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30-06-2025 Vol 19

उफ! अधूरे अभियान की महानता का बखान

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राज सत्ता की स्थापना में गाथाओं या आख्यानों का बड़ा महत्व है। प्राचीन काल में राजा अपनी महानता स्थापित करने के लिए अनेक प्रकार के यज्ञ कराते थे। उसके बाद ब्राह्मण उसके इर्द-गिर्द आख्यान गढ़ते थे, जिनमें बताया जाता था कि कैसे अमुक राजा को अमुक देवी का या अमुक देवता का आशीर्वाद प्राप्त हुआ। ध्यान रहे लोगों को बलपूर्वक थोड़े समय के लिए वश में किया जा सकता है लेकिन अगर उनको राजा की अलौकिक शक्तियों में भरोसा होगा तो वे स्वतः उसके सामने झुकेंगे और उसकी सत्ता को स्वीकार करेंगे।

अगर यह धारणा बने कि किसी राजा को देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त है तो उसके सामने दूसरी सत्ताएं भी झुकती हैं। राजा को देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त होने का आख्यान पहले ब्राह्मण गढ़ते थे और बाद में साम्राज्य संरक्षित इतिहासकार गढ़ने लगे।

किसी राजा को या किसी साम्राज्य को महान बनाने में आख्यानों के महत्व पर इस टिप्पणी का उद्देश्य इस तथ्य की ओर ध्यान खींचना है कि आज भी मीडिया और सोशल मीडिया के जरिए ऐसे आख्यान गढ़े जाते हैं और ऐसी किंवदंतियां बनाई जाती हैं, जिनसे राजा की वीरता और महानता स्थापित होती है और राजा को उसका राजनीतिक लाभ मिलता है। हालांकि अब यह अंतर आ गया है कि राजा खुद भी आख्यान गढ़ने लगे हैं। आतंकवाद और पाकिस्तान के खिलाफ चार दिन यानी 96 घंटे तक चले ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के आसपास जो आख्यान गढ़ा जा रहा है वह एक मिसाल है।

हालांकि सेना के पूर्व अधिकारी और सामरिक मामलों के जानकार बता रहे हैं कि यह अभियान अधूरा रहा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इस बात को समझ रहे हैं तभी उन्होंने कहा कि अभी सिर्फ युद्धविराम हुआ है और अगर पाकिस्तान ने फिर दुस्साहस किया तो उसका कड़ा जवाब दिया जाएगा। उनके कहने का आशय यह है कि अस्थायी तौर पर युद्ध रोका गया है। लेकिन क्या कूटनीति और कानून की भाषा में सीजफायर का अर्थ अस्थायी तौर पर युद्ध रोकना ही नहीं होता है!

बहरहाल, इस अधूरे अभियान की महानता का आख्यान गढ़ने के लिए वैसी ही शब्दावली का इस्तेमाल किया जा रहा है, जैसा रीतिकालीन साहित्य में कवि करते थे या राजाओं के दरबारी उनकी वीरता का बखान करने के लिए करते हैं। जैसे खुद प्रधानमंत्री मोदी ने मंगलवार, 13 मई को आदमपुर एयरबेस पर कहा, ‘भारत में निर्दोष लोगों का खून बहाने का एक ही अंजाम होगा, विनाश और महाविनाश’। सोचें, ‘विनाश’ और ‘महाविनाश’ शब्दों पर! किन हालात में इन शब्दों का इस्तेमाल किया जाता है? क्या 96 घंटे के सैन्य अभियान में भारत ने पाकिस्तान में ‘विनाश’ या ‘महाविनाश’ कर दिया?

सैन्य अभियान की रणनीति और असर

सैन्य कार्रवाई में पाकिस्तान को हुए नुकसान को भारी भरकम शब्दों में इसलिए बताया जा रहा है ताकि जनता यकीन करे कि बहुत बड़ी कार्रवाई हुई है। यह बिल्कुल वैसा ही है, जैसे मध्यकाल के राजाओं के कई किलो की तलवार और कई किलो के जिरह बख्तर का आख्यान गढ़ा जाता था। अधूरे अभियान की महान कामयाबी पर लोगों को यकीन दिलाने के लिए देश भर में ‘तिरंगा यात्रा’ निकाली जा रही है।

यह आख्यान कई स्तरों पर गढ़ा जा रहा है। कहीं इसकी तुलना हनुमानजी के अशोक वाटिका उजाड़ने और लंका में आग लगाने से की जा रही है तो कहीं श्रीकृष्ण के ‘याचना नहीं अब रण होगा’ के हुंकार से की जा रही है तो कहीं भगवान श्रीराम के ‘भय बिनु होई न प्रीत’ की उद्घोषणा से की जा रही है। मीडिया और सोशल मीडिया में कितने तरह की किंवदंती गढ़ी जा रही है वह बताने की जरुरत नहीं है।

वास्तविकता यह है कि भारत का सैन्य अभियान इतना अधूरा छूटा कि पाकिस्तान भी अपनी जीत का दावा कर रहा है, जुलूस निकाल रहा है और जश्न मना रहा है। अगर भारत ने अचानक युद्धविराम नहीं किया होता तो शायद ऐसा नहीं होता। ध्यान रहे युद्धविराम अगर साझा सहमति से होता है तो इसका अर्थ हमेशा यह होता है कि लड़ाई बराबरी पर छूटी है।

