nayaindia 22 जनवरी को देशभर मनेगा दिवाली: रामलला की प्रतिष्ठा के दिन

कांग्रेस 22 जनवरी को क्या करेगी?

रामलला की प्रतिष्ठा

अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के दिन 22 जनवरी को पूरे देश में दिवाली मनाई जाएगी। भाजपा, राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ और विश्व हिंदू परिषद ने इसके लिए पूरा जोर लगाया है। बड़े शहरों की कॉलोनियों में और छोटे शहरों के मुहल्लों व कस्बों में स्थित मंदिरों के जरिए इसका अभियान चलाया जा रहा है। घरों में अक्षत की पुड़िया और राममंदिर की तस्वीर पहुंचाने के साथ अनुरोध किया जा रहा है कि लोग घरों के बाहर दीये जलाएं और बिजली की लड़ियों से घरों को वैसे ही सजाएं, जैसे दिवाली में सजाते हैं।

दिल्ली में तो यह प्रस्ताव भी दिया जा रहा है कि अगर लोग खुद बिजली-बत्ती नहीं लगवा सकते हैं तो आरडब्लुए या स्थानीय मंदिर की ओर से एक निश्चित रकम के बदले तीन दिन के लिए घरों की सजावट कराई जा सकती है। दिवाली की तरह आतिशबाजी की भी तैयारी हो रही है।

हो सकता है दक्षिण भारत में इस प्रचार का असर कुछ कम देखने को मिले लेकिन यह तय है कि समूचे उत्तर भारत में 22 जनवरी को दिवाली मनाई जाएगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दिन में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के कार्यक्रम में शामिल होंगे तो शाम में दिवाली मनाते हुए उनकी तस्वीर मीडिया और सोशल मीडिया में वायरल होगी। सारे केंद्रीय मंत्री और भाजपा शासित राज्यों के नेताओं की भी तस्वीरें वायरल होंगी। कुछ विपक्षी पार्टियों ने भी अपनी योजना बनाई है। जैसे नवीन पटनायक की पार्टी पुरी परिक्रमा पथ पर हर दिन 10 हजार लोगों से परिक्रमा करा रही है तो अरविंद केजरीवाल की पार्टी ने सुंदरकाड का पाठ शुरू कराया है।

सवाल है कि उस दिन कांग्रेस क्या करेगी? क्या कांग्रेस ने कोई योजना बनाई है? राहुल गांधी की यात्रा चल रही होगी और वे 22 जनवरी को पूर्वोत्तर में ही होंगे लेकिन क्या वे वहां किसी मंदिर में जाएंगे? पिछली भारत जोड़ो यात्रा के दौरान वे धार्मिक स्थलों का दौरा करते हुए आगे बढ़े थे। वे 22 जनवरी को जहां हो वहां अगर किसी मंदिर में जाते हैं या उनकी पार्टी यात्रा के रूट में कहीं कोई धार्मिक कार्यक्रम आयोजित करती है तो वे कांग्रेस के हिंदू विरोधी और रामद्रोही होने के प्रायोजित अभियान का कुछ हद तक जवाब दे पाएंगे।

ध्यान रहे शिव सेना के नेता उद्धव ठाकरे ने तय किया है कि वे अपनी पार्टी के सभी नेताओं को लेकर नासिक जाएंगे और कालाराम मंदिर में पूजा अर्चना करेंगे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विपक्षी पार्टियों के हर कदम पर कितनी बारीक नजर रखे हुए हैं यह इससे पता चलता है कि जैसे ही उन्हें जानकारी मिली की उद्धव ठाकरे 22 जनवरी को नासिक के कालाराम मंदिर में जाएंगे वैसे ही प्रधानमंत्री का वहां जाने का कार्यक्रम बन गया। प्रधानमंत्री मोदी 12 जनवरी को देश के सबसे बड़े समुद्री पुल का उद्घाटन करने मुंबई गए तो उससे पहले नासिक चले गए और कालाराम मंदिर में झाड़ू लगाई, पूजा अर्चना की और बैठ कर झाल-मंजीरा बजाया। ऐसी मान्यता है कि भगवान राम अपने वनवास के समय नासिक में उसी जगह रूके थे, जहां कालाराम मंदिर है।

