राहुल गांधी पर भाजपा के हमले की थीम बदल गई है। अब उनको शातिर, साजिशी और देश विरोधी बताने का अभियान चल रहा है। ध्यान रहे नरेंद्र मोदी और अमित शाह के भाजपा की कमान संभालने के बाद राहुल गांधी के खिलाफ जो व्यापक प्रचार अभियान चला उसकी थीम उनको पप्पू साबित करने की थी। भाजपा का हर नेता उनके लिए यही जुमला बोलता था। उनको नासमझ बताया जाता है। उनकी बुद्धि का मजाक उड़ाया जाता था। उनको जबरदस्ती राजनीति में उतारा गया नेता बताया जाता था। कांग्रेस छोड़ कर भाजपा में शामिल होने वाले हर नेता से राहुल गांधी के बारे में इस तरह के बयान दिलाए जाते थे, जिससे देश की जनता में यह संदेश जाए कि उनको कुछ नहीं आता है और वे बुद्धू हैं। इसके लिए उन कांग्रेस नेताओं को बड़े इनाम इकराम से नवाजा गया। इसके साथ ही प्रधानमंत्री अपने भाषणों में राहुल को शहजादे कह कर संबोधित करते थे। इसका भी मकसद यही मैसेज बनवाना था कि राहुल गांधी पप्पू हैं लेकिन चूंकि शहजादे हैं इसलिए कांग्रेस के इतने बड़े नेता बने हैं।
लेकिन अब यह थीम बदल गई है। अब कोई राहुल गांधी को पप्पू नहीं कहता है। उनकी भारत जोड़ो यात्रा के समय से उनको लेकर नैरेटिव बदलने की शुरुआत हुई। इससे पहले एक और बड़ा बदलाव हुआ था। वह किसान आंदोलन के समय हुआ। उस समय भाजपा और केंद्र सरकार ने भारत के खिलाफ साजिश का नैरेटिव बनवाया था। दुनिया भर से भारत विरोधी टूलकिट के सक्रिय होने की चर्चा हुई थी। इसके बाद बड़े सहज तरीके से राहुल को इस टूलकिट से जोड़ा जाने लगा। भारत विरोधी इस टूलकिट के लिए एक नाम खोजा गया जॉर्ज सोरोस का। दावा किया गया कि राहुल गांधी अमेरिका के इस खरबपति कारोबारी के संपर्क हैं और उसके जरिए भारत को और भारत की सरकार को अस्थिर करने का प्रयास कर रहे हैं।
लगभग उसी समय अर्बन नक्सल का सिद्धांत लाया गया, बौद्धिक व सामाजिक कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी शुरू हुई, भारत के खिलाफ साजिश के नैरेटिव को मेनस्ट्रीम किया गया और राहुल व कांग्रेस को उससे जोड़ दिया गया। सो, नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के लगभग एक दशक बाद भाजपा के मुताबिक राहुल गांधी पप्पू से बदल कर एक शातिर नेता बन गए हैं, ऐसे नेता जो देशविरोधी ताकतों से मिला हुआ है। इस नैरेटिव को भारत सरकार के वरिष्ठ मंत्री आगे बढ़ा रहे हैं। देश के एक बड़े न्यूज नेटवर्क को इंटरव्यू में केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने बिना किसी लागलपेट के कहा कि राहुल गांधी और कांग्रेस देश को अस्थिर करने की साजिश रचने वालों के साथ जुड़े हैं।
रिजिजू ने दावा किया कि भारत सरकार को अस्थिर करने के लिए जॉर्ज सोरोस ने एक ट्रिलियन डॉलर का फंड रखा है। सोचें, एक ट्रिलियन डॉलर का मतलब है कि भारत का जितना जीडीपी है उसके एक तिहाई के बराबर फंड एक कारोबारी ने भारत को अस्थिर करने के लिए रखा है! इसके आगे रिजिजू ने कहा कि अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन और कई वामपंथी संगठनों से जुड़ी खालिस्तानी ताकतें भारत विरोधी साजिश रच रही हैं, राहुल और कांग्रेस उनके साथ खड़े हैं।
