नीतीश कुमार सरकार विकास एवं रोजगार सृजन के मोर्चे पर नाकाम रही है। तो बासी भात में ही खुदा का साझा निकालना ही उसकी मजबूरी है। मगर विपक्ष भी बिहार के विकास का कोई विश्वसनीय एजेंडा पेश करने में नाकाम है।
बिहार सरकार ने शिक्षक नियुक्ति में डोमिसाइल पॉलिसी पर अमल का एलान किया है। राज्य के शिक्षा मंत्रालय के मुताबिक एक लाख 10 हजार शिक्षकों की नियुक्ति प्रक्रिया शुरू की जा रही है, जिसमें से 85 फीसदी पद बिहार के मूलवासियों के लिए आरक्षित रहेंगे। पिछले महीने राज्य सरकार ने सरकारी नौकरियों में महिलाओं के लिए आरक्षित पदों में से 35 प्रतिशत सीटें बिहार की महिलाओं के लिए आरक्षित कर दिया था। ताजा एलान से एक दिन पहले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने राज्य के शिक्षा मंत्रालय को निर्देश दिया कि शिक्षक भर्ती में बिहारियों को तरजीह देने के लिए वह नियम में बदलाव करे। अगले विधानसभा चुनाव के मद्देनजर शिक्षा मंत्रालय ने तुरंत उस पर अमल की घोषणा कर दी है।
वैसे नीतीश सरकार ने 2020 के विधानसभा चुनाव के समय ही ये नीति लाने का एलान किया था। मगर बाद में वह इससे पलट गई। अब चूंकि विपक्षी राष्ट्रीय जनता दल ने सत्ता में आने पर डोमिसाइल नीति का लागू करने का वादा किया है, तो नीतीश कुमार सरकार एक बार फिर पलट गई है। मगर चाहे सत्ता पक्ष हो या विपक्ष, मुद्दा यह है कि क्या यह राज्य की समस्याओं का समाधान है? संसद के जारी सत्र में ही केंद्र ने राज्यवार प्रति व्यक्ति आय का पेश किया, तो उसमें बिहार सबसे नीचे नजर आया। 2011-12 के बाद तो वहां प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि की दर पहले से भी धीमी हो गई है।
उसके बाद के 12 साल में यह महज 3.3 प्रतिशत रही। अविभाजित बिहार में प्रति व्यक्ति आय राष्ट्रीय औसत के 70 फीसदी के बराबर थी, जो झारखंड के अलग होने के बाद 31 प्रतिशत रह गई। तब से स्थिति में कोई उल्लेखनीय सुधार नहीं हुआ है। लगभग इस पूरे दौर में नीतीश कुमार के हाथ में ही राज्य की कमान रही है। निष्कर्ष यह कि विकास एवं रोजगार सृजन के मोर्चे पर वे नाकाम रहे। तो बासी भात में ही खुदा का साझा निकालना ही उनकी मजबूरी है। दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि विपक्ष भी बिहार के विकास का कोई विश्वसनीय एजेंडा पेश करने में नाकाम रहा है।