ट्रंप ने अपने जुबानी तीर से कनाडा की संप्रभुता पर जिस तरह निशाने साधे, वही कनाडा के आम चुनाव में निर्णायक मुद्दा साबित हुआ। वरना, ट्रुडो की सरकार इतनी अलोकप्रिय कि लिबरल पार्टी का सत्ता में लौटना नामुमकिन लगने लगा था।
ये वाजिब सवाल होगा कि कनाडा के चुनाव नतीजों को अमेरिकी राष्ट्रपति के खिलाफ जनादेश कैसे कहा जा सकता है। लेकिन हकीकत यही है कि डॉनल्ड ट्रंप ने अपने जुबानी तीर से कनाडा की संप्रभुता पर जिस तरह निशाने साधे, वही कनाडा के आम चुनाव में निर्णायक मुद्दा साबित हुआ। वरना, पूर्व प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रुडो की सरकार इतनी अलोकप्रिय हो गई थी कि लिबरल पार्टी का सत्ता में लौटना नामुमकिन लगने लगा था। दरअसल, ट्रुडो को नेतृत्व छोड़ना ही इसलिए पड़ा, क्योंकि पार्टी अपने को सियासी संकट में पा रही थी। मगर ट्रंप के ह्वाइट हाउस में प्रवेश के साथ कनाडा की राजनीति ने करवट लेना शुरू किया।
पिछले साल के आखिर तक अगले प्रधानमंत्री के रूप में देखे जा रहे कंजरवेटिव पार्टी के नेता पियरे पॉलिवर ने अपनी छवि कनाडा के ट्रंप के रूप बना रखी थी। ट्रंप जैसी नीतियों के जरिए कनाडा के आर्थिक संकट को दूर करने का उनका वादा काम करता दिख रहा था। लेकिन जब असली ट्रंप का आक्रामक रूप दुनिया के सामने आया, जिसकी चपेट में कनाडा भी आ गया, तो वहां के लोगों में विपरीत प्रतिक्रिया होना लाजिमी ही था। पॉलिवर ने नए माहौल में ट्रंप विरोधी तेवर अपनाए, कनाडा की संप्रभुता की रक्षा के लिए अपनी प्रतिबद्धता जताई, लेकिन तब तक माहौल बदल चुका था।
अब साफ है कि मतदाताओं ने ट्रंप के हमलों से कनाडा की रक्षा करने के लिहाज से लिबरल पार्टी के नए नेता मार्क कार्नी को अधिक सक्षम माना है। कार्नी ने अमेरिकी बैंक गोल्डमैन शैक्स से करियर शुरू किया और बैंक ऑफ कनाडा तथा बैंक ऑफ इंग्लैंड के गर्वनर रह चुके हैं। नव-उदारवाद और मुक्त व्यापार के पैरोकार हैं। राजनीति में आने के बाद से आर्थिक नीतियों में नैतिक मूल्यों को भी स्थान देने की वकालत उन्होंने की है। बहरहाल, उनके सामने चुनौतियां बेहद गंभीर हैं। एक तो ट्रुडो शासनकाल में पैदा हुई समस्याएं हैं और ऊपर से ट्रंप की नीतियों से पेश आईं चुनौतियां हैं। फिलहाल, कनाडा में बना ट्रंप विरोधी राष्ट्रवाद उनकी ताकत बना है, मगर अंततः लोग उनका आकलन समस्याओं के समाधान की कसौटी पर ही करेंगे।