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न प्रदूषण की वजह समझी न उपाय सही

पर्यावरण विशेषज्ञ, नेता और संबंधित सरकारी विभागों के अफसर हर साल की तरह इस साल भी इस समस्या को लेकर सिर खपा रहे हैं। उन्होंने अब तक के अपने सोच विचार का नतीजा यह बताया है कि खेतों में फसल कटने के बाद जो ठूंठ बचते हैं उन्हें खेत में जलाए जाने के कारण ये धुंआ बना है जो एनसीआर के ऊपर छा गया है। लेकिन सवाल उठता है कि यह तो हर साल ही होता है तो नए जवाबों की तलाश क्यों हो रही है? आनन-फ़ानन में हर वर्ष दिल्ली सरकार कड़े कदम उठा कर कई तरह के प्रतिबंध लगा देती है।

दिल्ली में और देश में सभी महानगरों में वायु प्रदूषण की बढ़ती समस्या को हम कई सालों से लगातार सुनते आ रहे हैं। हमें एक से एक बढ कर आई सनसनीखेज वैज्ञानिक रिपोर्टो की बातों को भूलना नहीं चाहिए। हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि दिल्ली से निकलने वाले गंदे कचरे, कूड़ा करकट को ठिकाने लगाने का पुख्ता इंतजाम अभी तक नहीं हो पाया। सरकार यही सोचने में लगी है कि यह पूरा का पूरा कूड़ा कहां फिंकवाया जाए या इस कूड़े का निस्तार यानी ठोस कचरा प्रबंधन कैसे किया जाए?

जाहिर है इस गुत्थी को सुलझाए बगैर जलाए जाने लायक कूड़े को चोरी छुपे जलाने के अलावा और क्या चारा बचता होगा? इस गैर-कानूनी हरकत से उपजे धुंए और जहरीली गैसों की मात्रा कितनी है जिसका कोई हिसाब किसी भी स्तर पर नहीं लगाया जा रहा है। इन सबके चलते आम नागरिकों पर सरकार द्वारा लगाए जा रहे प्रतिबंधों से अलग असुविधा हो रही है। परंतु अभी तक सरकार या उसकी प्रदूषण नियंत्रण करने वाली एजेंसियाँ असल कारण तक नहीं पहुँच पाई है।

जब भी कभी कोई उपभोक्ता एक-एक पाई जोड़ कर अपने सपनों का वाहन ख़रीदता है तो उसे उसकी क़ीमत के साथ-साथ रोड टैक्स, जीएसटी आदि टैक्स भी देने पड़ते हैं। इन सब टैक्सों का मतलब है कि यह सब राशि सरकार की जेब में जाएगी और घूम कर जनता के विकास के लिए इस्तेमाल की जाएगी। परंतु रोड टैक्स के नाम पर ली जाने वाली मोटी रक़म क्या वास्तव में जनता पर ख़र्च होती है? क्या हमें अपनी महँगी गाड़ियों को चलाने के लिए साफ़-सुथरी और बेहतरीन सड़कें मिलती हैं? क्या टूटी-फूटी सड़कों की समय से मरम्मत होती है? क्या देश भर में सड़कों की मरम्मत करने वाली एजेंसियाँ अपना काम पूरी निष्ठा से करतीं हैं? इनमें से अधिकतर सवालों के जवाब आपको ‘नहीं’ में मिलेंगा।

यहाँ एक सवाल यह भी उठता है कि सरकार द्वारा वाहनों प्रदूषण के स्तर को नियंत्रित रखने की दृष्टि से कई नियम लागू किए गए हैं। इनमें से अहम है कि दस साल पुराने डीज़ल और पंद्रह वर्ष से अधिक पुराने पेट्रोल वाहनों को महानगरों की सड़कों पर चलने की अनुमति नहीं देना। इसके साथ ही जिन-जिन वाहनों को चलने की अनुमति है उन सभी वाहनों में वैध प्रदूषण नियंत्रण प्रमाण पत्र यानी ‘पीयूसी’ होना अनिवार्य भी है। इसका सीधा मतलब यह हुआ कि यदि आपके वाहन में एक वैध प्रदूषण नियंत्रण प्रमाण पत्र है तो आपका वाहन तय मानकों से अधिक प्रदूषण नहीं कर रहा और तभी आपके वाहन को सड़क पर आने की अनुमति है।

