nayaindia India china border dispute चीन को लेकर थोड़ी गंभीरता दिखी

चीन को लेकर थोड़ी गंभीरता दिखी

इसे देर आए दुरुस्त आए कह सकते हैं। हाल के दिनों में संभवतः पहली बार चीन के खतरे को लेकर भारत सरकार की गंभीरता दिखी है। वास्तविक नियंत्रण रेखा यानी एलएसी पर चीन की घुसपैठ, भारत की जमीन पर कब्जा या कब्जे की कोशिश, एलएसी पर एक के बाद एक बिंदुओं पर विवाद पैदा करने की चीन की रणनीति और एलएसी के उस पार अपना बुनियादी ढांचा मजबूत करने की चीन की कोशिशों पर अब तक इनकार की मुद्रा अपनाए रखने वाली केंद्र सरकार ने परोक्ष रूप से ही सही लेकिन उसके खतरे को समझा है और सीमा पर उसी की रणनीति से उसको जवाब देने की पहल की है। हालांकि यह पहल अब भी अधूरी है। अगर भारत सरकार चीन की आक्रामकता का जवाब देने के लिए उसके ऊपर आर्थिक दबाव बनाती यानी कारोबार कम करने और व्यापार घाटे को कम करने की पहल करती तो इस दोहरे प्रयास का ज्यादा लाभ मिल सकता था। इसके बावजूद सिर्फ सैन्य पहल और बुनियादी ढांचे के विकास की पहल को भी कम नहीं माना जा सकता है।

असल में एलएसी के आर-पार जिस तरह की गतिविधियां कुछ बरसों से चल रही हैं उन्हें देखते हुए भारत को सीमा पर चौकसी, निगरानी और बुनियादी ढांचे की मजबूती पर ध्यान देने की जरूरत थी। इस दिशा में सरकार ने दो बड़ी पहल की है। एक तो उसने सीमा के पास स्थित गांवो को ‘वाइब्रेंट विलेज’ बनाने की योजना बनाई है। इस मद में केंद्रीय कैबिनेट ने 48 सौ करोड़ रुपए की बड़ी रकम आवंटित की है। इस पैसे से उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम और केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख में सीमा के पास गांवों का बुनियादी ढांचा मजबूत किया जाएगा। ‘वाइब्रेंट विलेज’ योजना के तहत कुल 633 गांवों के लोगों के लोगों को जीवनयापन के बेहतर अवसर मुहैया कराने के उपाय किए जाएंगे। ध्यान रहे सीमा पर गांवों बेहतर सुविधाओं का होना और ग्रामीणों का वहां रहना सुरक्षा के लिए ठीक है।

भारत सरकार इन गांवों में बुनियादी ढांचे का विकास करेगी। नई सड़कें बनाई जाएंगी, जिनके सहारे इन गांवों को मुख्य इलाकों से जोड़ा जाएगा। संपर्क के दूसरे साधन जैसे मोबाइल और इंटरनेट की कनेक्टिविटी बढ़ाई जाएगी। ध्यान रहे यह काम चीन काफी समय से सीमा के दूसरी तरफ कर रहा है। वह सड़कें बना रहा है, रेल लाइन और विमान सुविधाओं को ठीक कर रहा है और साथ ही हाइब्रीड मोड पर गांवों को मजबूत कर रहा है। हाइब्रीड मोड का मतलब है कि वह सामान्य ग्रामीणों के साथ साथ बड़ी संख्या में पीपुल्स लिबरेशन आर्मी यानी चीन की सेना के लोगों को भी सीमा के गांवों के पास बसा रहा है। वह गांव के लोगों के लिए बुनियादी ढांचा बनाने के साथ साथ इन इलाकों में सैन्य संसाधन भी जुटा रहा है और उसका भी बुनियादी ढांचा मजबूत कर रहा है। यह अच्छी बात है कि भारत ने ‘वाइब्रेंट विलेज’ योजना के तहत एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है। वह सीमा पर के गांवों में स्कूल, कॉलेज बनवाए। सड़कें बनवाए और संचार साधन विकसित करे तो सीमा को सुरक्षित रखने में आसानी होगी।

चीन की तरह अगर भारत भी सैन्य और सिविल दोनों तरह के नागरिकों को इन गांवों में बसाए तो और बेहतर होगा। ध्यान रहे भारत के पास बहुत ज्यादा समय नहीं है। चीन पहले से ही बहुत आक्रामक तरीके से सीमा के पास अपनी तैयारियां कर रहा है। पूर्वी लद्दाख से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक उसने कई बिंदुओं को विवादित बना दिया है। वह एक के बाद एक नए क्षेत्रों पर दावा कर रहा है और उसके सैनिक घुसपैठ कर रहे हैं। लद्दाख की गलवान घाटी में जून 2020 में झड़प हुई थी तो दिसंबर 2022 में अरुणाचल प्रदेश के तवांग में झड़प हुई है। कई जगह चीन ने भारत की सीमा में अंदर तक घुसपैठ करके सड़कें और पुल बनवाएं हैं। 2017 में डोकलाम का विवाद ऐसे ही हुआ था। उसने अरुणाचल प्रदेश पर अपना दावा मजबूत करने के लिए अंदर के गांवों के नाम बदल कर उनका तिब्बती नाम कर दिया है। भारत की अपनी तैयारी और पहल के बीच एक अच्छी बात यह हुई है कि अमेरिकी सीनेट में वहां की दोनों पार्टियों ने एक साझा प्रस्ताव पेश किया, जिसमें अरुणाचल प्रदेश को भारत का अभिन्न अंग बताया गया और चीन की आक्रामकता के लिए उसकी आलोचना की।

