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गपशप

2024 में भारत बिना विपक्ष का दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र?

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सन् 2024 भारत का टर्निंग प्वाइंट है। दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र बिना विपक्ष के होगा। नोट रखें मेरी इस बात को कि सन् 2024 के लोकसभा चुनाव में विपक्ष निपटेगा। पार्टियों के बोर्ड होंगे मगर दुकान खाली। 2024 का चुनाव अखिलेश यादव, ममता बनर्जी, अरविंद केजरीवाल और नीतीश कुमार का आखिरी लोकसभा चुनाव होगा। मतलब यह कि मई 2024 के आम चुनाव के बाद सपा, तृणमूल, आप, जदयू जिंदा तो रहेंगे मगर कम्युनिस्ट पार्टियों, रिपब्लिकन पार्टी व बसपा जैसी हैसियत में। ये क्षत्रप 2024 से 2029 के बीच में प्रादेशिक वजूद भी पूरी तरह गंवा बैठेंगे। नेता मुकद्मों और जेल में फंसे होंगे। सवाल है कैसे यह संभव?

सर्वप्रथम नोट करें कि सन् 2024 का आम चुनाव मोदी का आखिरी चुनाव है। इस चुनाव और उसके बाद के पांच साला कार्यकाल में हिंदू राजनीति अमित शाह-योगी की जमीन बनाने पर फोकस करेगी। करिश्मे के बाद भी सत्ता-पक्की स्थायी रहे इसके लिए विपक्ष को खत्म करने का मिशन। इसमें यूपी, बिहार, बंगाल के 60 प्रतिशत हिंदू वोटों को भगवा में रंगने की प्राथमिकता नंबर एक पर। ध्यान रहे 2019 में भाजपा ने 13 प्रदेशों में कुल वोटों में 50 प्रतिशत से ज्यादा वोट पाए थे। इस लिस्ट पर गौर करें- हिमाचल, गुजरात और उत्तराखंड में भाजपा को क्रमशः 69 प्रतिशत, 62 प्रतिशत और 61 प्रतिशत वोट मिले थे। झारखंड राजस्थान, मध्य प्रदेश अरूणाचल प्रदेश, हरियाणा, दिल्ली के छह राज्यों में भाजपा को 57 से 59 प्रतिशत के बीच वोट मिले। फिर तीसरी कैटेगरी के चार राज्यों छतीसगढ़, कर्नाटक, गोवा, चंडीगढ़ में हर जगह भाजपा के 51 प्रतिशत वोट थे। उत्तर प्रदेश में भाजपा के पचास फीसदी वोट थे। इन 13 राज्यों की 273 सीटों में से भाजपा ने 243 सीटें जीतीं।

बिहार और बंगाल का जहां सवाल है तो बिहार की मौजूदा राजनीति में यदि जनता दल यू के वोटों को अलग रखें तो भाजपा और पासवान पार्टी के साझे में तब 32 प्रतिशत वोट थे। दोनों की 23 सीटें हैं। जनता दल यू का वोट तब 22 प्रतिशत था। उधर बंगाल में भाजपा को 2019 के लोकसभा चुनाव में 41 प्रतिशत वोट और 18 सीटें मिली थीं।

कुल मिलाकर इन पंद्रह राज्यों की 355 लोकसभा सीटों में भाजपा के पास अभी 284 सीटें हैं। इसे अधिकतम कह सकते हैं। अपनी जगह बात ठीक है। पर सोचें, कि सन् 2024 में यदि यही रिजल्ट रहा तब अखिलेश, ममता, केजरीवाल और नीतीश कुमार के लिए क्या बचेगा? उनके लिए आगे क्या बचेगा? फिलहाल मैं कांग्रेस को अलग रख रहा हूं। मगर हां, यह भी तय मानें सीट जीतने की बात तो दूर कांग्रेस भी इन प्रदेशों में पुराना वोट आधार भी गंवाएगी। इसलिए क्योंकि आम आदमी पार्टी कई राज्यों में उसके वोट वैसे ही खाएगी जैसे उसने गुजरात और गोवा में खाए।