बहरहाल, उद्धव ठाकरे ने तो अपना कार्यक्रम तय कर लिया है। वे नासिक के कालाराम मंदिर में जाएंगे और भगवान राम के वनवास की तरह अपने और शिव सेना के वनवास का मैसेज बनवाएंगे और भावनात्मक कार्ड खेलेंगे। बीजू जनता दल और आम आदमी पार्टी का कार्यक्रम भी तय है। लेकिन क्या कांग्रेस के पास ऐसी कोई योजना है? कांग्रेस की उत्तर प्रदेश कमेटी के नेता 15 जनवरी को रामलला की पूजा करने अयोध्या गए। लेकिन यह पता नहीं है कि वे 22 जनवरी को क्या करेंगे? ध्यान रहे उस दिन सोनिया व राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा पर सबकी नजर रहेगी। प्रियंका गांधी वाड्रा मंदिरों में जाती हैं और पारंपरिक तरीके से पूजा-पाठ करती हैं। उनका मंदिर जाना बहुत स्वाभाविक दिखता है। इसलिए वे 22 जनवरी को अगर किसी राममंदिर में जाएं तो कांग्रेस व अपने परिवार की ओर से रामभक्तों को बड़ा मैसेज दे सकती हैं।

कांग्रेस के साथ बड़ी समस्या यह है कि उसके पास कोई ऐसा नेता नहीं है, जिसके चेहरे से वह व्यापक हिंदू समाज को अपनेपन या भावनात्मक जुड़ाव का मैसेज दे सके। ऐसा लग रहा है कि कांग्रेस पूरी तरह से अपने पारंपरिक स्वरूप को छोड़ चुकी है। एक समय था, जब कांग्रेस में हर विचारधारा के लोग होते थे। अगर साम्यवादी और समाजवादी सोच वाले नेता थे तो दक्षिणपंथी व धार्मिक विचारधारा के भी नेता होते थे। इससे पार्टी सैद्धांतिक मामलों में संतुलन बनाने में कामयाब रहती थी।

आजादी की लड़ाई में भी कांग्रेस के अंदर वैचारिक भिन्नता बहुत साफ दिखती थी। महात्मा गांधी रामराज्य की बात करते थे और घनघोर धार्मिक प्रवृत्ति के थे तो नेताजी सुभाष चंद्र बोस और जवाहरलाल नेहरू जैसे नेता प्रगतिशील, समाजवादी और कुछ हद तक साम्यवादी सोच के प्रतिनिधि चेहरे थे। मदन मोहन मालवीय से लेकर राजगोपालाचारी, गोविंद वल्लभ पंत, लाल बहादुर शास्त्री, राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन जैसे अनेक नेता हिंदू भावनाओं का प्रतिनिधित्व करने वाले थे। कुछ समय पहले तक कांग्रेस में इस धारा के नेता मौजूद रहे। लेकिन अब कांग्रेस में ऐसा कोई नेता नहीं बचा है या बचा है तो उसे कुछ भी बोलने या स्टैंड लेने की आजादी नहीं है।

जिस तरह से भाजपा पूरी तरह से कट्टर दक्षिणपंथी पार्टी बन गई है और एक भी नेता ऐसा नहीं है, जो मध्यमार्ग की बात कर सके तो दूसरी ओर कांग्रेस पूरी तरह से वामपंथी रंग में रंग गई है, जिसमें कोई भी राइट टू सेंटर यानी मध्यमार्ग से दक्षिणपंथ की ओर झुकाव वाला नेता नहीं बचा है। अगर कोई बचा है तो उसको भाजपा या संघ के एजेंडे के तौर पर मार्क किया जा चुका है। यह कांग्रेस के लिए बहुत आत्मघाती स्थिति है। उसे तत्काल कुछ उदार और दक्षिणपंथी नेताओं की जरुरत है ताकि पार्टी की सोच और उसकी गतिविधियों में संतुलन बने। ध्यान रहे अमेरिका से लेकर यूरोप और अफ्रीका से लेकर लैटिन अमेरिका तक दक्षिणपंथी राजनीति का रूझान बढ़ रहा है।