बहरहाल, भारत सरकार ने ‘वाइब्रेंट विलेज’ योजना के अलावा दूसरी बड़ी पहल यह की है कि इंडो तिब्बत बॉर्डर पुलिस यानी आईटीबीपी की सात नई बटालियन तैयार करने का फैसला किया है। इसके तहत 94 सौ नए जवान आईटीबीपी में शामिल होंगे। ध्यान रहे भारत और चीन के बीच वास्तविक नियंत्रण रेखा पर भारत की पहरेदारी की पहली जिम्मेदारी आईटीबीपी की है। इसकी सात नई बटालियन बनाने और एक स्थानीय मुख्यालय बनाने से सुरक्षा की अग्रिम पंक्ति मजबूत होगी। इस पर भारत सरकार 18 सौ करोड़ रुपए खर्च करेगी। ध्यान रहे चीन एक रणनीति के तहत साढ़े तीन हजार किलोमीटर से लंबी सीमा रेखा के अलग अलग बिंदुओं पर विवाद पैदा करता है। जहां निगरानी या गश्त की व्यवस्था कमजोर होती है वहां उसके सैनिक घुसपैठ करते हैं और अपना दावा कर देते हैं। पिछले दिनों लद्दाख की एक पुलिस अधिकारी की रिपोर्ट में कहा गया था कि कई पेट्रोलिंग प्वाइंट पर भारतीय सेना पीछे हट गई है या किसी वजह से पेट्रोलिंग नहीं कर रही है। चीन के रुख को देखते हुए भारत को किसी भी प्वाइंट पर निगरानी कम नहीं होने देना है। जहां से निगरानी हटेगी या कम होगी वहां चीन विवाद पैदा करेगा। आईटीबीपी की सात नई बटालियन का गठन कहीं न कहीं इस जरूरत को पूरा करने के मकसद से किया गया है।

संपर्क बेहतर करने की सोच के तहत सरकार नई सड़कें बना रही है और इसी क्रम में हिमाचल से लद्दाख को जोड़ने वाला 4.1 किलोमीटर की सुरंग बनाने का फैसला भी किया गया है। यह ऑल वेदर टनल होगा, जिससे सालों भर कनेक्टिविटी बनी रहेगी और जरूरत पड़ने पर सैनिक व सैन्य साजो सीमा तक पहुंचाने में आसानी होगी। यह अच्छी बात है कि भारत सरकार ने चीन की ओर से सीमा पर किए जा रहे काम की गंभीरता को समझा है और अलग अलग योजनाओं के तहत सीमा सुरक्षित करने के उपाय किए हैं। यह भी अच्छी बात है कि इसका ढोल नहीं पीटा जा रहा है। बुनियादी ढांचे के विकास और गांवों के विकास के नाम पर नए प्रोजेक्ट शुरू हुए हैं। इनके साथ साथ अगर सरकार चीन पर इकोनॉमिक कॉस्ट डाले यानी व्यवस्थित तरीके से दूरगामी लक्ष्य के साथ आयात घटाए तो यह दोहरी रणनीति ज्यादा कारगर साबित हो सकती है। क्योंकि सैन्य तैयारियां तब तक बहुत कारगर नहीं हो सकती हैं, जब तक चीन के ऊपर से आर्थिक निर्भरता कम नहीं होती है।

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By अजीत द्विवेदी

संवाददाता/स्तंभकार/ वरिष्ठ संपादक जनसत्ता’ में प्रशिक्षु पत्रकार से पत्रकारिता शुरू करके अजीत द्विवेदी भास्कर, हिंदी चैनल ‘इंडिया न्यूज’ में सहायक संपादक और टीवी चैनल को लॉंच करने वाली टीम में अंहम दायित्व संभाले। संपादक हरिशंकर व्यास के संसर्ग में पत्रकारिता में उनके हर प्रयोग में शामिल और साक्षी। हिंदी की पहली कंप्यूटर पत्रिका ‘कंप्यूटर संचार सूचना’, टीवी के पहले आर्थिक कार्यक्रम ‘कारोबारनामा’, हिंदी के बहुभाषी पोर्टल ‘नेटजाल डॉटकॉम’, ईटीवी के ‘सेंट्रल हॉल’ और फिर लगातार ‘नया इंडिया’ नियमित राजनैतिक कॉलम और रिपोर्टिंग-लेखन व संपादन की बहुआयामी भूमिका।

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