nayaindia loksabha election केजरी, अखिलेश, ममता, केसीआर, हेमंत, राहुल का अहंकार जेल से खत्म होगा या चुनावी सफाये से?
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केजरी, अखिलेश, ममता, केसीआर, हेमंत, राहुल का अहंकार जेल से खत्म होगा या चुनावी सफाये से?

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अहंकार अपनी वोट गणित से नरेंद्र मोदी को हरा देने का। पर तय माने हिंदूशाही विपक्ष को मिटा देने वाली  है। सोचें, मनीष सिसोदिया और लालू के कुनबे पर! इन्हे जेल में डालना या छापे एक्स्ट्रिम नहीं हैं, बल्कि 2024 से पहले और बाद का वह ‘नॉर्मल’’ है, जिससे 2029 से पहले भारत का राजनीतिक भूगोल बदला मिलेगा। पहले तिहाड़ में सिसोदिया का अर्थ बूझें। कई लोग मानते थे कि मनीष सॉफ्ट, साफ और सभी से मेल-मुलाकात रखने वाला भला नेता है। इसलिए उनकी गिरफ्तारी नहीं होगी। केजरीवाल जेल जाएंगे मगर सिसोदिया नहीं। यह भी दलील थी कि भाजपा को अब आप से फायदा है। आप के कारण गुजरात में भाजपा की छप्पर फाड़ जीत हुई। केजरीवाल का उपयोग मोदी विरोधी हिंदू वोटों को काटने के लिए अब वैसा ही है, जैसे मुस्लिम वोटों को कटवाने के लिए ओवैसी का। अपनी जगह दोनों बातें सही मगर इस तरह सोचने वालों को यह समझ नहीं है कि मोदी-शाह और संघ परिवार का मिशन अब स्थायी शासन है। इस मिशन में 2024 से 2029 का समय सर्वाधिक अहम व निर्णायक है। सन् 2029 तक उत्तर भारत (लोकसभा की 227 सीटों वाला) में विपक्ष को मिटा देना है। मतलब दिल्ली में आप की औकात कांग्रेस जैसी तो यूपी में समाजवादी पार्टी की बसपा-कांग्रेस जैसी और बिहार में राजद को पासवान की पार्टी वाली हैसियत में पहुंचाना है ताकि लोकसभा तो दूर विधानसभा चुनाव में भी नीतीश कुमार लड़ने की हैसियत में न रहें। नीतिश वापिस भाजपा की शरणागत।

कह सकते हैं जैसे कांग्रेस सन् 2014 से पहले मोदी-शाह को लेकर बेखबर थी वैसे अरविंद केजरीवाल, अखिलेश, नीतीश-लालू, हेमंत, ममता याकि तमाम विपक्षी नेता अब इस मुगालते में हैं कि मोदी-शाह-संघ की मशीनरी और हिंदू वोट थकते हुए हैं। जैसे केजरीवाल का मुगालता कि दिल्ली से पंजाब, पंजाब से राष्ट्रीय पार्टी की ताकत बनने से वे 2024 में और बढ़ कर 2029 के चुनाव में मोदी-शाह के अखिल भारतीय विकल्प होंगे वैसे ही सभी के मुंगेरी ख्याल!

ऐसासपना अखिलेश यादव का भी हैं। वे यूपी में माया-कांग्रेस के खात्मे के साथ एक दिन योगी की जगह प्रदेश के सीएम, फिर मोदी की जगह पीएम बनने का ख्वाब लिए हुए हैं तो उधर राहुल गांधी-प्रियंका गांधी वाड्रा और उनके सलाहकार जयराम रमेश, सैम पित्रोदा आदि कायह सोचना स्वाभाविक है कि अल्टीमेटली कांग्रेस ही हिंदुवादी राजनीति को हराएगी। ऐसे ही गलतफहमी में ममता बनर्जी तथा मायावती हैं। दोनों ने अपने-अपने भतीजे क्रमशः अभिषेक और आकाश की सीबीआई-ईडी से रक्षा में नरेंद्र मोदी के रहमोकरम में रहते ख्याल बना रखा होगा कि उनकी पार्टी के वोट हमेशा पक्के रहेंगे जबकि मोदी-शाह टेंपररी फिनोमिना हैं। तभी नोट रखें सन्2024 में बसपा यूपी में लोकदल जैसी हैसियत में होगी वहीं बंगाल में भाजपा गजब सीटें जीत कर तृणमूल के मुस्लिम और हिंदू वोट समीकरण को बिगाड़ कर विधानसभा चुनाव में अपना मुख्यमंत्री बनाएगी।

