राज्य-शहर ई पेपर व्यूज़- विचार

घाटे का सौदा हैं अजित पवार!

भाजपा

भाजपा के नेता खुश हैं कि महाराष्ट्र में शरद पवार की एनसीपी टूट गई। खुशी जाहिर करने वाले कई तरह के तर्क दे रहे हैं, जिसमें सबसे महत्वपूर्ण राजनीतिक तर्क यह है कि विपक्षी गठबंधन बनाने के प्रयासों को इससे झटका लगेगा और महाराष्ट्र में लोकसभा चुनाव में भाजपा की सीटें बढ़ेंगी। हो सकता है कि ऐसा सोचने का कोई आधार हो लेकिन राजनीति सिर्फ ऐसे हिसाब किताब से नहीं चलती है। राजनीति आज भी बुनियादी रूप से धारणा का खेल है और भाजपा इस खेल में माहिर है।

तभी हैरानी हो रही है कि जिस अजित पवार के बारे में पिछले ढाई दशक से भाजपा यह धारणा बना रही थी कि वे भ्रष्टाचार का प्रतीक हैं उनको अपनी पार्टी के साथ जोड़ कर और सरकार में उप मुख्यमंत्री बना कर उसने क्या मैसेज दिया है? एनसीपी के टूटने और अजित पवार के एनडीए के साथ आने के राजनीतिक महत्व को रेखांकित कर रहे लोगों के अलावा भाजपा समर्थकों का एक बड़ा वर्ग है, जो इसके खतरों को भी रेखांकित कर रहा है। उनको लग रहा है कि भाजपा ने यह अच्छा नहीं किया।

भाजपा के विरोधियों या एनसीपी और कांग्रेस के नेताओं से ज्यादा भाजपा समर्थक पत्रकारों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने किरीट सोमैया का वीडियो शेयर किया है, जिसमें वे हसन मुशरिफ के ऊपर डेढ़ हजार करोड़ रुपए के घोटाले का आरोप लगा रहे थे। पिछले महीने मुशरिफ के चीनी मिल सहित कई परिसरों पर प्रवर्तन निदेशालय यानी ईडी का छापा पड़ा था, जिसके बाद से वे अदालत से मिली अंतरिम जमानत पर बाहर हैं। अंतरिम जमानत पर चल रहे हसन मुशरिफ को भाजपा की सरकार में मंत्री बना दिया गया है! विमानन घोटाले के आरोपी प्रफुल्ल पटेल भी केंद्र में मंत्री बन जाएं तो हैरानी नहीं होगी।

इसी तरह भाजपा विरोधियों से ज्यादा उसके समर्थक देवेंद्र फड़नवीस का वह वीडियो वायरल कर रहे हैं, जिसमें उन्होंने ‘शोले’ फिल्म का मशहूर डायलॉग दोहराते हुए कहा था कि अजित पवार जेल जाएंगे और ‘जेल में चक्की पीसिंग एंड पीसिंग…’। उन्हीं अजित पवार को रविवार को राजभवन में उप मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई गई और देवेंद्र फड़नवीस उनका स्वागत कर रहे थे। ध्यान रहे भाजपा अजित पवार के भ्रष्ट होने की धारणा पिछले करीब ढाई दशक से बना रही है। जब पहली बार 1999 में कांग्रेस और एनसीपी की सरकार बनी थी तब से उनको भ्रष्ट ठहराया जा रहा है। किसी और पार्टी ने उन पर भ्रष्टाचार के आरोप कभी नहीं लगाए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी पिछले दिनों भोपाल में जब कहा कि एनसीपी ने 70 हजार करोड़ रुपए का घोटाला किया है तो वे असल में अजित पवार की ही बात कर रहे थे।