पिछले वर्ष नवम्बर के महीने में दिल्ली सरकार ने एक आदेश के तहत बिना वैध प्रदूषण प्रमाण पत्र के चलने वाले वाहनों पर 10,000 का मोटा जुर्माना लगाने के आदेश दिये थे। इनका पालन भी सख़्ती से होता हुआ दिखाई दिया। दिल्ली की सड़कों पर परिवहन विभाग व ट्रैफ़िक पुलिस के अधिकारी इसे सख़्ती से लागू करते हुए नज़र भी आए।

हर साल दिवाली के आस-पास दिल्ली एनसीआर पर एक ज़हरीली हवा की चादर चढ़ जाती है। पर्यावरण विशेषज्ञ, नेता और संबंधित सरकारी विभागों के अफसर हर साल की तरह इस साल भी इस समस्या को लेकर सिर खपा रहे हैं। उन्होंने अब तक के अपने सोच विचार का नतीजा यह बताया है कि खेतों में फसल कटने के बाद जो ठूंठ बचते हैं उन्हें खेत में जलाए जाने के कारण ये धुंआ बना है जो एनसीआर के ऊपर छा गया है। लेकिन सवाल उठता है कि यह तो हर साल ही होता है तो नए जवाबों की तलाश क्यों हो रही है?

आनन-फ़ानन में हर वर्ष दिल्ली सरकार कड़े कदम उठा कर कई तरह के प्रतिबंध लगा देती है। जैसे निर्माण कार्य पर रोक लगाना। भवन के तोड़-फोड़ पर रोक लगाना। पुराने डीज़ल और पेट्रोल वाहनों पर रोक लगाना। कूड़े को जलाने पर रोक लगाना आदि। निर्माण कार्यों पर रोक लगाना तो समझ में आता है। परंतु जिन पुराने वाहनों पर रोक लगती है उससे सरकार को क्या हासिल होता है, यह समझ नहीं आता।

उदाहरण के तौर पर यदि आपका वाहन दस साल से अधिक पुराना नहीं है और उसमें एक वैध पीयूसी सर्टिफिकेट तो आपका वाहन प्रदूषण के तय मानकों की सीमा में ही हुआ। यानी आपका वाहन अनियंत्रित प्रदूषण नहीं कर रहा। इसके बावजूद अपनी गाड़ियों में नियमित ‘पीयूसी’ जाँच करवाने वालों को प्रतिबंध के चलते वाहन सड़क पर लाने की इजाज़त नहीं दी जाती।

क्या ऐसा करना उचितहै? यदि कोई मजबूरी में प्रतिबंधित वाहन को सड़क पर ले भी आता है तो पुलिस वाले उससे 20,000 का चालान वसूलने लगते हैं। ऐसे में ये लोग चालान न देने के लिए या तो बहाने बनाते हैं या पुलिस वालों की जेब गरम कर देते हैं। यानी प्रदूषण की समस्या के साथ-साथ भ्रष्टाचार जैसी समस्या भी जन्म ले लेती है।

ठीक उसी तरह, जब भी कोई वाहन ख़रीदने पर उपभोक्ता रोड टैक्स देते हैं तो उन्हें सड़कों की दुरुस्त हालत क्यों नहीं मिलती? टूटी-फूटी सड़कों पर वाहन अवरोधों के साथ चलने पर मजबूर होते हैं, नतीजा जगह-जगह ट्रैफ़िक जाम हो जाता है। ऐसे जाम में खड़े रहकर आप न सिर्फ़ अपना समय ज़ाया करते हैं बल्कि महँगा ईंधन भी ज़ाया करते हैं। जितनी देर तक जाम लगा रहेगा, आपका वाहन बंपर-टू-बंपर चलेगा और बढ़ते हुए प्रदूषण की आग में घी का काम करेगा। ऐसे में जिन वाहनों को पुराना समझ कर प्रतिबंधित किया जाता है, उनसे कहीं ज़्यादा मात्रा में नये वाहनों द्वारा प्रदूषण होता है। इसलिए लोक निर्माण विभाग या अन्य एजेंसियों की यह ज़िम्मेदारी होनी चाहिए कि वह सड़कों को दुरुस्त रखें जिससे प्रदूषण को बढ़ावा नहीं मिले। सरकार को प्रदूषण की समस्या से छुटकारा पाना है तो उसे इसके असल कारणों पर वार करना होगा तभी हमारा पर्यावरण स्वच्छ हो पाएगा।

By रजनीश कपूर

दिल्ली स्थित कालचक्र समाचार ब्यूरो के प्रबंधकीय संपादक। नयाइंडिया में नियमित कन्ट्रिब्यटर।

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