यह बात भारत सरकार का एक वरिष्ठ मंत्री कह रहा है। इसका मतलब है कि सरकार के पास ऐसी इनपुट है कि एक कारोबारी ने एक ट्रिलियन डॉलर यानी करीब 87 लाख करोड़ रुपए भारत को अस्थिर करने के लिए रखा हुआ है और कांग्रेस का उसके साथ संबंध है। अगर ऐसी कोई खुफिया सूचना है तो सरकार को उस पर तत्काल कार्रवाई करनी चाहिए। अमेरिका के सामने यह मुद्दा उठाना चाहिए। संयुक्त राष्ट्र संघ में इसे ले जाना चाहिए और भारत में जिन नेताओं को इस साजिश में शामिल होने की खबर है उन पर कार्रवाई करनी चाहिए। लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हो रही है। सिर्फ नैरेटिव बनाया जा रहा है। ऐसा लग रहा है कि राहुल को पप्पू साबित करने के नैरेटिव का लाभ लेने के बाद उनको देश विरोधी बता कर नया नैरेटिव बनाया जा रहा है। लोकप्रिय विमर्श में इस बात को स्थापित किया जा रहा है कि राहुल गांधी, कांग्रेस पार्टी और व्यापक रूप से समूचा विपक्ष देश विरोधी काम कर रहा है और अकेले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सबको रोकने की कोशिश कर रहे हैं। यह बात रिजिजू ने अपने इंटरव्यू में कही।
उन्होंने कहा कि मोदीजी के होते किसी को कामयाबी नहीं मिलेगी। यह नैरेटिव देश के बौद्धिकों के लिए भी चलाया जा रहा है। केंद्र सरकार या राज्यों की भाजपा सरकारों के खिलाफ सवाल उठाने वालों को तुरंत देश विरोधी और साजिश रचने वाला बता दिया जाता है। जैसे अभी असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने किया है। उन्होंने चार सामाजिक कार्यकर्ता जाने माने वकील प्रशांत भूषण और पूर्व आईएएस अधिकारी हर्ष मंदर, जवाहर सरकार व वजाहत हबीबुल्ला पर आरोप लगाया है कि ये लोग असम में घूम रहे हैं और असम को अस्थिर करने की साजिश कर रहे हैं। सोचें, इतनी शक्तिशाली सरकार सामाजिक कार्यकर्ताओं को वकीलों से घबराए जाए तो क्या कहा जा सकता है!
बहरहाल, राहुल गांधी पर हमले की नई थीम का दूसरा पहलू उनको ऐसा नेता साबित करना है, जो असुरक्षा बोध से ग्रस्त हो। इस बहाने पार्टी के अंदर विभाजन बढ़ाने का प्रयास किया जा रहा है। यह बात खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संसद के मानसून सत्र के दौरान एनडीए नेताओं के साथ एक बैठक में कही। बैठक के बाद मीडिया में खबर आई कि प्रधानमंत्री ने कहा कि संसद नहीं चलने का कारण यह है कि कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व (उन्होंने संभवतः राहुल गांधी का नाम भी लिया) असुरक्षा बोध से ग्रस्त है इसलिए किसी दूसरे नेता को संसद में नहीं बोलने दिया जाता है और इसी वजह से संसद में कामकाज नहीं हो पाता है। ध्यान रहे मानसून सत्र में ऑपरेशन सिंदूर पर चर्चा में मनीष तिवारी और शशि थरूर नहीं बोले थे।
भाजपा का कहना है कि उनको बोलने नहीं दिया गया क्योंकि वे केंद्र सरकार के समर्थन में बोल सकते थे, जबकि कांग्रेस का कहना है कि उन दोनों ने खुद ही बोलने से इनकार किया था। कारण जो रहा हो लेकिन सीधे प्रधानमंत्री के स्तर से कांग्रेस की अंदरूनी राजनीति के विभाजन को बढ़ाने का दांव चला जा रहा है। यह राहुल के कमजोर होने या असुरक्षा बोध से ग्रस्त होने का नहीं, बल्कि पार्टी पर उनकी पकड़ मजबूत होने का संकेत है। वैसे असुरक्षा बोध भारत के नेताओं के गहना होता है। थोड़े से पुराने अपवादों को छोड़ दें तो हर बड़ा नेता असुरक्षा बोध से ग्रस्त होता है। भारतीय जनता पार्टी में पिछले 10 साल से जिस तरह के निराकार नेता आगे बढ़ाए जा रहे हैं और महत्वपूर्ण पदों पर बैठाए जा रहे हैं। वह असुरक्षा बोध की ही निशानी है।