कांग्रेस पार्टी के साथ वैसे तो कई समस्याएं हैं लेकिन एक बड़ी समस्या यह है कि उसके नेताओं और सोशल मीडिया के उसके सपोर्ट सिस्टम ने राहुल गांधी को लार्जर दैन लाइफ छवि का नेता बना दिया है। इसमें संदेह नहीं है कि समय के साथ राहुल की राजनीति में सुधार हुआ है और वे एक रिलक्टेंट नेता से आगे बढ़ कर जुझारू नेता बन गए हैं। लेकिन उनको अभी तक राजनीतिक कामयाबी नहीं मिली है। उनकी मां सोनिया गांधी ने सबसे खराब प्रदर्शन में लोकसभा की जितनी सीटें जीती हैं उतनी सीटों तक भी अभी वे कांग्रेस को नहीं ले जा पाए हैं।
फिर भी कांग्रेस के नेता और सोशल मीडिया का उनका सपोर्ट सिस्टम एक शब्द भी उनके बारे में या उनके नेतृत्व वाली कांग्रेस के बारे में नहीं सुनना चाहता है। जैसे ही कोई नेता या राजनीतिक विश्लेषक या पत्रकार कोई समझदारी की बात कांग्रेस को लेकर करता है वैसे ही पूरा सिस्टम उसके ऊपर टूट पड़ता है। उसको भाजपा का आदमी साबित किया जाने लगता है। पी चिदंबरम भी अपवाद नहीं हैं। उन्होंने कांग्रेस और भाजपा का शक्तियों का एक तुलनात्मक विश्लेषण किया और कांग्रेस की कमजोरियों के साथ साथ भाजपा की ताकत के बारे में बताया तो कांग्रेस का पूरा इकोसिस्टम उनके ऊपर टूट पड़ा।
थोड़ा पीछे जाकर अगर बारीकी से देखें तो समझ में आएगा कि एक एक करके कितने लोगों को इस इकोसिस्टम ने अछूत बना दिया या संदिग्ध बना दिया। शशि थरूर ताजा उदाहरण हैं। उनसे पहले आनंद शर्मा, मनीष तिवारी जैसे नेताओं को संदिग्ध बनाया गया और यह झूठा सच्चा दावा किया गया कि वे भाजपा में चले जाएंगे। जनार्दन द्विवेदी को लेकर ऐसी ही धारणा बनाई गई। भूपेंद्र सिंह हुड्डा से लेकर डीके शिवकुमार तक अनेक ऐसे नेता हैं, जिनको कांग्रेस का इकोसिस्टम भाजपा का करीबी बता चुका है।
बिल्कुल यह स्थिति बना दी गई है कि अगर आप आंख मूंद कर राहुल गांधी की तारीफ नहीं करते हैं, उनकी हर सही गलत बात पर वाह वाह नहीं करते हैं, उनके हर कदम को मास्टरस्ट्रोक नहीं बताते हैं तो आपकी निष्ठा संदिग्ध है और आपको भाजपा का आदमी ठहराया जा सकता है। अगर गलती से आपने किसी भी पहलू से भाजपा और उसके मौजूदा नेतृत्व के बारे में अच्छी बात कह दी तो आप स्थायी रूप से अछूत हो जाएंगे। राजनीति में ऐसा छुआछूत शायद कभी भी नहीं रहा है।
सवाल उठाने वालों को भाजपा समर्थक कह देना
राहुल गांधी हमेशा मोहब्बत की बात करते हैं लेकिन इतिहास में ऐसे कम ही नेता हुए होंगे, जो अपने मुख्य प्रतिद्वंद्वी से इतनी नफरत करते होंगे। राहुल के मन में भाजपा और उसके नेतृत्व के प्रति असीम घृणा भरी है। उनकी बातचीत, उनके हावभाव सबसे यह प्रकट होता है। उनके आसपास के लोग यह बात समझ गए हैं। इसलिए वे हमेशा इसी फॉर्मूले पर काम करते हैं कि भाजपा और मोदी-शाह को गालियां देनी हैं और कोई अगर उनकी तारीफ कर दे तो उसको भी गालियां देनी है।
तभी जब पी चिदंबरम ने एक किताब के विमोचन समारोह में भाजपा की ताकत और ‘इंडिया’ ब्लॉक की कमजोरी के बारे में बात की तो राहुल गांधी का पूरा इकोसिस्टम उनके ऊपर टूट पड़ा। उन्होंने सिर्फ इतना कहा था कि ‘इंडिया’ ब्लॉक अभी अस्तित्व में है या नहीं यह पता नहीं है। साथ ही यह भी कहा कि अगर सिर्फ चुनाव के समय तालमेल होगा तो भाजपा से लड़ना बहुत मुश्किल होगा। चिदंबरम ने इसी क्रम में भाजपा की ताकत बताई। उन्होंने कहा कि भाजपा एक मशीन की तरह काम करती है।
वह किसी एक अन्य राजनीतिक दल की तरह नहीं है। उनकी कही इस बात में कुछ भी गलत नहीं है। कोई भी समझदार आदमी साफ देख सकता है कि भाजपा कोई एक और सामान्य राजनीतिक दल नहीं है। पहले से उसको राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ का समर्थन प्राप्त है। कहने की जरुरत नहीं है कि आरएसएस के सैकड़ों अनुषंगी संगठन है और वह बिल्कुल अमेरिका के डीप स्टेट की तरह काम करता है। ऊपर से अब भाजपा का भी संगठन बहुत बड़ा और सक्षम हो गया है।
