केवल स्कॉटलैंड के लिए ऐतिहासिक मौका नहीं है बल्कि पूरे यूके के लिए है। पिछले साल ऋषि सुनक ब्रिटेन के प्रधानमंत्री चुने गए थे। सन् 2017 में लियो वारडकर, आयरलैंड के प्रधानमंत्री चुने गए थे। इसका अर्थ यह है कि इतिहास में पहली बार ब्रिटेन, स्कॉटलैंड और आयरलैंड तीनों के सर्वोच्च नेता दक्षिण एशियाई मूल के हैं।

बहरहाल, अब उन चुनौतियों की बात जिन्हें युसुफ ने विरासत में पाया है। जिस तरह ऋषि सुनक को एक पंगु और बर्बाद हो चुकी अर्थव्यवस्था विरासत में मिली थी उसी तरह युसुफ को भी एक बंटा हुआ, विभ्रांत और निराश स्कॉटलैंड मिला है। युसुफ को निवर्तमान फर्स्ट मिनिस्टर निकोला स्टर्जन का निकट सहयोगी माना जाता है और ऐसा कहा जाता है कि वे शासन में निरंतरता बनाए रखेंगे – अर्थात स्टर्जन के कार्यक्रमों और नीतियों को आगे ले जाएंगे। हमजा के विरोधी अभी से घात लगाए बैठे हैं। वे स्टर्जन सरकार में मंत्री के रूप में उनकी असफलताओं का ढिंढ़ोरा पीट रहे हैं। जब वे परिवहन मंत्री थे तब ट्रेनें हमेशा लेट रहती थीं, जब वे न्याय मंत्री थे तो पुलिस एक के बाद एक संकट में फंसती रहती थी और जब वे स्वास्थ्य मंत्री थे तब एनएचएस (ब्रिटेन की राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा) में प्रतीक्षा सूची की लंबाई रिकार्ड स्तर पर थी। परंतु इसके बाद भी उन्हें अपनी पार्टी के नेताओं और अन्य मंत्रियों का समर्थन प्राप्त है क्योंकि यह आशा की जा रही है कि वे स्टर्जन की अन्य प्रगतिशील नीतियों पर चलते रहेंगे। वे स्कॉटिश सरकार के उस सुधार का समर्थन करेंगे जिसके अंतर्गत नागरिक कानूनी रूप से अपना लिंग बदल सकते हैं। इस प्रस्ताव को वेस्टमिंस्टर में स्थित ब्रिटिश सरकार ने अमल में लाने से रोक दिया था। केट फोर्ब्स, जो फर्स्ट मिनिस्टर के पद की दौड़ में थीं, का कहना है कि केवल निरंतरता से काम नहीं चलने वाला है।

इसमें कोई संदेह नहीं कि युसुफ चैन से नहीं रह पाएंगे। एक ओर उनकी पार्टी बुरी तरह से बंटी हुई है तो दूसरी ओर स्कॉटलैंड की जनता एक और जनमत संग्रह की मांग कर रही है।

अपनी जीत के बाद दिए गए अपने पहले भाषण में हमजा ने स्कॉटलैंड को यूके से अलग कर पूर्णतः स्वतंत्र देश बनाने की अपनी पार्टी की नीति को आगे ले जाने का वायदा किया। ‘‘हमारी पीढी देश को स्वतंत्रता दिलवा कर रहेगी,” उन्होंने सार्वजनिक रूप से प्रतिज्ञा की। नंबर 10, डाऊनिंग स्ट्रीट के प्रवक्ता ने कहा कि सुनक एक और जनमत संग्रह का समर्थन नहीं करेंगे। चाहे यूके से समर्थन मिले या न मिले, युसुफ अपने थके और निराश श्रोताओं में उत्साह भरने का भरपूर प्रयास कर रहे हैं।

बहुत दिन नहीं हुए जब स्कॉटलैंड में जोश और उत्साह का आलम था। स्कॉटलैंड के कई लोगों का मानना था कि ब्रेक्सिट और कोविड महामारी के दौरान स्टर्जन ने ब्रिटिश सरकार की तुलना में संकट से निपटने में कहीं बेहतर काम किया। परंतु यह उत्साह अब ठंडा पड़ चुका है। स्वतंत्रता हासिल करने के जोश में कमी आई है।  हाल में हुए एक सर्वेक्षण के अनुसार 44 प्रतिशत स्कॉट स्वतंत्रता चाहते हैं जबकि 56 प्रतिशत नहीं चाहते। ये आंकड़े लगभग वही हैं जो सन् 2014 के जनमत संग्रह के थे। तब 45 प्रतिशत ने स्वतंत्र स्कॉटलैंड के पक्ष में मत दिया था जबकि 55 प्रतिशत यूके का हिस्सा बने रहने के हामी थे। स्कॉटलैंड के लोग उन्हीं समस्याओं से जूझ रहे हैं जो पूरी दुनिया की समस्याएं हैं – बढ़ती महंगाई और गिरता जीवनस्तर। एक और समस्या यह है कि यूके के सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय दिया है स्कॉटलैंड की सरकार वेस्टमिंस्टर की सहमति के बगैर जनमत संग्रह नहीं करवा सकती। जाहिर है कि इसके कारण युसुफ के लिए ‘यस’ के पक्ष में अभियान चलाना मुश्किल होगा। स्टर्जन जीवटता की धनी और प्रभावशाली नेता थी परंतु उनके बारे में यह कहा जा रहा था कि वे देश को दो हिस्सों में बांट रही हैं और इस कारण उन्होंने अपना पद छोड़ना बेहतर समझा।