जनता आधुनिक समय की मुश्किलों और अनिश्चितताओं की वजह से अरक्षित महूसस कर रही है और धार्मिकता की ओर उसका रूझान बढ़ रहा है। इसलिए दुनिया भर की पार्टियां अब कट्टर वैचारिकी वाले नेताओं की जगह लचीले नेताओं को आगे बढ़ा रही हैं ताकि धार्मिक जनता के मन में उस पार्टी के प्रति दुराव का भाव नहीं पैदा हो। नेता खुद भी अपनी सोच और नीतियों में लचीलापन दिखा रहे हैं।

एक मिसाल अभी फ्रांस में देखने को मिली, जहां राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने अपनी सरकार में फेरबदल की है। उन्होंने तीन ऐसे नेताओं को मंत्रिमंडल में शामिल किया है, जो उनकी पार्टी के अंदर कट्टर दक्षिणपंथी राजनीति के लिए जाने जाते हैं। इनमें से एक को उन्होंने संस्कृति मंत्री बनाया है, दूसरे को श्रम व स्वास्थ्य मंत्री और तीसरे को शिक्षा मंत्री बनाया है। फ्रांस में कट्टर दक्षिणपंथी सोच वाले नेताओं को संस्कृति और शिक्षा जैसे मंत्रालय देने के मैक्रों को फैसले से समूचे यूरोप की बदलती राजनीति को समझा जा सकता है।

कांग्रेस के सामने एक मॉडल टोनी ब्लेयर का है, जिसके बारे में बहुत लिखा जा चुका है। लोग कितनी बार कांग्रेस और राहुल को समझा चुके हैं कि जिस तरह ब्लेयर ने न्यू लेबर का नारा दिया और कंजरवेटिव पार्टी से बिल्कुल कंट्रास्ट की राजनीति करके अपनी पार्टी को सत्ता में ले आए उसी तरह से राहुल को न्यू कांग्रेस का नारा देना चाहिए। उन्होंने वही किया है। सोशल सेक्टर में काम करने वाले और वामपंथी बुद्धिजीवियों की संगत की है और उनके हिसाब से कांग्रेस को भाजपा के कंट्रास्ट में खड़ा करने की कोशिश की है। लेकिन यह मॉडल भारत में चल नहीं रहा है क्योंकि भारत में नरेंद्र मोदी ब्रांड राजनीति का चस्का लोगों को अभी लगा है, जबकि ब्रिटेन में मारग्रेट थैचर और जॉन मेजर लंबे समय तक कंजरवेटिव राजनीति करते रहे थे।

इसलिए राहुल के सामने दूसरा मॉडल इमैनुएल मैक्रों का है। कांग्रेस को चाहिए कि पार्टी के अंदर मध्यमार्गी या दक्षिणपंथी विचार वाले नेताओं को जगह दे और उनकी बात सार्वजनिक स्पेस में रखने की इजाजत दे। यह सुनिश्चित करे कि उन्हें भाजपा और संघ का एजेंट नहीं कहा जाएगा। इसका भी लाभ तत्काल नहीं मिलेगा लेकिन इससे कांग्रेस की छवि बदलनी शुरू होगी। भाजपा का कंट्रास्ट बनाने की बजाय कांग्रेस को उसका विकल्प बनना है। दोनों की आर्थिक नीतियों में तो कोई फर्क है नहीं इसलिए सामाजिक नीतियों में अगर कांग्रेस अपने को बदलेगी तो उसको फायदा होगा।

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By अजीत द्विवेदी

संवाददाता/स्तंभकार/ वरिष्ठ संपादक जनसत्ता’ में प्रशिक्षु पत्रकार से पत्रकारिता शुरू करके अजीत द्विवेदी भास्कर, हिंदी चैनल ‘इंडिया न्यूज’ में सहायक संपादक और टीवी चैनल को लॉंच करने वाली टीम में अंहम दायित्व संभाले। संपादक हरिशंकर व्यास के संसर्ग में पत्रकारिता में उनके हर प्रयोग में शामिल और साक्षी। हिंदी की पहली कंप्यूटर पत्रिका ‘कंप्यूटर संचार सूचना’, टीवी के पहले आर्थिक कार्यक्रम ‘कारोबारनामा’, हिंदी के बहुभाषी पोर्टल ‘नेटजाल डॉटकॉम’, ईटीवी के ‘सेंट्रल हॉल’ और फिर लगातार ‘नया इंडिया’ नियमित राजनैतिक कॉलम और रिपोर्टिंग-लेखन व संपादन की बहुआयामी भूमिका।

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