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हिंदुत्व की राजनीति का जवाब क्या है?

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नब्बे के दशक में जब राम जन्मभूमि का आंदोलन चरम पर था तब अक्सर कहा जाता था कि विपक्ष भाजपा से तो लड़ सकता है परंतु भगवान राम से कैसे लड़ेगा। वैसे ही मौजूदा दौर का सवाल है कि विपक्ष एकजुट होकर भाजपा से तो लड़ सकता है लेकिन हिंदुत्व की राजनीति से कैसे लड़ेगा? यह यक्ष प्रश्न है कि विपक्ष के पास हिंदुत्व की राजनीति का क्या जवाब है? क्या हिंदुत्व की राजनीति का जवाब हिंदुत्व ही है या रोटी, कपड़ा और मकान का सवाल हिंदुत्व का जवाब होगा? विपक्ष के कई नेता खम ठोंक कह रहे हैं कि देश की आर्थिक हालत बहुत जर्जर है, आम नागरिक महंगाई और बेरोजगारी से परेशान है और उसने 10 साल का लंबा समय देकर देख लिया है कि, स्थितियां नहीं सुधर रही हैं, बल्कि और खराब होती जा रही हैं। इसलिए वह धर्म की राजनीति में यकीन करते हुए भी अगले लोकसभा चुनाव में बदलाव के लिए वोट करेगा। एक धारणा यह भी है कि धर्म की राजनीति अब चरम पर पहुंच गई है। उसका अतिरेक हो रहा है, जिसकी वजह से चुनाव में लोगों का मोहभंग भी हो सकता है।

इन दोनों स्थितियों पर वस्तुनिष्ठ तरीके से विचार करने से पहले हाल की दो घटनाओं का ब्योरा जानना जरूरी है। इससे पता चलेगा कि हिंदुत्व की राजनीति किस तरह से हो रही है, वह किस स्तर पर लोगों को प्रभावित कर रही है और किस तरह से भाजपा परदे के पीछे रह कर हिंदू कंसोलिडेशन के लिए काम कर रही है। पहली घटना छत्तीसगढ़ की है, जहां इस साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। 18 फरवरी को अखिल भारतीय संत समिति की ओर से चार शक्तिपीठों से पदयात्रा शुरू हुई थी। राजनांदगांव के पानाबरस में बम्लेश्वरी मंदिर, दंतेवाड़ा के दंतेश्वरी मंदिर, जांजगीर-चांपा के चंद्रहासिनी मंदिर और बिलासपुर के महामाया मंदिर से यात्राएं शुरू हुईं और औसतन सात-सात सौ किलोमीटर चल कर रायपुर में खत्म हुई। यह कुल यात्रा 28 सौ किलोमीटर की रही।

यात्रा पूरी होने के बाद 19 मार्च को एक बड़ा संत समागम हुआ, जिसे देश के अनेक बड़े संतों ने संबोधित किया। बेहद सम्मानित माने जाने वाले संत अवधेशानंद गिरी ने इस सभा में एक प्रस्थापना दी। उन्होंने कहा कि, ‘जिस दिन हिंदू कट्टर हो जाएगा, उस दिन शांति और सद्भाव का दरवाजा खुल जाएगा’। कट्टरता का यह समर्थन अनायास नहीं था। यह ‘भय बिनु होही न प्रीत’ के सिद्धांत का विस्तार है। पदयात्रा का संयोजन कर रहे चित्रकूट के संत राजीव लोचन ने कहा कि छत्तीसगढ़ में हिंदू राष्ट्र बनेगा और पूरी दुनिया में फैलेगा। इस तरह संतों की पदयात्रा का समापन हिंदू राष्ट्र बनाने की मांग के साथ हुआ। भाजपा, आरएसएस और विहिप ने इसे समर्थन दिया। संतों की पदयात्रा, हिंदू राष्ट्र का ऐलान और हिंदुओं को कट्टर बनने की सलाह क्या राजनीति की दिशा तय नहीं करेगी? ध्यान रहे यह काम प्रत्यक्ष रूप से भाजपा नहीं कर रही है। यह काम संत समिति कर रही है, जिस पर आम हिंदू भरोसा करता है। कहने की जरूरत नहीं है कि वह हिंदू राष्ट्र बनाने के लिए किस पार्टी पर यकीन करेगा! उसके अवचेतन में यह बात बैठाई जा रही है कि चुनाव आने पर उसे क्या करना है।

दूसरी घटना महाराष्ट्र की है, जो लोकसभा सीटों की संख्या के लिहाज से दूसरा सबसे बड़ा राज्य है और तीन बड़ी पार्टियों के महा विकास अघाड़ी की वजह से भाजपा के लिए बड़ी चुनौती वाला प्रदेश है। वहां सकल हिंदू समाज की ओर से हिंदू जन आक्रोश मोर्चा की 50 रैलियां हुई हैं। राज्य के सभी 36 जिलों में रैली निकाली गई। हर बड़े शहर के मुख्य इलाकों से हजारों लोगों ने बड़े बड़े भगवा झंडे लेकर सड़कों पर मार्च किया। मार्च के बाद रैलियां हुईं, जिनमें लव जिहाद और लैंड जिहाद रोकने की अपील की गई। इन रैलियों में खुलेआम एक समुदाय के लोगों का आर्थिक बहिष्कार करने की अपील की गई। छत्तीसगढ़ में संतों की यात्रा और हिंदू जन आक्रोश मोर्चा की रैलियों में यह समानता रही कि इन रैलियों में भी भाजपा के नेता बैकग्राउंड में रहे। रैलियों में भाजपा के सांसद और विधायक शामिल हुए, लेकिन भाषण नहीं दिया। भाषण देने के लिए, कट्टर दक्षिणपंथी नेताओं को बुलाया गया था। तेलंगाना में अपने भड़काऊ भाषण के लिए कार्रवाई का सामना कर रहे भाजपा के निष्कासित विधायक टी राजा सिंह, काजल हिंदुस्तानी और कालीचरण महाराज जैसे लोगों ने भाषण दिया।