बहरहाल फिलहाल मुद्दा 2024 में इन 15 राज्यों में मोदी की हवा और भाजपा की इलेक्शनरिंग के जादू का है। विपक्ष के मिटने का है। बंगाल, बिहार, यूपी, पंजाब, दिल्ली ये वे पांच राज्य हैं, जिसमें भाजपा को वोट और सीट दोनों बढ़ानी है ताकि केजरीवाल, ममता, नीतीश, अखिलेश का झंझट आगे के लिए हमेशा खत्म हो। दक्षिण के राज्यों में यह आसान नहीं है। पर इन राज्यों में है। भाजपा अपने मकसद को दो तरीकों से साधेगी। एक, हिंदू वोटों (खास तौर पर पिछड़े और लाभार्थी) में 65-70 प्रतिशत लोगों की गोलबंदी से। मसलन पंजाब में यदि 38 प्रतिशत हिंदू हैं तो खालिस्तानी हल्ले में हिंदुओं को पूरी तरह भगवा बना डालना। इससे कांग्रेस, अकाली, आप चुनाव में सिख वोटों में परस्पर लड़ती-भिड़ती होगी वही प्रदेश की 13 सीटों में भी भाजपा अकेले या कुछ परोक्ष तालमेल से सीटें जीत लेगी। कांग्रेस और आप दोनों आपस में लड़ कर ही निपटेंगे।

हां, 2024 के चुनाव तक खालिस्तानी हल्ला ऐसा रहेगा कि केजरीवाल हिंदू और सिख दोनों में न केवल बुरी तरह बदनाम होंगे, बल्कि आश्चर्य नहीं जो अपने नेताओं के साथ जेल में हों। भाजपा के लिए केजरीवाल अब हर तरह से उपयोगी हैं। पंजाब के हिंदुओं को, दिल्ली-हरियाणा के पंजाबियों को अपने पीछे गोलबंद बनवाने के लिए तो आप पार्टी की भ्रष्ट कमीज दिखला कर अपने को उजाला बतलाने के भाजपा प्रचार से लेकर हरियाणा, हिमाचल, राजस्थान, उत्तराखंड सब तरफ कांग्रेस के वोट कटवाने के लिए भी। संभव ही नहीं है जो सन् 2024 के लोकसभा चुनाव में आप पार्टी एक भी लोकसभा सीट जीत पाए। फिर दिल्ली विधानसभा चुनाव में आप का पूरी तरह सफाया है।

यही बंगाल और बिहार में होना है। बंगाल में कम से कम 45 प्रतिशत हिंदू वोटों की गोलंबदी तो बिहार में गैर-यादव हिंदू वोटों की नई गोलंबदी भाजपा की रणनीति है। मामूली बात है मगर बड़ा महत्व है। भाजपा ने सम्राट चौधरी को प्रदेश अध्यक्ष बना कर गैर-यादव पिछड़ों के की गोलबंदी करवाने के संकेत दिए इसलिए लोकसभा चुनाव में जनता दल यू को बिहार में 15 प्रतिशत (हां, जदयू-राजद-कांग्रेस-लेफ्ट का एलायंस यदि पूरी ताकत से लड़ा तो अलग बात) वोट भी नहीं मिल पाएगा। वहां मुस्लिम बहुल इलाकों में भाजपा की अलग रणनीति है तो पिछड़ा बहुल में अलग।

इसी एप्रोच में भाजपा बंगाल और यूपी में काम कर रही है। मुस्लिम बहुल रामपुर में भाजपा जीती है तो बंगाल में भी इसलिए जीतेगी क्योंकि जैसे उत्तर प्रदेश में मायावती के बाद अब अखिलेश यादव को मुसलमान भाजपा का पिट्ठू समझने लगा है वैसी ही इमेज ममता बनर्जी की बंगाल के मुसलमानों में बनती हुई है। जो काम केजरीवाल हरियाणा, राजस्थान, पंजाब में कांग्रेस को डुबाने के लिए करेंगे वैसा ही काम कांग्रेस-लेफ्ट यूपी और बंगाल में मोदी विरोधी घोर सेकुलर तथा मुस्लिम वोट पा कर ममता-अखिलेश के लिए करेंगे। कोई माने या न माने मोदी विरोधी तमाम सेकुलर वोट और मुसलमान मन ही मन राहुल गांधी और कांग्रेस को मोदी विरोधी लड़ाई का असल जूझारू नेता मान रहा है। तभी एक लब्बोलुआब कि जैसे केजरीवाल और अखिलेश इस मुगालते में हैं कि 2024 के चुनाव में कांग्रेस खत्म होगी तो कांग्रेस में भी सोचा जा रहा है कि ममता, केजरीवाल, अखिलेश 2024 में गुल हो जाएंगे मगर कांग्रेस जिंदा रहेगी। इसलिए वह क्यों एलायंस के लिए भागे!

जाहिर है मोदी-शाह 2024 में विपक्ष को मिटा देने की ठाने हुए हैं तो विपक्ष भी आत्महत्या के दसियों उपाय करता हुआ है।

By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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