तभी लगभग सभी सामरिक विशेषज्ञ इस बात पर सहमत हैं कि चाहे अमेरिका का दबाव होता या नहीं होता, पाकिस्तान की गुहार होती या नहीं होती, भारत को शनिवार, 10 मई को सीजफायर नहीं करना चाहिए था। अगर तत्काल सीजफायर की अमेरिका की अपील और पाकिस्तान की गुहार ठुकरा कर भारत कम से कम दो दिन और अभियान चलाता और उसके बाद अपनी तरफ से सीजफायर की घोषणा करता तो उसका अलग महत्व होता। लेकिन भारत ने वह मौका गंवा दिया।

भारतीय सेना का इस बार का अभियान बहुत सावधानीपूर्वक तैयार किया गया था और बड़े सटीक तरीके से उसे अंजाम दिया गया था। पहले दिन नौ ठिकानों पर लक्षित हमला किया गया था और उन्हें लगभग नष्ट कर दिया गया था। उसके बाद भारत ने पाकिस्तान के डिफेंस एयर सिस्टम को नाकाम करने वाले हमले किए थे। इससे यह भ्रम टूटा था कि पाकिस्तान के पास परमाणु बम है तो उस वजह से उसको असीमित सुरक्षा मिली हुई है और भारत उसकी हर कार्रवाई को बरदाश्त करेगा।

भारत ने पाकिस्तान की परमाणु क्षमता की अनदेखी करके उसकी सीमा में जो हमले किए थे उससे एक बहुत मजबूत संदेश पाकिस्तान को मिला था कि उसके छद्म युद्ध को भारत ज्यादा समय बरदाश्त नहीं करेगा। यह एक बड़ी मनोवैज्ञानिक जीत थी, जिसे भारत ने सीजफायर में गंवा दिया। अब प्रधानमंत्री कह रहे हैं कि भारत परमाणु बम से ब्लैकमेल नहीं होगा। लेकिन अब यह सिर्फ कहने की बात रह गई है। क्योंकि सीजफायर से यह धारणा भी मजबूत हुई है कि पाकिस्तान का परमाणु शक्ति से संपन्न होना सीजफायर का कारण बना।

गौरतलब है कि भारत की ओर से भी सूत्रों के हवाले से यह खबर चलवाई गई कि अमेरिका के उप राष्ट्रपति जेडी वेंस ने प्रधानमंत्री मोदी को फोन पर कहा कि उन्हें बहुत विश्वसनीय सूचना मिली है कि युद्ध नाटकीय तरीके से बहुत बढ़ सकता है। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भी कहा कि परमाणु युद्ध रोका है वरना हजारों लोग मर जाते। इससे यह धारणा बनी कि पाकिस्तान परमाणु हमले की तैयारी कर रहा था और उससे अमेरिका सक्रिय हुआ और उसने युद्धविराम कराया।

अगर भारत तत्काल युद्धविराम की बजाय पाकिस्तान के और आतंकवादी ठिकानों को नष्ट करता, कुछ आतंकी सरगनाओं को मार गिराता, पाकिस्तान की सैन्य क्षमता को कमजोर करता, उसके एयर डिफेंस सिस्टम को नाकाम करता और तब एकतरफा युद्धविराम की घोषणा करता तो पाकिस्तान के अंदर और दुनिया के देशों के बीच पाकिस्तान की कमजोरी और भारत की श्रेष्ठता स्थापित होती। ध्यान रहे अगर पाकिस्तानी सेना के कमजोर होने और नाकाम होने का मैसेज बनता तो पाकिस्तानी नागरिकों में भी सेना को लेकर नाराजगी बढ़ती।

लेकिन अचानक युद्ध रूकने से पाकिस्तानी सेना की जय जयकार हो गई है। उसके सेना प्रमुख जनरल आसिम मुनीर पाकिस्तानी आवाम के नायक बन गए हैं। पाकिस्तान बनने के बाद पहली बार ऐसा हुआ, जब भारत से लड़ने के बाद पाकिस्तान में जश्न मनाया गया। तय मानें कि जल्दी ही फिर पाकिस्तानी सेना, खुफिया एजेंसी और आतंकवादी संगठन अपनी ताकत संचित करेंगे और भारत के खिलाफ वैसा ही छद्म युद्ध शुरू हो जाएगा, जैसा दशकों से चल रहा है। इस वास्तविकता पर परदा डालने के लिए ही अनेक अनेक आख्यान गढ़े जा रहे हैं।

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Pic Credit: ANI

अजीत द्विवेदी

संवाददाता/स्तंभकार/ वरिष्ठ संपादक जनसत्ता’ में प्रशिक्षु पत्रकार से पत्रकारिता शुरू करके अजीत द्विवेदी भास्कर, हिंदी चैनल ‘इंडिया न्यूज’ में सहायक संपादक और टीवी चैनल को लॉंच करने वाली टीम में अंहम दायित्व संभाले। संपादक हरिशंकर व्यास के संसर्ग में पत्रकारिता में उनके हर प्रयोग में शामिल और साक्षी। हिंदी की पहली कंप्यूटर पत्रिका ‘कंप्यूटर संचार सूचना’, टीवी के पहले आर्थिक कार्यक्रम ‘कारोबारनामा’, हिंदी के बहुभाषी पोर्टल ‘नेटजाल डॉटकॉम’, ईटीवी के ‘सेंट्रल हॉल’ और फिर लगातार ‘नया इंडिया’ नियमित राजनैतिक कॉलम और रिपोर्टिंग-लेखन व संपादन की बहुआयामी भूमिका।

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