युसुफ ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वे अगले चुनाव को जनमत संग्रह के रूप में इस्तेमाल करने की स्टर्जन की योजना से सहमत नहीं हैं। उनका कहना है कि इसकी जगह वे स्वतंत्रता के पक्ष में ‘टिकाऊ बहुमत’ का निर्माण करेंगे। उन्होंने कहा, ‘‘केवल चुनाव के जरिए यह कहना कि 50 प्रतिशत या 51 प्रतिशत लोग स्वतंत्रता चाहते हैं, काफी नहीं होगा।” परंतु उनकी पहली प्राथमिकता स्कॉटलैंड को स्वतंत्रता दिलवाना है।

सत्ताधारी दल के वरिष्ठ सदस्यों का ख्याल है कि पार्टी को एक करने के प्रयास में वह टूट सकती है। दूसरी ओर युसुफ को लोगों को भी एकजुट करना है और आजादी के एक थके आंदोलन को संजीवनी देनी है। इसके लिए उन्हें कड़े निर्णय लेने होंगे। पार्टी के अंदर गुटबाजी और स्वतंत्रता के पुराने नारे को दुहराते जाने से स्काटिश लेबर और कंजरवेटिव पार्टियों को नया जीवन मिल सकता है। इन दोनों पार्टियों ने पिछले चुनाव में सत्ताधारी एसएनपी को धूल चटाने का भरपूर प्रयास किया था।

परंतु ब्रिटिश मीडिया निराशा के समुद्र में गोते नहीं लगा रहा है। उसका मानना है कि युसुफ ‘नए स्कॉटलैंड’ का प्रतिनिधित्व करते हैं जिसे स्टर्जन और उनके पूर्ववर्ती एलेक्स सालमंड ने एसएनपी के जरिए साकार करने की कोशिश की थी। इसके अतिरिक्त युसुफ एक समावेशी और बहुनस्लीय देश और समावेशी राष्ट्रवाद के रोल मॉडल के रूप में भी देखे जा रहे हैं।

क्या हमजा युसुफ अपनी पार्टी को और स्वतंत्रता के मुद्दे पर विभाजित स्कॉटलैंड को नई दिशा दे पाएंगे? या वे अपनी सहयोगी निकोला स्टर्जन की तरह देश को बांटने वाले नेता बन कर रह जाएंगे? क्या ऋषि सुनक और हमजा युसुफ – जो कि दोनों दक्षिण एशियाई प्रवासियों की संतान हैं –  एक दूसरे से हाथ मिलाकर यूके और स्कॉटलैंड को एकसाथ रख पाएंगे?

आने वाला समय दोनों ही नेताओं, उनकी पार्टियों और उनकी वैश्विक विरासत की कड़ी परीक्षा लेगा। यह देखना दिलचस्प होगा कि इन दोनों के नेतृत्व में यूके का भविष्य क्या आकार लेता है। (कापीः अमरीश हरदेनिया)

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Published by श्रुति व्यास

संवाददाता/स्तंभकार/ संपादक नया इंडिया में संवाददता और स्तंभकार। प्रबंध संपादक- www.nayaindia.com राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय राजनीति के समसामयिक विषयों पर रिपोर्टिंग और कॉलम लेखन। स्कॉटलेंड की सेंट एंड्रियूज विश्वविधालय में इंटरनेशनल रिलेशन व मेनेजमेंट के अध्ययन के साथ बीबीसी, दिल्ली आदि में वर्क अनुभव ले पत्रकारिता और भारत की राजनीति की राजनीति में दिलचस्पी से समसामयिक विषयों पर लिखना शुरू किया। लोकसभा तथा विधानसभा चुनावों की ग्राउंड रिपोर्टिंग, यूट्यूब तथा सोशल मीडिया के साथ अंग्रेजी वेबसाइट दिप्रिंट, रिडिफ आदि में लेखन योगदान। लिखने का पसंदीदा विषय लोकसभा-विधानसभा चुनावों को कवर करते हुए लोगों के मूड़, उनमें चरचे-चरखे और जमीनी हकीकत को समझना-बूझना।

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