इसके अलावा सरकार का साथ उसको मिला हुआ है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के नेतृत्व में सरकार और सत्तारूढ़ दल का भेद मिट गया है। उन्हें अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा पूरा करने के लिए सरकार के इस्तेमाल में कतई हिचक नहीं है। लेकिन अगर कोई भाजपा की इस प्रत्यक्ष व परोक्ष ताकत के बारे में बात करता है तो राहुल गांधी का इकोसिस्टम उसके खिलाफ खड़ा हो जाएगा।
यही काम चिदंबरम के साथ हो रहा है। उनकी कही बातों को गंभीरता से लेने की बजाय उनकी साख बिगाड़ने का काम हो रहा है। सोशल मीडिया में वैसे तो अनेक लोगों ने चिदंबरम की निष्ठा पर सवाल उठाया और कहा कि चिदंबरम अपना और अपने बेटे का भविष्य सुरक्षित करने के लिए भाजपा के साथ जा सकते हैं। यहां यह बहस का विषय नहीं है कि वे जा सकते हैं या नहीं जा सकते हैं। कोई भी नेता भाजपा के साथ जा सकता है। भविष्य में क्या होगा यह नहीं कहा जा सकता है।
लेकिन अभी उन्होंने जो बात कही है वह एक अच्छी सलाह है, जिसे कांग्रेस को गंभीरता से लेना चाहिए। उनकी निष्ठा पर सवाल उठाने और उनकी साख बिगाड़ने की बजाय उनकी कही बात पर मनन करना चाहिए और उसके हिसाब से अपनी रणनीति बनानी चाहिए। लेकिन यहां उलटे महमूद प्राचा जैसे लोग हैं, जिन्होंने सोशल मीडिया में चिदंबरम का वीडिया शेयर करते हुए लिखा, ‘कांग्रेस और दूसरी विपक्षी पार्टियों में छिपे स्लीपर सेल को एक्सपोज करने का मेरा काम गति पकड़ रहा है।
अब स्लीपर सेल्स खुद को ही एक्सोपज करने लगे हैं। अगर चिदंबरम का यह वीडियो सही है तो चिदंबरम साहेब को धन्यवाद कहिए’। सोचें, महमूद प्राचा सच्चे और निष्ठावान हैं और चिदंबरम स्लीपर सेल हैं! हालांकि अंग्रेजी के वरिष्ठ पत्रकार विनोद शर्मा ने सोशल मीडिया में ही प्राचा को फटकार लगाई और लिखा, ‘बकवास मत कीजिए प्राचा साहेब, मैं वहां मौजूद था और पूरी बात मैंने सुनी है। उन्होंने कांग्रेस के मुख्य प्रतिद्वंद्वी भाजपा की ताकत के बारे में अपने विचार शेयर किए हैं। आप अपने कानूनी कामकाज पर ध्यान दीजिए’।
सोचें, इससे अच्छी क्या बात हो सकती है कि पार्टी का एक बड़ा नेता अपने मुख्य प्रतिद्वंद्वी की शक्तियों को पहचान रहा है और साथ ही अपनी कमजोरियों के बारे में भी बता रहा है? कांग्रेस को इसके हिसाब से अपनी रणनीति बनानी चाहिए। लोकसभा चुनाव के बाद ‘इंडिया’ ब्लॉक पूरी तरह से निष्क्रिय हो गया है। दिल्ली और हरियाणा के विधानसभा चुनाव में ‘इंडिया’ ब्लॉक की पार्टियां एक दूसरे के खिलाफ लड़ रही थीं। एनडीए को अपनी एकजुटता बनाने के लिए अलग से कुछ नहीं करना है क्योंकि उसकी सरकार है और उसके सभी घटक दलों को सरकार में प्रतिनिधित्व मिला हुआ है।
उनके हित जुड़े हुए हैं इसलिए वे एकजुट हैं। लेकिन ‘इंडिया’ ब्लॉक में ऐसा नहीं है। ‘इंडिया’ ब्लॉक को एकजुट रखने के लिए कांग्रेस को प्रयास करना होगा। लेकिन अभी इसका उलटा हो रहा है। ‘इंडिया’ ब्लॉक की पार्टियां एकजुट होकर राजनीति नहीं कर रही हैं। बिहार में जहां विधानसभा चुनाव है वहां भी कांग्रेस अकेले अपनी राजनीति कर रही है और राजद को दबाने में लगी है।
पश्चिम बंगाल और असम में अगले साल चुनाव हैं, वहां ‘इंडिया’ ब्लॉक लड़ेगा या पार्टियां अलग अलग लड़ेंगी इसका फैसला अभी हो जाना चाहिए। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हो रहा है। उलटे सोशल मीडिया के बेहद अविश्वसनीय और मौकपरस्त लोग कांग्रेस के कथित स्लीपर सेल्स की तलाश करके राहुल गांधी को खुश करने में लगे हैं।
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