अजित पवार के ऊपर ही 70 हजार करोड़ रुपए के सिंचाई घोटाले का आरोप लगा था और 2014 में जब देवेंद्र फड़नवीस के नेतृत्व में भाजपा की सरकार बनी तो राज्य के भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो ने मुकदमा दर्ज किया था। नवंबर 2019 में जब फड़नवीस के साथ अजित पवार 80 घंटे के लिए उप मुख्यमंत्री बने थे तब पहले 24 घंटे के भीतर ही भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो ने सिंचाई घोटाले में क्लोजर रिपोर्ट लगा दी थी। हालांकि अदालत ने उसे अभी तक स्वीकार नहीं किया है।

यह मामला अजित पवार के जल संसाधन मंत्री रहने के समय का है। जब अजित पवार ने जल संसाधन मंत्रालय छोड़ा तो उनके करीबी सुनील तटकरे इस विभाग के मंत्री बने थे। सो, पूरे सिंचाई घोटाले का आरोप अजित पवार और सुनील तटकरे के ऊपर है। अब अजित पवार उप मुख्यमंत्री बन गए हैं और सुनील तटकरे की बेटी अदिति तटकरे को भी शिंदे सरकार में मंत्री बना दिया गया है।

भाजपा ने अगर किसी आपात स्थिति में अजित पवार का समर्थन लिया होता तब भी सवाल उठते लेकिन उसका इतना गहरा दाग भाजपा के ऊपर नहीं लगता, जितना अभी लगा है। भाजपा के सामने कोई आपात स्थिति नहीं थी। राज्य सरकार को पूर्ण बहुमत है और आने वाले दिनों में भी कोई खतरा उत्पन्न नहीं होना है। मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे सहित जिन 16 विधायकों के अयोग्य ठहराए जाने की संभावना जताई जा रही है वह भी हकीकत नहीं है क्योंकि उसमें फैसला स्पीकर को करना है, जो भाजपा के ही नेता हैं।

सो, सदस्यता जाने वाली बात भी एक काल्पनिक खतरे की तरह है। तभी बिना किसी आपात स्थिति के भाजपा ने एक ऐसे नेता और एक ऐसी पार्टी को अपने साथ लिया है, जिसके बारे में उसने खुद भ्रष्टाचार की धारणा बनवाई है। प्रधानमंत्री नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी को नेशनलिस्ट करप्ट पार्टी कहते रहे हैं।

इस घटनाक्रम से भाजपा के सामने नैतिक, विचारधारात्मक और राजनीतिक तीनों तरह से सवाल खड़े हुए हैं। प्रधानमंत्री ने पटना में जुटी सभी विपक्षी पार्टियों के ऊपर सामूहिक रूप से 20 लाख करोड़ रुपए के घोटाले का आरोप लगाया था, जिसमें 70 हजार करोड़ रुपए का घोटाला उनके हिसाब से एनसीपी का था। इस घोटाले के प्राथमिक आरोपी अब भाजपा के साथ हैं। सो, एक बड़ा नैतिक सवाल यह है कि भाजपा अब कैसे भ्रष्टाचार का मुद्दा उठाएगी? प्रधानमंत्री कैसे यह गारंटी देंगे कि वे हर भ्रष्टाचारी पर कार्रवाई करेंगे? अगर वे गारंटी दे भी दें तो इस बात की क्या गारंटी होगी कि लोग उस पर यकीन करेंगे?

हो सकता है कि भ्रष्टाचार को खत्म करने के भाजपा के वादे पर यकीन नहीं करने वाले भी उसको वोट दे दें लेकिन इससे इनकार नहीं किया जा सकता है कि इससे भाजपा की नैतिक शक्ति का कुछ और क्षरण हुआ है। उसे वोट देने वाले भी अब नहीं मानेंगे कि वह भ्रष्टाचार से लड़ रही है। इस तरह भाजपा ने खुद ही अपना और दूसरी पार्टियों का फर्क समाप्त कर लिया है। यह बात स्थायी रूप से लोगों को दिल दिमाग में दर्ज होगी।

