जम्मू कश्मीर के पहलगाम की बैसरन घाटी में मंगलवार, 22 अप्रैल को हुए नरसंहार के बाद भारत की पहली आधिकारिक प्रतिक्रिया बुधवार, 23 अप्रैल की देर शाम को आई, जब सुरक्षा मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति यानी सीसीएस की बैठक में पांच बड़े फैसले किए गए। यह एक त्वरित और कूटनीतिक प्रतिक्रिया है, जिस पर नागरिकों के एक बड़े समूह को निराशा हुई है। उनका कहना है कि पहलगाम जैसी बड़ी घटना के बाद भारत की प्रतिक्रिया इतनी मुलायम नहीं होनी चाहिए, बल्कि भारत को तत्काल पाकिस्तान को सबक सिखाना चाहिए। लोग सैन्य कार्रवाई की मांग कर रहे हैं।
सोशल मीडिया ‘देशभक्तों’ की खून खौलाने वाली बातों से भरा है। खून के बदले खून की मांग की जा रही है। जाहिर है ऐसी घटनाओं के बाद आम लोगों की प्रतिक्रिया ऐसी ही होती है और सरकारें बड़े सामरिक फैसले आम लोगों की प्रतिक्रिया के हिसाब से नहीं करती हैं। फिर भी यह सवाल तो है ही कि पहलगाम के बाद क्या रास्ता है?
क्या भारत सरकार पहलगाम की घटना को आगे के बड़े खतरे का संकेत समझ कर ऐसी कार्रवाई करगी, जो इससे पहले नहीं हुई हो या सरकार की प्रतिक्रिया वैसी ही होगी, जैसी उरी के बाद हुई, बालाकोट के बाद हुई या पुलवामा के बाद हुई? कह सकते हैं कि भारत ने एयर स्ट्राइक या सर्जिकल स्ट्राइक की। लेकिन उससे हासिल क्या हुआ? क्या आतंकवाद का नेटवर्क ध्वस्त हो गया? क्या सीमा पार के सारे आतंकवादी लॉन्च पैड नष्ट हो गए? क्या आतंकवादी संगठनों के सरगना मारे गए? ऐसा कुछ नहीं हुआ।
उलटे नए आतंकवादी संगठन बने, जो पहले से ज्यादा खूंखार हैं और जिनको कश्मीर के स्थानीय नागरिकों का भी ख्याल नहीं है। असल में भारत की ओर से जो प्रतिक्रिया दी गई वह तात्कालिक थी, जिसका मकसद लोगों की भावनाओं का उबाल ठंडा करना था। किसी दीर्घकालीन योजना के तहत कार्रवाई नहीं हुई। तभी ऐसी कार्रवाइयों से आंशिक सफलता हासिल हुई।
यह अलग बात है कि सरकार लगातार यह नैरेटिव बनाने का प्रयास करती रही है कि नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद देश में आतंकवादी हमले नहीं हो रहे हैं। यह भी कहा जा रहा है कि अनुच्छेद 370 हटने के बाद जम्मू कश्मीर में शांति बहाल हो गई है। लेकिन यह अधूरा सच है। अनुच्छेद 370 हटने के बाद राज्य में शांति की धारणा बनी है लेकिन पूरी तरह से शांति बहाल नहीं हुई है। पि
छले पांच साल की बात छोड़ दें और पिछले साल जून में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के तीसरी बार शपथ लेने के बाद की बात करें तो नौ जून 2024 से लेकर 22 अप्रैल 2025 तक आतंकवादियों ने जम्मू कश्मीर में 60 से ज्यादा लोगों की हत्या की है, जिसमें कम से कम 33 जवान हैं, जो अलग अलग सुरक्षा बलों से जुड़े हुए थे। 22 अप्रैल को पहलगाम में मारे गए 27 लोगों की संख्या जोड़ें तो पिछले 10 महीने में आतंकवादियों ने करीब 90 लोगों की हत्या की है। तभी धारणा बनाने की बजाय दीर्घकालीन सोच के साथ स्थायी शांति बहाली की योजना पर काम होना चाहिए।