पिछले दिनों मुस्लिम बुद्धिजीवियों के समूह एलायंस फॉर इकोनॉमिक एंड एजुकेशनल एम्पावरमेंट ऑफ अंडरप्रीविलेज्ड ने आरएसएस प्रमुख को चिट्ठी लिख कर हिंदू जन आक्रोश मोर्चा की रैलियों के बारे में बताया। उन्होंने इस बात पर निराशा जताई कि अल्पसंख्यक समुदाय के प्रति खुलेआम घृणा के प्रचार के बावजूद संघ की ओर से दखल नहीं दिया जा रहा है। ध्यान रहे मुस्लिम समुदाय के प्रति खुलेआम घृणा का प्रचार भाजपा नहीं कर रही है। दूसरे संगठन यह काम कर रहे हैं। उनका काम डर दिखाना है उसके बाद का काम जनता खुद कर देगी। डर के माहौल में कहने की जरूरत नहीं है कि सुरक्षा के लिए वह किसके पास जाएगी! इन रैलियों में हुए भाषण को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने भी नाराजगी जताई है और कोई दो महीने बाद टी राजा सिंह के खिलाफ पहला मुकदमा दर्ज हुआ है।

अगर बारीकी से देखें तो इस तरह की घटनाएं हर राज्य में किसी न किसी तरह से हो रही है। मिसाल के तौर पर झारखंड में आदिवासियों को व्यवस्थित तरीके से बताया जा रहा है कि घुसपैठिए बांग्लादेशी मुसलमान संथालपरगना के इलाके में उनकी लड़कियों से शादी कर रहे हैं, जिससे मुस्लिम आबादी बढ़ रही है। खुद केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने अपनी दो रैलियों में यह बात कही है। जमीनी स्तर पर भाजपा तो इसका प्रचार कर ही रही है। कर्नाटक में टीपू सुल्तान प्रतीक बना है, जिसे हिंदुओं का हत्यारा बताया जा रहा है और साबित किया जा रहा है कि उसे अंग्रेजों ने नहीं, बल्कि वोक्कालिगा समुदाय के लोगों ने मारा था। उत्तर प्रदेश में मुठभेड़ और बुलडोजर से नैरेटिव सेट किया जा रहा है।

इन घटनाओं से ऐसा लग रहा है कि गुजरात की तरह पूरे देश को हिंदुत्व की प्रयोगशाला में बदला जा रहा है। किसी न किसी तरह का प्रयोग हर राज्य में चल रहा है। विपक्ष के पास इसकी कोई काट नहीं है। केंद्र सरकार विकास कार्यों का जो दावा कर रही है, उसको गलत साबित करने के लिए विपक्ष आंकड़े पेश कर सकता है। सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाने वाले आंकड़े भी विपक्ष पेश कर सकता है। अपनी उपलब्धियों को बेहतर बता सकता है और अच्छे लोक लुभावन वादे भी कर सकता है। लेकिन बिल्कुल जमीनी स्तर पर हिंदुत्व का जो प्रचार हो रहा है, हिंदू राष्ट्र की जो भावना भरी जा रही है, सबसे बड़े अल्पसंख्यक समुदाय के प्रति जैसी नफरत फैलाई जा रही है, उसका जैसा डर दिखाया जा रहा है, उसका क्या जवाब है सिवाए उस उम्मीद के कि भगवान लोगों को सद्बुद्धि दें, उन्हें अपना अच्छा बुरा सोचने की सामर्थ्य दें?

By अजीत द्विवेदी

संवाददाता/स्तंभकार/ वरिष्ठ संपादक जनसत्ता’ में प्रशिक्षु पत्रकार से पत्रकारिता शुरू करके अजीत द्विवेदी भास्कर, हिंदी चैनल ‘इंडिया न्यूज’ में सहायक संपादक और टीवी चैनल को लॉंच करने वाली टीम में अंहम दायित्व संभाले। संपादक हरिशंकर व्यास के संसर्ग में पत्रकारिता में उनके हर प्रयोग में शामिल और साक्षी। हिंदी की पहली कंप्यूटर पत्रिका ‘कंप्यूटर संचार सूचना’, टीवी के पहले आर्थिक कार्यक्रम ‘कारोबारनामा’, हिंदी के बहुभाषी पोर्टल ‘नेटजाल डॉटकॉम’, ईटीवी के ‘सेंट्रल हॉल’ और फिर लगातार ‘नया इंडिया’ नियमित राजनैतिक कॉलम और रिपोर्टिंग-लेखन व संपादन की बहुआयामी भूमिका।

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