हां, ममता बनर्जी, केजरीवाल, अखिलेश और अपने वोट बैंक के समीकरण सोचें तमाम विरोधी नेता ढर्रे में मोदी-शाह कीताकत को घटता माने हुए हैं। कुछ वैसे ही जैसे पार्टी के बिखरने से पहले उद्धव ठाकरे गलतफहमी में थे। उद्धव ठाकरे या किसी ने भी सोचा था कि न केवल उद्धव ठाकरे की पार्टी तोड़ी जाएगी, बल्कि नाम, चुनाव चिन्ह और बाल ठाकरे की विरासत को ही भाजपा बिखेर देगी। सोचें, इतने एक्स्ट्रिम पर मोदी-शाह क्यों? मनीष सिसोदिया क्यों जेल में? लालू परिवार पर छापे क्यों? केसीआर की बेटी कविता पर तलवार क्यों? छतीसगढ़ में क्यों लगातार ईडी व सीबीआई की छापेमारी? ममता बनर्जी और अखिलेश यादव को इतना घिघियाता-चुप्पीधारी क्यों बनाया? हेमंत सोरेन परिवार पर तलवार क्यों? जवाब में भाजपा की दो टूक रणनीति कि जिस भी पार्टी का कुछ वोट आधार है उसके नेताओं को ईडी-सीबीआई-जेल-कोर्ट में इतना अटका दो कि वे कायदे से या एलायंस से चुनाव नहीं लड़ पाएं और उनकी चुनौती चिंदीमार (जैसे बसपा हुई) हैसियत में खत्म।इससे मोदी-शाह के लिए वह आदर्श स्थिति बनेगीजिससे सन् 2024-2029-2034 के रोडमैप में जहां लोकसभा की तीन सौ से ऊपर सीटें पक्की तो दो-तिहाई राज्य हिंदूशाही में भी रंगे हुए।

कह सकते हैं मैं बहुत दूर की, नरेंद्र मोदी के बाद का सिनेरियो लिए हुए हूं। हां, सही है। और ऐसा इसलिए क्योंकि नरेंद्र मोदी अब अपनी सत्ता के लिए नहीं, बल्कि अपनी विरासत को पक्का बनाने के मोड में हैं। वे अपनी विरासत के लिए अमित शाह या योगी आदित्यनाथ या संघ के लिए रास्ता पक्का बना दे रहे हैं। इसकी प्राथमिक जरूरत में सन् 2024 के चुनाव (आगे-पीछे के विधानसभा चुनावों सहित) के साथ उत्तर प्रदेश, बिहार, दिल्ली याकि उत्तर भारत और महाराष्ट्र व बंगाल के हर उस नेता, उस पार्टी को बेपेंदा बनाएंगे, जो अपने आइडिया से हिंदुओं के बहकाने (खास तौर पर पिछड़ी-दलित आबादी) के फिलहाल थोड़े-बहुत वोट लिए हुए है।

जाहिर है केजरीवाल, नीतीश-तेजस्वी, केसीआर, राहुल गांधी, प्रियंका गांधी, ममता बनर्जी, उद्धव-शरद पवार का कैनवस जहां विधानसभा चुनाव व 2024 के लोकसभा चुनाव का है वही मोदी-शाह, संघ परिवार पंद्रह-बीस साल के रोडमैप में राजनीति करता हुआ है। इसके लिए वह सब जिसका उद्धव, केजरीवाल, राहुल गांधी, अखिलेश, तेजस्वी आदि को तब तक भान नहीं होता जब तक सिर पर न आ पड़े। इसलिए राहुल गांधी चाहे जितनी भारत यात्रा करें, वे एक दिन जेल में होंगे तो रॉर्बट वाड्रा भी। ऐसे ही अरविंद केजरीवाल होंगे तो हेमंत सोरेन भी। ऐसे ही बंगाल के विधानसभा चुनाव से पहले ममता और अखिलेश परिवार के साथ होना है। ममता बनर्जी इस बात को नहीं समझ सकतीं कि बंगाल को जीतना मोदी-शाह-संघ परिवार का दिल का मामला है, वैसे ही जैसे मंदिरों के उत्तर प्रदेश और आदिवासियों के झारखंड और छतीसगढ़ का है। महाराष्ट्र, राजस्थान या मध्य प्रदेश में भले उलट-पुलट बरदाश्त लेकिन यूपी, झारखंड, छतीसगढ़ और बंगाल जैसे प्रदेशों को भगवा बनाने या बनाए रखने का इरादा दो टूक है।

