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राहुल का बोलना देशप्रेम था, देशचिंता थी!

सेना के खिलाफ दिए गए कथित मानहानिकारक बयान पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियों के बाद कांग्रेस नेता राहुल गांधी भाजपा के निशाने पर हैं। साथ ही सोशल मीडिया में भाजपा के इकोसिस्टम के भी निशाने पर हैं। वैसे यह कोई नई बात नहीं है। राहुल गांधी इस किस्म की ट्रोलिंग बरसों से झेल रहे हैं। फिर भी सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियों के आलोक में सवाल है कि राहुल गांधी के सच्चा भारतीय नागरिक होने पर सवाल क्यों है?

उन्होंने ऐसा क्या कह दिया, जिसके लिए उनको इतनी ट्रोलिंग झेलनी पड़ रही है? असल में उनको अपने कहे के कारण नहीं, बल्कि सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी के कारण ट्रोलिंग झेलनी पड़ रही है। हालांकि कहा जा सकता है कि टिप्पणियों का क्या है सुप्रीम कोर्ट ने उनको राहत तो दे ही दी! ध्यान रहे अदालत ने लखनऊ की कोर्ट में चल रहे मुकदमे पर फिलहाल रोक लगा दी है।

फिर भी राहुल गांधी कठघरे में हैं, यह कहने के लिए चीन ने भारत की दो हजार वर्ग किलोमीटर जमीन हड़प ली है। उन्होंने भारतीय सेना को लेकर कुछ और टिप्पणियां कीं, जिनका एक हिस्सा निश्चित रूप से आपत्तिजनक है। लेकिन यह भी कोई ऐसी बात नहीं है, जिसके लिए उनकी नागरिकता या उनके देशप्रेम पर सवाल उठाया जाए। सबसे पहले तो यह समझने की जरुरत है कि नेता प्रतिपक्ष का यह कहना कि चीन ने भारत की दो हजार वर्ग  किलोमीटर जमीन हड़प ली है, सेना का अपमान करना नहीं है। अगर ऐसा है तब तो भाजपा के नेता दशकों से यानी 1962 की लड़ाई के बाद से ही सेना का अपमान कर रहे हैं क्योंकि वे तभी से कह रहे हैं कि चीन ने भारत की जमीन कब्जा कर ली है।

यह सही भी है कि चीन ने उस समय भारत को हरा कर भारत की जमीन पर कब्जा किया। लेकिन यह कहना सेना का अपमान करना कैसे हो गया? अगर भाजपा दशकों से जो कह रही है उससे सेना का अपमान नहीं होता है तो निश्चित रूप से राहुल के कहने से भी सेना का अपमान नहीं हुआ है। भाजपा का निशाना सेना नहीं उस समय के प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू हैं और राहुल गांधी का निशाना मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं। यह सवाल राजनीतिक नेतृत्व के ऊपर है, सेना के ऊपर नहीं।

अदालत ने कुछ और बातें कहीं, जिनको लेकर भाजपा की ओर से राहुल गांधी पर हमले हो रहे हैं। जैसे अदालत ने पूछा कि राहुल गांधी को कैसे पता चला कि चीन ने दो हजार वर्ग किलोमीटर जमीन हड़प ली है? क्या वे वहां मौजूद थे? अब सवाल है कि लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष क्या सिर्फ वही मुद्दा उठा सकते हैं, जिसे उन्होंने खुद देखा हो या जिस घटना के समय खुद वहां मौजूद रहे हों? यह सवाल राहुल के वकील अभिषेक सिंघवी ने उठाया। उन्होंने कहा कि मीडिया में खबरों के आधार पर नेता प्रतिपक्ष सवाल उठा सकते हैं। मीडिया की खबरों के आधार पर ही आमतौर पर विपक्ष के नेता सवाल उठाते हैं।

जून 2020 में गलवान घाटी में हुई झड़प के बाद मीडिया के बड़े हिस्से में ऐसी खबरें आईं कि चीन ने भारत की जमीन पर कब्जा किया है। भारत की सेना गश्त की पुरानी जगह से पीछे हटी है और गश्त का जो इलाका होता था वह बफर जोन बन गया है। सेटेलाइट तस्वीरों के जरिए भी बताया गया कि चीन ने कहां तक सैनिक ठिकाने बनाए हैं। देश के प्रतिष्ठित सामरिक विशेषज्ञों ने चीन के भारतीय सीमा में घुसने की बात कही थी। आज भी सुब्रह्मण्यम स्वामी  जैसे भाजपा नेता और सामरिक व रक्षा विशेषज्ञ कहते हैं कि चीन ने भारत की जमीन कब्जा की।

अरुणाचल प्रदेश के भाजपा के सांसद तापिर गावो ने भारतीय सीमा में चीन के ठिकाना बनाने की बात संसद में कही। उधर लद्दाख के सामाजिक  कार्यकर्ता सोनम वांगचुक लगातार कह रहे हैं कि चीन भारतीय सीमा में घुसपैठ कर रहा है। लेकिन कोई भी इसके लिए भारतीय सेना को जिम्मेदार नहीं ठहरा रहा है। इसके लिए राजनीतिक नेतृत्व को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। इसलिए यह भी कोई ऐसा मामला नहीं है, जिसकी वजह से राहुल गांधी की देशभक्ति या उनकी सच्ची नागरिकता को कठघरे में खड़ा किया जाए।

