nayaindia अब राहुल, प्रियंका अमेठी-रायबरेली जाएं, लोगों को जोड़े!

अब राहुल, प्रियंका अमेठी-रायबरेली जाएं, लोगों को जोड़े!

और अविस्मरणीय। ऊपर से बर्फ गिर रही। नीचे बर्फ जमी और उसके बीच में लोगजमे। और ऐसे ही बर्फबारी के बीच राहुल दिल से बोलते हुए। लगभग चार महीने, चार हजार किलोमीटर और हजारों लोगो के साथ की गई यात्रा का समापन एक संतोषभाव के साथ कठिन क्षण भी होता है। राहुल भी भावुक थे और सुनने वाले भी। दुनिया की अच्छी स्पीचें कभी उस समय लोगों को समझ में नहीं आती हैं। बाद में इतिहास बताता है कि कैसे वह भाषण उस देश, समाज के लिए टर्निंग पाइंट था। राहुल का 30 जनवरी का श्रीनगर के शेर ए कश्मीर क्रिकेट स्टेडियम मेंदिया भाषण उसी श्रेणी में आता है।

मीडिया पर ऐसा दबाव कभी नहीं रहा कि वह इतनी सफल और अभूतपूर्व यात्रा कोन दिखाए न लिखे उसके बारे में। और अडानी के बारे में लगातार लिखे और दिखाए कि जनता उनका राष्ट्रहित में पूरा समर्थन नहीं कर रही है। यह पाप है। जनता को इसका फल भोगना पड़ेगा। वह जैसा धर्मेन्द्र शोले में कहता है कि सूखा पड़ेगा, अकाल पड़ेगा लोगों के पास जो बची खुची नौकरियां हैं वे भी जाएंगी, मंहगाई और बढ़ेगी, अग्निवीर की तनखा और कम होगी सब तबाह हो जाएगा। जागो जागो भारतवासी अडानी को और पैसा दो। राष्ट्रधर्म यही है। राष्ट्र सेठ को बचाने में अपना तन मन धन सब वार दो। अडानी बचेगा तो देश बचेगा। मीडिया यही सब बता रहा है। उसके पास भारत जोड़ो यात्रा की सफल समाप्ति की खबरें दिखाने का समय नहीं है।

लेकिन मीडिया अब सूरज नहीं रहा कि जिसके आलोक में खबरें दिखती थीं, सत्यदिखता था चमकता था। अब तो वह मुर्गा हो गया है जो सोचता है कि उसके बताने से ही खबर होगी नहीं तो नहीं होगी। राहुल की यात्रा पर शब्द कम पड़जाएंगे। हमने कई राज्यों में जाकर यात्रा कवर की। और अभी अंतिम रूप सेश्रीनगर से यह लिख रहे हैं।

और अविस्मरणीय। ऊपर से बर्फ गिर रही। नीचे बर्फ जमी और उसके बीच में लोगजमे। और ऐसे ही बर्फबारी के बीच राहुल दिल से बोलते हुए। लगभग चार महीने,चार हजार किलोमीटर और हजारों लोगो के साथ की गई यात्रा का समापन एक संतोषभाव के साथ कठिन क्षण भी होता है। राहुल भी भावुक थे और सुनने वाले भी।

दुनिया की अच्छी स्पीचें कभी उस समय लोगों को समझ में नहीं आती हैं। बादमें इतिहास बताता है कि कैसे वह भाषण उस देश, समाज के लिए टर्निंग पाइंटथा। राहुल का 30 जनवरी का श्रीनगर के शेर ए कश्मीर क्रिकेट स्टेडियम मेंदिया भाषण उसी श्रेणी में आता है। राहुल ने इसमें भारत के बारे में अपनादर्द बताते हुए कहा कि ऐसा देश हो जिसमें कभी किसी के पास कोई ऐसी मैसेज,ऐसा फोन नहीं आए जिसमें उसके प्रिय की हिंसा से, आतंकवाद से न रहने कीखबर हो।

