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पहले कर्नाटक जीत कर दिखाएं

ByNI Desk,
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लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस धीरे-धीरे अपनी पोजिशनिंग करते हुए है। इसमें कुछ भी गलत नहीं है। जब ऐसी छोटी छोटी पार्टियां, जिनके पास एक भी लोकसभा सांसद नहीं है या 10-15 सांसद हैं वे भी जब अपनी पोजिशनिंग कर रही हैं और अपने नेता को भावी प्रधानमंत्री बतला रही हैं तो कांग्रेस क्यों पीछे रहे? आखिर वह सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी है! इसलिए जब कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने नगालैंड की चुनावी सभा में कहा कि 2024 में भाजपा हारेगी और केंद्र में कांग्रेस के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार बनेगी, तो पूरे देश में इसकी चर्चा हुई। इससे पहले मध्य प्रदेश के कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ने कहा था कि राहुल गांधी विपक्षी गठबंधन के नेता होंगे, तब इतनी चर्चा नहीं हुई थी। लेकिन खड़गे के बयान को गंभीरता से लिया गया है। इसका कारण यह है कि वे कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं और दूसरे उन्होंने यह भी कहा कि विपक्षी पार्टियों से इस बारे में बात हो रही है।

परंतु सवाल है कि क्या खड़गे के कहने या बातचीत करने से विपक्षी पार्टियों का गठबंधन हो जाएगा और वे कांग्रेस पार्टी का नेतृत्व स्वीकार कर लेंगी? खड़गे को पता है और सोनिया, राहुल व प्रियंका भी जानते हैं कि कांग्रेस अभी जिस स्थिति में है, उस स्थिति में उसे स्वाभाविक रूप से विपक्षी गठबंधन का नेता नहीं माना जाएगा। इसके लिए कांग्रेस और खड़गे दोनों को पहले कर्नाटक जीत कर दिखाना होगा। कर्नाटक खड़गे का गृह प्रदेश है, जहां उन्होंने पांच दशक से ज्यादा समय तक राजनीति की है। वे पांच दशक से ज्यादा समय के बाद पहले कन्नड़ नेता है, जो कांग्रेस के अध्यक्ष बने हैं। वे दलित समुदाय से आते हैं और उनके पिता मिल मजदूर थे। यानी उनके पास राजनीतिक ताकत है और उनके पक्ष में सामाजिक समीकरण भी है।

जहां तक कर्नाटक की राजनीतिक स्थिति का सवाल है तो वह कांग्रेस के लिए फिलहाल फेवरेबल है। कांग्रेस और जेडीएस गठबंधन की सरकार गिरा कर भाजपा ने अपनी सरकार बनाई थी। कांग्रेस के 17 विधायकों के इस्तीफे कराए गए थे। बाद में वे भाजपा की टिकट पर चुनाव लड़े। यह कांग्रेस के लिए सहानुभूति बनवाने वाला फैक्टर है। मध्यावधि सत्ता बदल में बीएस येदियुरप्पा मुख्यमंत्री बने थे लेकिन दो साल के बाद भाजपा ने उनको हटा कर बसवराज बोम्मई को मुख्यमंत्री बनाया। वे भी लिंगायत समुदाय से आते हैं लेकिन उनकी कमजोरी यह है कि वे येदियुरप्पा जैसे जन समर्थन वाले नेता नहीं हैं और उनकी पृष्ठभूमि आरएसएस की नहीं है। इस वजह से उनके सीएम बनने के बाद से ही प्रदेश की राजनीति और सरकार दोनों में टकराव चल रहा है। उनको येदियुरप्पा के समर्थन से मुख्यमंत्री बनाया गया था लेकिन अब येदियुरप्पा भी खुश नहीं हैं। उनके बेटे बीवाई विजयेंद्र को एमएलसी बनाया गया लेकिन उन्हे मंत्री नहीं बनाया गया।