एक और हैरान करने वाली बात यह है कि अदालत ने कहा कि राहुल गांधी लोकसभा में  नेता प्रतपिक्ष हैं तो उनको यह बात सदन में उठानी चाहिए, सोशल मीडिया में नहीं। इसमें पहला सवाल तो यही है कि जो सवाल संसद में उठाया जा सकता है वह संसद के बाहर क्यों नहीं उठा सकते हैं? क्या संसद की कार्यवाही गोपनीय होती है? संसद की कार्यवाही का भी सीधा प्रसारण होता है, जिसे पूरा देश देखता है। अगर संसद के बाहर कही गई कोई बात देश के लिए ठीक नहीं है या सेना के लिए अपमानजनक है तो वह बात संसद के अंदर कही जाएगी तो उसका अर्थ कैसे बदल जाएगा? वह तो तब भी सेना के लिए अपमानजनक ही रहेगी!

हां, यह होगा कि संसद के अंदर कही गई बात के लिए अदालत में मुकदमा नहीं चल सकेगा। तो क्या भाजपा के नेता चाहते हैं कि राहुल गांधी ऐसी बातें संसद के अंदर ही कहें? दूसरा सवाल यह है कि क्या भारत की संसद 365 दिन चलती रहती है, जो हर घटना के बाद नेता प्रतिपक्ष संसद में पहुंचेंगे और अपनी बात कहेंगे? सोचें, 22 अप्रैल को पहलगाम में आतंकवादी हमला हुआ तो विपक्ष ने कहा कि सरकार विशेष सत्र बुलाए। सरकार ने सत्र नहीं आहूत किया। फिर छह और सात मई को ऑपरेशन सिंदूर शुरू हुआ और 10 मई को सीजफायर हुआ। तब विपक्ष ने कहा कि विशेष सत्र बुलाएं। लेकिन सरकार ने उस पर ध्यान नहीं दिया। पहलगाम कांड के तीन महीने के बाद मानसून सत्र शुरू हुआ। तो क्या नेता प्रतिपक्ष को पहलगाम कांड और ऑपरेशन सिंदूर पर अपनी बात कहने के लिए तीन महीने इंतजार करना चाहिए?

नेता प्रतिपक्ष को हर घटना पर तत्काल प्रतिक्रिया देने की जरुरत होती है क्योंकि देश की जनता ने इसके लिए उनको चुना है। देश की जनता जैसे सरकार चुनती है वैसे ही विपक्ष भी चुनती है। सो, चुना हुआ विपक्ष मुंह सिल कर नहीं बैठा रह सकता है। दूसरे, उसे किसी भी मसले पर बोलने के लिए उस विषय का विशेषज्ञ होने की जरुरत नहीं होती है। आज राहुल गांधी अगर अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की ओर से दिए जा रहे बयान और उनके लगाए जा रहे टैरिफ का मुद्दा उठा रहे हैं तो इसके लिए उनको कूटनीति और आर्थिक नीति का विशेषज्ञ होने की जरुरत नहीं है और न ट्रंप की प्रेस कॉन्फ्रेंस में मौजूद रह कर उनकी बातें सुनने की जरुरत है।

मीडिया में जो खबरें आ रही हैं उनके आधार पर नेता प्रतिपक्ष बयान दे सकते हैं और सवाल पूछ सकते हैं। तीसरी बात यह है कि यह कहना कि किसी देश ने हमारी सीमा का अतिक्रमण किया है या हमारी जमीन कब्जा कर ली है या हमारी सीमा में घुसपैठ कर रहा है, सेना का अपमान करना नहीं है। सेना के लिए देश के हर नागरिक के मन में सर्वोच्च सम्मान का भाव है। लेकिन आज बांग्लादेश की ओर से घुसपैठ हो रही है, नेपाल जैसा देश हमारी सैकड़ों एकड़ जमीन पर दावा कर रहा है, चीन अरुणाचल प्रदेश में हमारी जमीन पर दावा कर रहा है और पूर्वी लद्दाख में हमारी जमीन कब्जा कर रहा है, यह बात कहने से सेना का अपमान नहीं होता है।

By अजीत द्विवेदी

संवाददाता/स्तंभकार/ वरिष्ठ संपादक जनसत्ता’ में प्रशिक्षु पत्रकार से पत्रकारिता शुरू करके अजीत द्विवेदी भास्कर, हिंदी चैनल ‘इंडिया न्यूज’ में सहायक संपादक और टीवी चैनल को लॉंच करने वाली टीम में अंहम दायित्व संभाले। संपादक हरिशंकर व्यास के संसर्ग में पत्रकारिता में उनके हर प्रयोग में शामिल और साक्षी। हिंदी की पहली कंप्यूटर पत्रिका ‘कंप्यूटर संचार सूचना’, टीवी के पहले आर्थिक कार्यक्रम ‘कारोबारनामा’, हिंदी के बहुभाषी पोर्टल ‘नेटजाल डॉटकॉम’, ईटीवी के ‘सेंट्रल हॉल’ और फिर लगातार ‘नया इंडिया’ नियमित राजनैतिक कॉलम और रिपोर्टिंग-लेखन व संपादन की बहुआयामी भूमिका।

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