कश्मीर से उनका यह कहना बहुत मायने रखता है। ये सीधा पाकिस्तानको संदेश था कि वह अपनी सीमा पार से चलाई जा रही आतंकवादी गतिविधियां बंदकर दे। चीन को भी था कि वह घुसपैठ करके हमारे सैनिकों पर हमला न करे।राहुल ने इससे पहले बताया कि कैसे उनके पास अपनी दादी और पिता की हत्याओंकी खबर आई थी। और साथ ही अपने दुख को सबके दुखों के साथ जोड़ते हुए कहाकि ऐसे ही बुरी खबरें हमारे सुरक्षा कर्मियों के घरों में, आम नागरिकोंके घरों में पहुंचती  हैं। यह बंद होना चाहिए। मैं ऐसे भारत चाहता हूं जहां इस तरह की तोड़ने वाली खबर किसी घर में न आए।

राहुल जो पूरी यात्रा में प्रेम का संदेश देते पहुंचे हैं यही उसका सारथा। नफरत, हिंसा खत्म हो। प्रेम भाईचारा, परस्पर विश्वास देश में वापस आए। आतंकवाद खत्म हो। हिंसा खत्म हो। और इसी के लिए उन्होंने अपनी मन कीभावना का इजहार करते हुए कहा कि जब मैंने जम्मू से श्रीनगर के लिए यात्रास्टार्ट की तो मुझे कहा गया अब आप पैदल मत जाओ। बहुत खतरा है। हेंडग्रेनेड आ जाएगा। राहुल ने कहा मैंने सोचा तो क्या हो जाएगा? ज्यादा सेज्यादा मेरी सफेद टी शर्ट लाल हो जाएगी। मगर मैं जो प्यार का संदेश देनाचाहता हूं वह नहीं रुकना चाहिए। और मैंने पैदल आने का ही निर्णय लिया।

राहुल जब यह कह रहे कि शर्ट लाल हो जाएगी तो सुनने वाले भी भावुक हो गए।कैसा आदमी है अपनी दादी, अपने पिता के बाद खुद के लिए ऐसी बात कर रहा है।बहुत भावुक क्षण था। आंखो में आंसू आने से रोकने की मुश्किल कोशिश का।

खैर कन्याकुमारी से चला मुसाफिर पहुंच गया कश्मीर में। अपने संदेश के साथकि प्यार और भाईचारा ही भारत में शांति समृद्धि लाएगा। देश को मजबूतबनाएगा। अब सवाल यह है कि उस संदेश का क्रियान्वयन कैसे होगा?

लोग अगले कदम की प्रतिक्षा कर रहे हैं। राहुल के मन में क्या है। 29जनवरी को अपनी प्रेस कान्फ्रेंस में श्रीनगर में राहुल ने कहा कि इनके मनमें कुछ है। यात्रा के बाद का प्रोग्राम। उन्होंने मजाक करते हुए कहा कि चार महीने हो गए चलते चलते। थोड़ा रेस्ट कर लेने दो फिर बताते हैं।पता नहीं कि राहुल के मन में क्या है, कैसा है! मगर आज जब वह कश्मीर को अपना घर बता रहे है।

तो यूपी वालों खासतौर से अमेठी रायबरेली वालों केदिल में एक सवाल है कि वर्तमान घर तो यहीं है इसमें कांग्रेस की वापसीकैसे करेंगे?होना तो यह चाहिए कि अब राहुल और प्रियंका दोनों को एक साथ अमेठीरायबरेली आना चाहिए। और यहीं से यूपी से 2024 का बिगुल फूंकना चाहिए।पूरे देश में लोग उत्साहित हैं। मगर अमेठी और रायबरेली के लोगों काउत्साह और उम्मीद सबसे ज्यादा है। यात्रा के बाद अगर अपना पहला दौराराहुल और प्रियंका अमेठी रायबरेली से शुरू करते हैं तो यूपी में नवजागरणहो सकता है। और यूपी में होने का मतलब पूरे देश में है।