भाजपा के दो दिग्गज नेता केएस ईश्वरप्पा और रमेश जरकिहोली ने बहुत दबाव बनाया फिर भी उनको मंत्री नहीं बनाया गया। दोनों ने विधानसभा के पिछले सत्र का बहिष्कार किया था। भाजपा के अंदर की खींचतान इतने पर ही खत्म नहीं होती है। भाजपा के राष्ट्रीय संगठन महामंत्री बीएल संतोष कर्नाटक के हैं और उनकी भी महत्वाकांक्षा मुख्यमंत्री बनने की बताई जाती है। भाजपा के मजबूत क्षत्रप रहे बेल्लारी बंधुओं में से एक जनार्दन रेड्डी ने अलग पार्टी बना ली है। इस वजह से भी राज्य की राजनीति में टकराव चल रहा है। सो, चुनाव से पहले भाजपा बिखरी हुई दिख रही है और उसकी सरकार के खिलाफ एंटी इन्कंबैंसी है। इसकी भरपाई के लिए वह टीपू सुल्तान, हिजाब, हलाल मीट जैसे मुद्दों को हाईलाइट कर रही है।

यह कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के लिए आदर्श स्थिति है। यदि वे अपनी पार्टी में एकजुटता बनवा कर चुनाव लड़ाते हैं तो कांग्रेस के लिए कर्नाटक की लड़ाई आसान हो जाएगी। दक्षिण भारत में केरल के बाद कर्नाटक एकमात्र राज्य है, जहां कांग्रेस अपने दम पर लड़ने की स्थिति में है। कर्नाटक में उसके पास नेता हैं, संगठन है, संसाधन है और सामाजिक समीकरण है। कांग्रेस को पता है कि लिंगायत वोट का बड़ा हिस्सा भाजपा के साथ जाएगा। लेकिन वोक्कालिगा, पिछड़ा, दलित और मुस्लिम वोट कांग्रेस के साथ जुड़ सकता है। पारंपरिक रूप से वोक्कालिगा वोट एचडी देवगौड़ा परिवार के साथ जाता है क्योंकि देवगौड़ा वोक्कालिगा हैं। लेकिन कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष डीके शिवकुमार वोक्कालिगा हैं और उनके समुदाय में यह धारणा बनी है कि कांग्रेस की सरकार बनी तो वे मुख्यमंत्री बन सकते हैं। इसलिए इस बार वोक्कालिगा वोट में विभाजन संभव है। सिद्धरमैया मजबूत ओबीसी जाति से आते हैं, जिसकी आबादी 35 फीसदी के करीब है। यह संख्या उनको कर्नाटक का सबसे मजबूत नेता बनाती है। खड़गे खुद दलित समुदाय के हैं और उनके अध्यक्ष बनने से इस समुदाय में उनके प्रति एक लगाव होगा। मुस्लिम समुदाय को पता है कि जेडीएस अधिकतम 40 विधानसभा सीट जीतने वाली पार्टी है। इसलिए भाजपा को चुनौती सिर्फ कांग्रेस ही दे सकती है। सो, वे कांग्रेस के साथ ही रहेंगे।

इस तरह कांग्रेस का अपना सामाजिक समीकरण बहुत मजबूत है। पिछले यानी 2018 के चुनाव में कांग्रेस के पांच साल के राज की एंटी इन्कंबैंसी थी तब भी कांग्रेस ने 80 सीट जीती और जेडीएस के साथ मिल कर सरकार बना ली थी। इस बार कांग्रेस अकेले लड़ कर भी इससे बेहतर कर सकती है। लेकिन खड़गे ने पूरे देश में 2024 के लिए जो विपक्षी गठबंधन बनाने की बात कही है उसकी परीक्षा कर्नाटक में हो सकती है। खड़गे पहल करके जेडीएस से बात कर सकते हैं और राज्य की सभी 224 सीटों पर भाजपा के मुकाबले विपक्ष का एक साझा उम्मीदवार उतारने की सहमति बना सकते हैं। अगर एक पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर खड़गे कर्नाटक में कांग्रेस और जेडीएस का तालमेल बनवा देते हैं और मई में होने वाले विधानसभा चुनाव में भाजपा को हरा देते हैं तो यह पूरे देश के लिए एक मॉडल बनेगा। अपने गृह प्रदेश में जीत से खड़गे का कद बढ़ेगा और कांग्रेस में उनकी ऑथोरिटी भी बनेगी। वे फिर विपक्षी एकता बनवाने के सूत्रधार बन सकते हैं। फिर मजबूरी में चंद्रशेखर राव को कांग्रेस से बात करनी होगी क्योंकि कर्नाटक में कांग्रेस जीती तो वह तेलंगाना में पूरा जोर लगाएगी। हालांकि कांग्रेस जोर लगा कर जीत नहीं पाएगी, बल्कि केसीआर को हरवा देगी। इसलिए वहां भाजपा को रोकने के लिए केसीआर को कांग्रेस की जरूरत पड़ेगी।

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