उरी हमले के बाद 2016 में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि खून और पानी एक साथ नहीं बह सकता है तभी अगर भारत ने सिंधु जल संधि रद्द की होती और अगले आठ साल में नदियों का पानी रोकने का ढांचा तैयार किया होता तो पाकिस्तान को अब तक सबक मिल गया होता। लेकिन बुधवार, 23 अप्रैल को हुए फैसले का सबक मिलने में समय लगेगा। इसके लिए भी भारत को तत्काल पहल करनी होगी और सिंधु घाटी की नदियों के जल संरक्षण का अपना ढांचा बनाना होगा ताकि पानी पाकिस्तान जाने से रोका जा सके। अगर भारत पानी रोक देता है तो पाकिस्तान के बड़े हिस्से में कृषि कार्य ठप्प होंगे और पानी की बड़ी किल्लत पैदा होगी, जिससे उसकी आर्थिक स्थिति पर भी बुरा असर पड़ेगा।
इसके अलावा भारत ने चार और फैसले किए हैं। पहला, अटारी वाघा बॉर्डर को तत्काल प्रभाव से बंद कर दिया गया है और वैध वीजा पर भारत आए पाकिस्तानी नागरिकों को एक मई तक वापस लौट जाने को कहा गया है। इसके बाद किसी को वीजा नहीं मिलेगा। दूसरा, सार्क वीजा छूट योजना यानी एसवीईएस की सुविधा बंद कर दी गई है और इस वीजा पर भारत आए लोगों को 48 घंटे में देश छोड़ने के लिए कहा गया है।
तीसरा, नई दिल्ली स्थित पाकिस्तानी उच्चायोग में तैनात रक्षा और सैन्य सलाहकारों को ‘पर्सोना नॉन ग्राटा’ यानी अवांछित व्यक्ति घोषित किया गया है और एक सप्ताह में भारत छोड़ने को कहा गया है। चौथा, उच्चायोग के कर्मचारियों की संख्या 55 से घटा कर 30 करने को कहा गया है। भारत भी इस्लामाबाद स्थित अपने उच्चायोग से कर्मचारी घटाएगा यानी कूटनीतिक संबंधों को और सीमित किया जाएगा।
सिंधु जल संधि रद्द करने के अलावा बाकी चार जो फैसले हुए हैं वो रूटीन के हैं। आमतौर पर देशों के बीच किसी तरह का विवाद होने पर इस तरह के फैसले किए जाते हैं। ध्यान रहे कुछ समय पहले ही भारत और कनाडा के बीच विवाद हुआ तो दोनों देशों ने ऐसे फैसले किए थे। दोनों देशों ने उच्चायोग में कर्मचारियों की संख्या घटाई थी और वीजा में कटौती का ऐलान किया था। सो, पाकिस्तान के मामले में किए गए इन फैसलों से कोई बड़ा असर नहीं पड़ने वाला है।
वैसे भी पाकिस्तान से भारत का दोपक्षीय व्यापार बंद है। अनुच्छेद 370 हटने के बाद से ही दोपक्षीय व्यापार बंद है और किसी तीसरे देश के जरिए दोनों के बीच थोड़े बहुत सामानों का कारोबार होता है। जहां तक पाकिस्तानी नागरिकों के भारत आने का सवाल है तो वह भी काफी कम हो गया है। एक रिपोर्ट के मुताबिक कुल 15 या 16 हजार लोग पिछले साल भारत आए हैं। इनमें भी ज्यादातर ऐसे हैं, जिनके रिश्तेदार भारत में रहते हैं।
इसके बावजूद भारत सरकार की ओर से किए गए पांच फैसलों को एक शुरुआत मान सकते हैं। यह पहला कदम है और उम्मीद की जा सकती है कि इसके बाद भारत सरकार बड़ा फैसला और बड़ी कार्रवाई करेगी। भारत में पिछले कुछ समय से यह नैरेटिव बनाया जा रहा है कि कुछ बड़ा होने वाला है। हालांकि किसी को अंदाजा नहीं है कि क्या बड़ा होने वाला है।
अब कहा जा रहा है कि पहलगाम घटना ने भारत सरकार को मौका दिया है कि वह पाकिस्तान को सबक सिखाए और उसकी सीमा में स्थित आतंकवाद के नेटवर्क को पूरी तरह से ध्वस्त करे। यह भी कहा जा रहा है कि पाक अधिकृत कश्मीर को वापस हासिल करने का यह सबसे बेहतर समय है। परंतु ऐसे कामों के लिए क्या बेहतर समय और अवसर होगा यह तय करना सैन्य रणनीतिकारों का काम है और उस पर अमल करना सरकार का काम है।
लेकिन इतना जरुर कहा जा सकता है कि बड़ी सैन्य कार्रवाई के साथ जम्मू कश्मीर के लोगों को भरोसे में लेने की जरुरत है और साथ ही स्थानीय स्तर पर सुरक्षा और खुफिया नेटवर्क को मजबूत करने की जरुरत है ताकि ऐसी घटनाओं का दोहराव रोका जा सके।
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