यूपी में इस समय बाकी देश जैसी बेरोजगारी, मंहगाई, सरकारी शिक्षा,चिकित्सा का न होना जैसी समस्याएं तो है हीं मगर यहां कानून व्यवस्था कीस्थिति भी बहुत खराब है। खबरें रोककर या बुलडोजर, एनकाउंटर के प्रचार किजरिए स्थिति अच्छी बताने की चाहे जितनी कोशिश की जाए मगर ऐसा है नहीं है।

पूरे देश को हिला देने वाले हाथरस बलात्कार और फिर इसमें पीड़िता कारातों रात शव जला देने और उसके बाद परिवार के घर को घेर कर नारेबाजीकरने, परिवार पर ही उल्टे आरोप लगाने की घटना सामान्य नहीं है। इसी तरहलखीमपुर खीरी में केन्द्रीय गृहराज्य मंत्री के पुत्र द्वारा किसनों कोरोंद देने और फिर जमानत पर बाहर आ जाने का मामला भी यह बताता है कि समर्थके खिलाफ कुछ नहीं हो रहा। खुशी दुबे जैसी नवविवाहिता लड़की जरूरगिरफ्तार होकर ढाई साल से ज्यादा जेल में रह सकती है।

लेकिन यूपी की हालत आज यह है कि इन सवालों को उठाने वाला कोई नहीं है।राहुल और प्रियंका पीछे नहीं रहे। हर जगह गए। खुशी दुबे का मामला उठानेके लिए उसकी बहन को विधानसभा का टिकट भी दिया। मगर कांग्रेस की अकेली औरकमजोर आवाज किसी ने सुनी नहीं।

मायावती, अखिलेश यादव कोई साथ आया नहीं। लेकिन अब मायवती और अखिलेश कोइसका खामियाजा भुगतना पड़ रहा है। दोनों तेजी के साथ अपनी प्रासंगिकता औरसमर्थन खोते जा रहे हैं। मुलायम को पद्म विभुषण देकर मोदी सरकार नेअखिलेश को और धर्म संकट में डाल दिया है। अगर वे पिता का अवार्ड लेनेजाते हैं तो मुसलमानों के मन में उनको लेकर चल रहा संदेह और पुख्ता होगा।अखिलेश केवल यादवों के भरोसे राजनीति नहीं कर सकते। उधर मायवती के पूरीतरह मोदी सरकार की शरण में जाने के बाद तो दलित भी उनसे छिटकने लगे हैं।ऐसे में कांग्रेस के लिए यूपी में तीन दशक बाद पहली बार सुनहरा मौका बना है। इस बार सिर्फ दलित, मुसलमान और ब्राह्मण का काम्बिनेशन ही नहींबनेगा। बाकी समाज भी साथ आएगा।

मगर इसके लिए राहुल और प्रियंका को यहां कड़ी मेहनत और सही टीम के साथअभी से जुटना होगा। प्रियंका को अगर यहां से लोकसभा लड़ना है तो अभी सेतैयारी शुरू करना होगी। अमेठी रायबरेली और सुल्तानपुर के भी केन्डिडेंटअभी से छांटना होंगे। याद रखें कि 2009 में यूपी में कांग्रेस ने वापसीकी थी। बीस से ज्यादा सीटें जीतकर। मगर फिर अपनी लापरवाहियों और अच्छीटीम न लगा पाने के कारण वह बढ़त गवां दी। मगर परिस्थितियों ने फिर मौकादिया है। राहुल और प्रियंका को इसे कैश करना चाहिए।

By शकील अख़्तर

स्वतंत्र पत्रकार। नया इंडिया में नियमित कन्ट्रिब्यटर। नवभारत टाइम्स के पूर्व राजनीतिक संपादक और ब्यूरो चीफ। कोई 45 वर्षों का पत्रकारिता अनुभव। सन् 1990 से 2000 के कश्मीर के मुश्किल भरे दस वर्षों में कश्मीर के रहते हुए घाटी को कवर किया।

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