कुल मिलाकर उद्धव ठाकरे से ले कर मनीष सिसोदिया के घटनाक्रम का अर्थ सिर्फ एक है। विपक्ष को लूला-लंगड़ा और अपंग बना देना। उसे लड़ने लायक नहीं रहने देना। तभी मैं कर्नाटक में भाजपा की जीत बूझ रहा हूं। वहां जनता दल (एस) के कुमारस्वामी विपक्ष के वोट काट भाजपा को जितवाने की वैसी ही राजनीति करेंगे जैसे ओवैसी करते हैं या ममता ने हाल में पूर्वोतर, उससे पहले आप ने गुजरात में की थी। यों कांग्रेस के खड़गे, शिवकुमार, सिद्धरमैया भी यह गलतफहमी पाले हुए हैं कि वे अपने बूते भाजपा को हरा देंगे। राहुल की यात्रा के बाद कांग्रेस हवा में उड़ते हुए है। मगर यदि कर्नाटक से शुरू विधानसभा चुनावों में एक के बाद एक राज्य में कांग्रेस हारी तो मल्लिकार्जुन खड़गे (राहुल गांधी, रॉर्बट वाड्रा के जेल में होने के अलग सिनेरियो) क्या तो पार्टी को लोकसभा चुनाव लड़ाने का हौसला लिए हुए होंगे और कैसे विपक्ष से एलायंस बनाएंगे!

सवाल है कि केजरीवाल, राहुल, कविता, हेमंत आदि जेल गए तो क्या इससे इनकी पार्टियों में अकेले मोदी को हरा देने की अकड़ खत्म नहीं होगी? लॉजिक से तो लगता है कि मनीष सिसोदिया की गिरफ्तारी के बाद अरविंद केजरीवाल दिल्ली में कांग्रेस से साझा बनाने की सोचें? केसीआर तेलंगाना में ले देकर कांग्रेस से एलायंस बना वोट नहीं बंटने दें और कर्नाटक में खड़गे और देवगौड़ा भी एलायंस बना लें। दूसरा सवाल है कि ईडी-सीबीआई के छापों और गिरफ्तारियों से लोगों में क्या मोदी सरकार के तौर-तरीकों से नफरत नहीं बन रही होगी? क्या यह नरेंद्र मोदी की विनाश काले विपरीत बुद्धि वाली राजनीति नहीं है?

इन सवालों व बातों को मैं इसलिए फिजूल मानता हूं क्योंकि पहली बात जो हिंदू वोट बैंक है वह मोदी को भगवान मानता है। इसलिए भाजपा के वोट में रत्ती कमी नहीं होनी है। दूसरा सत्य है कि भाजपा के पास अपार खजाने सहित वह हर साम-दाम-दंड-भेद है, जिससे कांग्रेस, आप, सपा, बसपा, राजद, जेएमएम, तृणमूल आदि पार्टियों में एलायंस की सहमति वह नहीं बनने देगी। पार्टियों को खरीदने से लेकर, डराने, मजबूर करने, लाचार बनाने, ममता, केजरीवाल, अखिलेश सबकों पालतू बनाने के दसियों तरीके हैं। तभी तो किस हद तक अरविंद केजरीवाल, केसीआर, उद्धव ठाकरे, तेजस्वी आदि की राजनीति खत्म कराने के वे काम है, जिसकी कल्पना नहीं थी। सोचें, अरविंद केजरीवाल-सिसोदिया की कामयाबी के सियासी सफर का तिहाड़ तक पहुंचना। यदि इससे केजरीवाल को सहानुभूति, उन्हें राजनीतिक फायदे की तनिक भी गुजांइश होती तो क्या मोदी-शाह को पूर्वानुमान नहीं होता? मान कर चलें कि नरेंद्र मोदी और अमित शाह ने सब जाना-बूझा और तय किया हुआ है कि 2029 तक वे कैसे देश के उस सियासी झाड़-जंजाल को जला कर साफ करेंगे, जिससे विपक्षी कांटे चुभते हैं, हल्ला होता है!

By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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