दूसरा सवाल विचारधारात्मक है। भाजपा के नेता शिव सेना और उद्धव ठाकरे पर यही आरोप लगाते थे कि वह हिंदुत्व की राजनीति करने वाली पार्टी थी, जिसने कांग्रेस और एनसीपी से तालमेल करके अपने को वैचारिक रूप से भ्रष्ट बना लिया है। इसी आधार पर शिव सेना टूटी भी थी। एकनाथ शिंदे गुट की ओर से कहा गया था कि वे एनसीपी और कांग्रेस के साथ सहज नहीं महसूस कर रहे थे इसलिए पार्टी तोड़ दी। अब सवाल है कि शिंदे गुट और भाजपा कैसे एनसीपी के साथ सहज महसूस करेंगे?

जिस पार्टी के साथ विचारधारा का टकराव रहा हो उसके साथ सरकार चलाना और फिर साथ मिल कर चुनाव लड़ना क्या आसान होगा? क्या जनता बहुत सहज रूप से इस बात को स्वीकार कर लेगी कि राजनीति में कोई स्थायी दोस्त या दुश्मन नहीं होता है? अगर ऐसा है तो फिर जनता भाजपा और दूसरी पार्टियों में फर्क भी तो महसूस नहीं करेगी? तब क्या इससे कांग्रेस और दूसरी पार्टियों को वैधता नहीं मिलेगी?

जहां तक राजनीतिक सवाल है तो भाजपा को समझना चाहिए कि एनसीपी का वोट अजित पवार, छगन भुजबल या प्रफुल्ल पटेल के पास नहीं है, बल्कि शरद पवार के पास है। शिव सेना के मामले में भाजपा के नेता खुद ही इस बात को महसूस कर रहे हैं कि शिव सैनिक एकनाथ शिंदे के साथ नहीं हैं, बल्कि उद्धव ठाकरे के साथ हैं। तभी राजनीतिक रूप से शिंदे भाजपा के लिए बहुत महत्वपूर्ण नहीं रह गए हैं। एनसीपी के मामले में भी यह बात सही है कि शरद पवार के रहते अजित पवार पार्टी का वोट अपने साथ नहीं ला सकते हैं और न भाजपा को ट्रांसफर करा सकते हैं।

तभी भाजपा के लिए यह सौदा घाटे का लग रहा है। एक खतरा यह भी है कि अगर पहले की तरह इस बार भी सारा खेल शरद पवार ने रचा हो तो घटनाएं ऐसी होंगी, जिनसे अगले साल के चुनाव तक भाजपा पूरी तरह से एक्सपोज होकर बैकफुट पर होगी। अगर यह उनका खेल नहीं है तो अजित पवार के साथ साथ शरद पवार और उनकी पार्टी भी पाक दामन हो गए हैं। वे शहीद की तरह मराठा लोगों के बीच जाएंगे और वोट मांगेंगे।

यह भी पढ़ें:

केजरीवाल की याचिका पर फैसला आज

केंद्र और राज्यों में इतने झगड़े!

By अजीत द्विवेदी

संवाददाता/स्तंभकार/ वरिष्ठ संपादक जनसत्ता’ में प्रशिक्षु पत्रकार से पत्रकारिता शुरू करके अजीत द्विवेदी भास्कर, हिंदी चैनल ‘इंडिया न्यूज’ में सहायक संपादक और टीवी चैनल को लॉंच करने वाली टीम में अंहम दायित्व संभाले। संपादक हरिशंकर व्यास के संसर्ग में पत्रकारिता में उनके हर प्रयोग में शामिल और साक्षी। हिंदी की पहली कंप्यूटर पत्रिका ‘कंप्यूटर संचार सूचना’, टीवी के पहले आर्थिक कार्यक्रम ‘कारोबारनामा’, हिंदी के बहुभाषी पोर्टल ‘नेटजाल डॉटकॉम’, ईटीवी के ‘सेंट्रल हॉल’ और फिर लगातार ‘नया इंडिया’ नियमित राजनैतिक कॉलम और रिपोर्टिंग-लेखन व संपादन की बहुआयामी भूमिका।

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

और पढ़ें